मिल्कीपुर के पूरब गांव में माता भिटारी मंदिर में संगीतमय श्रीराम कथा का भव्य समापन

मिल्कीपुर के पूरब गांव में माता भिटारी मंदिर में संगीतमय श्रीराम कथा का भव्य समापन

मिल्कीपुर अयोध्या।  क्षेत्र के पूरब गांव में माता भिटारी मंदिर के पवित्र प्रांगण में आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा का समापन 26 मई  को भव्य और भक्तिमय वातावरण में हुआ। इस अवसर पर प्रख्यात कथा वाचक विजय मोहन महाराज ने कथा के अंतिम दिन कुम्भकर्ण वध, मेघनाथ वध, और रावण वध की कथाओं का भावपूर्ण और संगीतमय वर्णन किया, जिसने श्रोताओं को भक्ति के रंग में सराबोर कर दिया।

कथा का भक्तिमय माहौल और श्रोताओं की उपस्थिति
पूरब गांव के माता भिटारी मंदिर में पिछले कई दिनों से चल रही इस श्रीराम कथा में आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। भक्ति भजनों की मधुर स्वरलहरियों ने पूरे वातावरण को राममय बना दिया। कथा के अंतिम दिन विशेष रूप से बड़ी संख्या में भक्तों का जमावड़ा देखा गया, जो रामायण के इन महत्वपूर्ण प्रसंगों को सुनने के लिए उत्साहित थे।
 
विजय मोहन महाराज ने कथा की शुरुआत कुम्भकर्ण वध के प्रसंग से की। उन्होंने बताया कि रावण का भाई कुम्भकर्ण, जो अपनी गहरी निद्रा और अपार शक्ति के लिए विख्यात था, जब युद्ध के लिए जागा तो उसने वानर सेना में हाहाकार मचा दिया। लेकिन भगवान श्रीराम की कृपा और वानर सेना के पराक्रम के समक्ष कुम्भकर्ण का बल टिक न सका। महाराज ने इस प्रसंग को इस तरह प्रस्तुत किया कि श्रोता भगवान राम की शक्ति और उनके भक्तों के साहस के प्रति श्रद्धा से भर उठे।

इसके बाद कथा वाचक ने मेघनाथ (इंद्रजीत) के वध की कथा सुनाई। मेघनाथ, जो अपनी मायावी शक्तियों और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध था, ने राम-लक्ष्मण और वानर सेना को कई बार कठिनाई में डाला। लेकिन लक्ष्मण ने भगवान श्रीराम की प्रेरणा और अपने कठोर तप के बल पर मेघनाथ का अंत किया। विजय मोहन महाराज ने इस प्रसंग में लक्ष्मण की ब्रह्मचर्य शक्ति और भगवान राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति को विशेष रूप से रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि मेघनाथ का वध केवल शारीरिक युद्ध नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच का संघर्ष था।

कथा का सबसे मार्मिक हिस्सा रहा रावण वध का प्रसंग। विजय मोहन महाराज ने रावण के विद्वान, शक्तिशाली, और मायावी व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे उसका अहंकार और अधर्म उसकी पराजय का कारण बना। भगवान श्रीराम ने अपनी धैर्य, शक्ति, और धर्मनिष्ठा से रावण का अंत किया, जो अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। इस प्रसंग को सुनाते समय महाराज ने भक्ति भजनों के माध्यम से भगवान राम की महिमा का गुणगान किया, जिसने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।

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