कहानीकार रत्ना सिंह की पुस्तक 'सामने वाली कुर्सी' का हुआ विमोचन
स्थानीय नागरिकों की भावनाओं और समस्याओं को छूती है पुस्तक "सामने वाली कुर्सी"- शिव प्रकाश अग्निहोत्री
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रायबरेली।
26 वर्ष की लेखिका रत्ना भदौरिया की पुस्तक "सामने वाली कुर्सी" का विमोचन हिंदी रचनाकार समूह के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में सम्पन्न हुआ जिसमें साहित्यकारों के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद रहे l
26 साल की रत्ना भदौरिया शहर के गंगागंज क्षेत्र की रहने वाली हैं और दिल्ली में नौकरी के साथ-साथ साहित्य की सेवा कर रही हैं वो वरिष्ठ साहित्यकार मन्नू भंडारी की शिष्या है यह उनकी प्रथम पुस्तक है।
उनकी इस पुस्तक में बदबू, परेशानी मां, बदलते रूप और संडास जैसी कुल 32 कहानियां हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार प्रोफेसर शिव प्रकाश अग्निहोत्री मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे उन्होंने रत्ना भदौरिया को शुभकामनाएं देते हुए पुस्तक के बारे में बताया कि इस पुस्तक में स्थानीय लोगों की समस्याओं और उनकी भावनाओं को कहानी के माध्यम से दर्शाया गया है जिसे पढ़ने से उसे जीने का अनुभव होता है
उन्होंने रत्ना को शुभकामनाएं दी और छोटी सी उम्र में पुस्तक लिखने का साहस जुटाने को एक बड़ा ओजस्वी कार्य बताया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि भाषा सलाहकार डॉ संतलाल भी मौजूद रहे उन्होंने पुस्तक का विमोचन करते हुए लेखिका को बधाई दी और कहा कि एक लेखक अपने अनुभव को कलम के माध्यम से शब्दों की कलाकारी करके साहित्य का रूप देता है
रत्ना सिंह भदौरिया ने भी अपने आसपास के समाज की समस्याओं और भावनाओं को कहानी का रूप दिया है जो छोटी उम्र में सराहनीय है। कार्यक्रम की अध्यक्षता अवधी भाषा के वर्तमान पुरोधा कहे जाने वाले इंद्रेश बहादुर सिंह भदौरिया ने किया उन्होंने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए रत्ना आशीर्वाद दिया अवधी भाषा का प्रचार प्रसार भोजपुरी के आधार पर हो इसके लिए अवधी भाषा में एक कहानी की पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया।
लेखिका रखना भदौरिया ने इसे वरिष्ठ साहित्यकारों का आशीर्वाद बताया उन्होंने कहा कि सभी का सहयोग रहा तो आने वाले समय में उनके द्वारा कई और विषय पर शोध चल रहा है जो पुस्तक के रूप में पाठकों के सामने आएगा।
कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर अशोक कुमार ने किया वक्ता के रूप में साहित्यकार पुष्पा श्रीवास्तव शैली इंदिरा गांधी राजकीय महाविद्यालय असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रियंका, लेखिका के पिता शिव बरन सिंह, हिंदी रचनाकार समूह के संचालक पंकज गुप्ता व अभिमन्यु सिंह सहित आदि साहित्यकार मौजूद रहे ।
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