सियासत का मदारी है कोनार का छोरा

सियासत का मदारी है कोनार का छोरा

हरियाणा के रोहतास जिले के कोनार गांव के छोरे प्रशांत किशोर पांडे का ढिंढोरा  एक बार फिर से बज उठा है. डॉ श्रीकांत पांडे का ये छोरा अब कांग्रेस के साथ अपनी कथित निकटता की वजह से सुर्ख़ियों में है. कहते हैं कि इस देश को लम्बी दाढ़ी  वाला प्रधानमंत्री कोनार के इसी छोरे ने दिया . कहते हैं कि कोनार गांव का ये छोरा


हरियाणा के रोहतास जिले के कोनार गांव के छोरे प्रशांत किशोर पांडे का ढिंढोरा  एक बार फिर से बज उठा है. डॉ श्रीकांत पांडे का ये छोरा अब कांग्रेस के साथ अपनी कथित निकटता की वजह से सुर्ख़ियों में है. कहते हैं कि इस देश को लम्बी दाढ़ी  वाला प्रधानमंत्री कोनार के इसी छोरे ने दिया . कहते हैं कि कोनार गांव का ये छोरा राजनीतिक रणनीतिकार है .इसकी रणनीति के लिए बड़े-बड़े राजनीतिक दल तरसते हैं .

प्रशांत कुमार का नाम दरअसल अशांत कुमार होना चाहिए था क्योंकि वे हमेशा अशांत रहते हैं. मेरे हिसाब से वे एक 'अतृप्त राजनीतिक आत्मा' हैं वे राजनीति में स्टार बना चाहते थे,लेकिन नसीब में नहीं था सो अब 'स्टार' बनाने का धंधा करने लगे हैं .प्रशांत ने घाट-घाट का पानी पिया है लेकिन किसी घाट का पानी उनके लिए मुफीद नहीं बैठ रहा. वे जनता दल यूं के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनकर भी रहे किन्तु 'स्टार' नहीं बन पाए .प्रशांत ने मन की शांति के लिए अपना 'सीएजी ' यानि  सिटीजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस नाम की अपनी एक मीडिया कम्पनी बनाई और राजनीतिक दलों को कम्पनी देने लगे .

कोनार के इस छोरे ने चाय वाले नरेंद्र मोदी के लिए चाय पर चर्चा जैसा कार्यक्रम बनाकर 2014  के आम चुनावों में देश का भावी प्रधानमंत्री बनाकर उभार दिया .प्रशांत की वजह से ही मोदी जी 3 डी रैली, रन फॉर यूनिटी, मंथन और सोशल मीडिया कार्यक्रमों में छा गए .औरों की तरह नरेन्द्र मोदी: द मैन, द टाइम्स' के लेखक नीरांजन मुखोपाध्याय मानते हैं   कि प्रशांत  किशोर 2014 की चुनावों से पहले महीनों तक मोदी की टीम की ड्राइविंग की रणनीति में सबसे महत्वपूर्ण लोगों में से एक थे।
मोदी के लिए काम करने वाले प्रशांत किशोर को जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद अपेक्षित भाव नहीं मिला तो वे दुखी हो गए.प्रशांत का हालांकि किसी राजनीतिक विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है .उनका रिश्ता पैसे से है.जो पैसा दे वो सेवा ले .उन्होंने पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह और ममता दीदी को भी अपनी सेवाएं दिन .नीतीश कुमार ने भी उनकी सेवाओं का लाभ उठाया .उनकी सेवाएं हर समय लाभ ही पहुंचाएं इसकी कोई गारंटी नहीं है. वे अनेक अवसरों पार नाकाम रणनीतिकार भी साबित हुए हैं .

बहरहाल प्रशांत किशोर इस बार कांग्रेस से अपनी निकटता के लिए चर्चा में हैं .2016 में कांग्रेस द्वारा पंजाब के अमरिंदर सिंह के अभियान में मदद करने के लिए किशोर को पंजाब विधानसभा चुनाव 2017 के लिए नियुक्त किया गया था, कांग्रेस के लिए लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद पंजाब में चुनाव प्रचार में मदद मिली।प्रशांत हाल ही में श्रीमती सोनिया गांधी,राहुल और प्रियंका से मिल चुके हैं .प्रशांत ने राकांपा के शरद पंवार साहब से भी मुलाकात की.कयास है की वे कांग्रेस के लिए पल बना रहे हैं .

अब प्रशांत किशोर तो प्रशांत किशोर हैं,किसी के लिए कुछ भी बना सकते हैं,पल,सड़क,,मंच,मोर्चा .उनसे आप पैसे देकर मन माफिक काम करा सकते हैं .माना जाता है की प्रशांत किशोर नेताओं की छवि बदल देते हैं.नयी को पुरानी और पुरानी को नयी कर देते हैं .अब वे मोदी से निराश होकर राहुल गांधी की छवि निर्माण के लिए अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल कर सकते हैं

आपको याद होगा कि  बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने कहा था कि अब चुनावी रणनीति बनाने वाले काम से संन्यास लेंगे. यानी कुछ और करेंगे. तो वो कुछ और क्या होगा, लोगों की इस जिज्ञासा के बीच प्रशांत किशोर एक बार फिर सक्रिय  दिखने लगे हैं. यानि उनके भीतर का रणनीतिकार वाला वायरस मरा नहीं है .वो लगातार विपक्ष के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. जिसके बाद नए सिरे से चर्चाएं शुरू हो गई हैं. चर्चा है  कि प्रशांत किशोर अब  2024 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की मोर्चेबंदी में लग गए हैं… कयास हैं कि कांग्रेस  में शामिल होने वाले हैं. और फिर इन चर्चाओं का एक सिरा है जुड़ता राष्ट्रपति चुनाव से. कि प्रशांत किशोर अब राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी को हराने की व्यूह रचना तैयार कर रहे हैं, ऐसे चर्चाएं चल रही हैं.

मुझे लगता है कि प्रशांत किशोर अब खुद अपने वारे में अफवाहें फैलाकर अपना मंदा पड़ा कारोबार एक बार फिर चमकाना चाहते हैं .
दरअसल ये सवाल किसी एक प्रशांत किशोर का नहीं है,ये सवाल पूरे मुल्क की सियासत का है .सवाल ये है कि क्या इस 130  करोड़ की आबादी वाले ललक की सियासत सियासी किरदार न चलकर कल पैदा हुए सियासी रणनीतिकार चलाएंगे? क्या मुल्क में सियासी किरदारों कि अचानक इतनी कमी हो गयी है कि अचानक कोई एक मदारी आये और सियासी किरदारों को जमूरा बनाकर अवाम के सामने पेश करे और उल्लू सीधाकर आगे बढ़ जाये ? लोकतंत्र में जिसे ' जनादेश'. कहा जाता है ये उसी की ऐसी-तैसी करने का तरीका है .

इस मुल्क का नाम अटल बिहारी बाजपेयी,इंदिरा गाँधी ,राजीव गांधी,डॉ मन मोहन सिंह की वजह से दुनिया में जाना जाता है .ये सियासत के असल किरदार रहे हैं .इनका अपना चुंबक था.इन्हें किसी प्रशांत किशोर की जरूरत नहीं थी,इंदिरा गाँधी के पहले और बाद में आये तमाम सियासी किरदारों की अपनी कद-काठी,अपनी जुबान और पहचान थी .उनके मुंह में कोई जुमले दाल नहीं सकता था . .प्रशांत किशोर के कन्धों पर आये सियासी किरदारों ने इस देश की जनता की आँखों में धूल झोंक कर अपना उल्लू सीधा किया होता तो भी सहन किया जा सकता था लेकिन खोखले किरदारों ने रामलीला के पात्रों की तरह अपनी वेश-भूषा बदल-बदलकर देश की अर्थ व्यवस्था,विदेश नीति के साथ ही संविधान और तमाम संवैधानिक संस्थाओं को लंगड़ा-लूला बनाकर रख दिया है .

आज मुल्क एक ऐसे चौराहे पर आ  खड़ा हुआ है जहाँ से कोई दिशा साफ़ दिखाई नहीं दे रही .ये देश अच्छे दिनों की वाvत जोहते-जोहते तक गया है. मुल्क की अवाम की आँखें पथरा चुकी हैं .अच्छे दिन तो छोड़िये,देश बुरे दिनों के भनवार से बाहर कैसे निकले ये भी अभी साफ़ नहीं है. सत्ता पक्ष के पास जैसा खोखला किरदार है वैसा ही विपक्ष  के पास है .प्रशांत किशोर जैसे लोग ऐसे ही किरदारों को अपना शिकार बनाकर  अपनी जेबें बाहर रहे हैं .कल इनके पास मोदी थे,परसों ममता थीं और कल मुमकिन है कि राहुल गांधी हों .

लोकतंत्र की फ़िक्र करने वाले तमाम तत्वों को देश की राजनीति में असली किरदार अपनाना चाहिए न कि प्रशांत  किशोरों द्वारा गढ़े गए किरदार .मुझे नहीं लगता कि अभी देश किरदारों के मामले में इतना कंगाल हो चुका है कि उसे प्रशांत किशोरों की रणनीति की जरूरत पड़े .प्रशांत किशोर देश के सामने एक बार नहीं अनेक बार छल कर चुके हैं.अब उन्हें जबाब देने का सही मौक़ा आ रहा है. जनादेश देने वाली जनता ही ऐसे लोगों को सबक सिखाये .जिस दल के पास भी प्रशांत किशोर जैसे मदारी खड़े नजर आएं उस दल को बहिष्कृत कर देना आज की जरूरत है .
@ राकेश अचल 
 

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