बाहर की दवा लिख रहे सरकारी चिकित्सक,रोगी परेशान

स्वतंत्र प्रभात 
 
अस्पताल में मुफ्त इलाज का दावा बेअसर साबित हो रहा है। नेत्र चिकित्सक जुबेर फैसल व ओपीडी में ज्यादातर चिकित्सक एक रुपये की सरकारी पर्ची के अलावा छोटी पर्ची पर अलग से दवा लिख रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब स्वास्थ्य मंत्री ने इस पर अंकुश लगाने का सख्त निर्देश दिया था। बावजूद मनमानी जारी है। रोगियों को बाहर से महंगे दामों पर दवाएं खरीदने को विवश होना पड़ रहा है। रोगी व तीमारदार परेशान हैं, लेकिन चिकित्सक कमीशन के खेल में जेनेरिक दवाएं लिखने से परहेज कर रहे हैं।
 
ओपीडी में मरीजों की लंबी कतार
 
जिला अस्पताल में बड़ी संख्या में रोगियों की भीड़ उमड़ी रही। चिकित्सकों की ओपीडी पर रोगियों की लंबी कतार रही, लेकिन डाक्टरों की बाहर से दवा लिखने की प्रवृति रोगियों को मुफ्त इलाज की मंशा पर भारी पड़ रहा है। सरकार की तरफ से सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों को केवल जेनेरिक दवा का सार्ट ही लिखने का आदेश है।
 
जेनरिक की जगह लिखी जाती महंगी दवायें
 
जन औषधि केंद्रों पर मिलने वाली दवाओं की कीमत ब्रांडेड दवा से करीब 80 प्रतिशत तक कम होती है। बावजूद यहां जेनेरिक दवाएं नहीं लिखी जा रही है। मेडिकल स्टोरों से सांठगांठ कर दवाएं लिखी जा रही है। जन औषधि केंद्र संचालक कमीशन देने में सक्षम नहीं है। यही कारण है जेनेरिक की जगह महंगी दवाएं लिखी जा रही है। एेसे में जन औषधि केंद्र का व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। हालांकि चिकित्सक मेडिकल स्टोर पर ट्रेंड व्यक्ति न होने के कारण जेनेरिक दवाएं नहीं लिखने का जहां तर्क दे रहे हैं, वहीं रोगियों की डिमांड पर बाहर से दवा लिखने का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं।
 
क्या कहते परेशान मरीज़
 
राजेपुर के राजेश यादव ने कहा कि नाक के पास अत्याधिक दर्द है। डाक्टर ने एक रुपये की पर्ची पर चार दवा के अलावा अलग से छोटी पर्ची पर तीन दवा लिखी है। गरीब आदमी के लिए इलाज कराना मुश्किल हो गया है। यहां जन औषधि केंद्र भी नहीं है। महंगे दाम पर बाहर से दवा खरीदना मजबूरी है। हुसैन नहर की शबाना बानो ने कहा कि दस दिनों से बुखार और शरीर में दर्द है। जिला अस्पताल में डाक्टर को दिखाने आई तो अंदर की तीन दवा के साथ बाहर की तीन दवा भी डाक्टर लिखे हैं। मेडिकल स्टोर से महंगे दामों पर 350 रुपये में दवा खरीदना पड़ा है। तालिब सरायं की आयशा ने कहा कि आंख का आपरेशन जिला अस्पताल में कराई हूं। आंख लाल हो गया है। डाक्टर जुबेर फैसल ने अस्पताल से दवा लिखने के साथ ही छोटी पर्ची पर बाहर से तीन दवा लिखा है।अब तो सरकारी सुविधा में निश्शुल्क का कोई मतलब नहीं रह गया है। आवास विकास कालोनी के उमेश प्रताप सिंह ने कहा कि बच्चे को बुखार है। डाक्टर ने सरकारी पर्चे पर कोई दवा नहीं लिखा है। अलग से छोटी पर्ची पर चार दवा लिखी है। जिसकी कीमत करीब चार सौ रुपये है। अब बच्चे की बात है, डाक्टर जो लिखेंगे वह तो खरीदना ही पड़ेगा। सबसे अधिक समस्या यहां दलालों की है। जिसे समाप्त करने की जरूरत है।
 
जेनेरिक दवा से अनभिज्ञ हैं रोगी 
 
जेनरिक दवाओं को लेकर बहुत से रोगियों व तीमारदारों में जागरूकता का अभाव है। दवा सस्ती होने के कारण वह उसके असर को समझ नहीं पाते हैं, जबकि यह दवा काफी कारगर साबित हो रही है। इसके लिए प्रशासन को जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है।
 
अस्पताल में भरपूर है दवायें
 
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. सत्यप्रकाश ने बताया कि जिला अस्पताल में भरपूर दवाएं हैं। बीमारी के अनुसार रोगियों को दवा दी जाती है। अगर कोई चिकित्सक बाहर से दवा लिखता है, या किसी रोगी द्वारा बाहर से दवा लिखने के लिए दबाव बनाया जाता है, तो दोनों गलत है। शासन की मंशा के विपरीत कार्य करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
 
 

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