नागरिक डाटाबेस के अभाव से जूझता देश

नागरिक डाटाबेस के अभाव से जूझता देश

लेखक – इंद्र दमन तिवारी सरकारी नीतियों का आर्दश स्वाभाव होना चाहिए कि इनके परिणाम दूरगामी हों, ऐसी योजनाओं का संचालन किया जाना चाहिए जिनके परिणामस्वरूप जनसंख्या का सर्वाधिक हिस्सा लाभान्वित हो सके। आज से कुछ समय पूर्व जब केंद्र की एनडीए सरकार ने जनधन बैंक खाते, राशनकार्ड को आधार संख्या से जोड़ने, प्रत्यक्ष नक़दी

लेखक – इंद्र दमन तिवारी

सरकारी नीतियों का आर्दश स्वाभाव होना चाहिए कि इनके परिणाम दूरगामी हों, ऐसी योजनाओं का संचालन किया जाना चाहिए जिनके परिणामस्वरूप जनसंख्या का सर्वाधिक हिस्सा लाभान्वित हो सके।

आज से कुछ समय पूर्व जब केंद्र की एनडीए सरकार ने जनधन बैंक खाते, राशनकार्ड को आधार संख्या से जोड़ने, प्रत्यक्ष नक़दी हस्तांतरण जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रस्ताव किये तो विपक्ष द्वारा विरोध करते हुए आरोप लगाया गया कि इन योजनाओं से निजता के अधिकार का हनन होगा, परन्तु अब यदि वर्तमान परिदृश्य की विवेचना करें तो पायेंगे कि यदि ये योजनाएं समय पर संचालित न की गई होतीं तो इस आपदा के समय में लोगों को त्वरित आर्थिक सहायता कैसे मुहैय्या हो पातीं ?

उत्तर प्रदेश सरकार ने 27.50 लाख मनरेगा श्रमिकों के इन्हीं खातों में 611 करोड़ रुपये की धनराशि स्थानांतरित की है, इसी प्रकार केंद्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक सहायता पैकेज का ऐलान किया जिसमें राशनकार्ड धारकों, उज्ज्वला लाभार्थियों, महिला जनधन खाता धारकों, बुजुर्गों, दिव्यांगों, विधवाओ एवं किसानों को त्वरित राहत पंहुचाई गई है। बिचौलिया मुक्त व्यवस्था बनाने को प्रतिबद्ध केंद्र सरकार का पहला ठोस कदम था कि सभी भारतीयों के पास बैंक खाता होना चाहिए, औऱ इसी लिए 2014 में जनधन योजना के तहत 38 करोड़ खाते खोले गए व इन नए खातों में में से 53 प्रतिशत खाते महिलाओं के द्वारा खोले गए..

इसका लाभ अब देखा जा सकता है कि इन खातों में प्राप्त हुई सरकारी सहायता के कारण देश की बहुसंख्यक आबादी लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से बच गयी औऱ उन्हें महानगरों के कामगारों की भाँति भागने औऱ प्रताड़ित होने को मजबूर नहीं होना पड़ा। आज प्रवासी कामगारों में अफरातफ़री का माहौल है तो इसी कारण क्योंकि सरकारों के पास इनका कोई डिजिटल डाटाबेस नहीं है, यदि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर एवं राशनकार्ड को आधार से जोड़े जाने जैसे उपाय समय रहते कर लिए गए होते तो इन कामगारों तक भी त्वरित नक़द एवं खाद्यान्न सहायता पंहुचाई जा सकती थी। एक ऐसे समय में जब आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि अप्रैल के अंत या मई के पहले हफ़्ते तक कोरोना का कहर अपने चरम पर होगा औऱ कोरोना के बढ़ते प्रभाव के कारण अस्पतालों पर दबाव द्रुतगति से बढ़ रहा है,

संक्रमित लोगों की जान बचाने के लिए वेंटिलेटर जैसे बुनियादी सुविधाओं के अभाव ने तंत्र के समक्ष गम्भीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, तो ऐसे में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) औऱ राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की प्रासंगिकता पुनः उज़ागर हुई है कि यदि केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास जनसंख्या सम्बन्धित प्रमाणिक डाटाबेस होता तो वे उसी आधार पर संक्रमण की जाँच करवा सकतीं एवं औऱ भी अधिक बेहतर आपदा प्रबंधन हो सकता था।

एनपीआर होता तो कदाचित निज़ामुद्दीन स्थित तब्लीग़ी ज़मात में शुमार हुए दुनिया के कई देशों से आये लोगों की जानकारी समय से हो जाती, कोरोना संकट के बाबत भले ही सरकार ने जनगणना 2021 औऱ एनपीआर तैयार करने को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया हो लेक़िन एनपीआर की आवश्यकता को झुठलाया नहीं जा सकता, देश के सभी नागरिकों की पहचान को व्यापक डाटाबेस के साथ जोड़ना आवश्यक है ताक़ि सरकारी योजनाओं का लाभ समय रहते सही व्यक्ति तक पँहुच सके।

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