अब जिला अस्पताल में मिलेगी बेडाक्विलीन टैबलेट
-टीबी मरीजों को नहीं लगाने होंगे झांसी के चक्कर
महोबा । ब्यूरो रिपोर्ट-अनूप सिंह
देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य है। इसी के लिए प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम निरंतर चल रहा है।
एमडीआर टीबी मरीज को बेडाक्लिवीन टैबलेट के लिए डीआरटीबी सेंटर, झांसी जाना पड़ता था। वहां डाक्टर जांच के बाद टैबलेट देते थे। मरीज को यह गोली छह माह तक लगातार खानी होती है। मरीज द्वारा गोली कहीं रखकर भूल जाने या खोने की जाने की स्थिति में फिर झांसी से यह टैबलेट नहीं पड़ रही थी। ऐसे में मरीज नियमित दवा का भी नुकसान हो जाता था। लेकिन अब ऐसे मरीजों को जिला अस्पताल में ही दवा आसानी से मिलना शुरू हो गई है।
डीआरटीबी सेंटर के नोडल डा. राजेश भट्ट ने बताया कि मरीज को एक से दो दिन तक भर्ती करके अपने सामने बेडाक्विलीन दी जाती है, ताकि कोई दुष्प्रभाव दिखे तो मरीज को समय पर उपचार दिया जा सके। 24 से 48 घंटे के बाद घर में दवा खाने के टिप्स दिए जाते हैं। समय-समय पर मरीज का फोन पर फालोअप भी लिया जाता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में एमडीआर के 35 मरीजों को यह बेडाक्विलीन दी जा रही है।
यहां है जांच की सुविधा
टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के जिला समन्वयक नरेंद्र सिंह ने बताया कि जनपद में 14 डेजिग्नेटेड माइक्रास्कापी सेंटर (डीमएसी) हैं जहां जांच की जाती हैं। इसमें टीबी क्लीनिक व जिला अस्पताल सहित कबरई, खन्ना, बिलबई, ग्योड़ी, गौरहारी, श्रीनगर, कुलपहाड़, जैतपुर, पनवाड़ी, किल्हौवा, खरेला व चरखारी शामिल हैं।
टीबी के प्रकार
जिला समन्वयक नरेंद्र सिंह ने बताया कि टीबी दो प्रकार की होती है। प्लमोनरी और एक्ट्रापल्मोनरी टीबी। प्लमोनरी टीबी का प्राइमरी रूप होता है, जो लंग को प्रभावित करता है। यह आमतौर पर बहुत ही कम उम्र वाले बच्चों में या फिर अधिक उम्र वाले वृद्ध लोगों में होता है। इसी तरह एक्ट्रापल्मोनरी टीबी लंग से अन्य जगहों पर होते हैं, जैसे हड्डियां, किडनी और लिम्फ नोड आदि। यह इम्यूनोकॉम्प्रॉमाइज्ड रोगियों में होता है।

Comment List