चोपन मीतापुर बंधवा में नाले की मिट्टी से बना कुआं 8 माह में ढहा, ग्रामीणों का भ्रष्टाचार का आरोप

ग्रामीणों ने लगाया संबंधित विभाग व ठेकेदार के ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप

चोपन मीतापुर बंधवा में नाले की मिट्टी से बना कुआं 8 माह में ढहा, ग्रामीणों का भ्रष्टाचार का आरोप

घटिया सामग्री व गुणवत्तापरक कार्य न कराने का आरोप

राजेश तिवारी ( क्राइम ब्यूरो) 

सोनभद्र / उत्तर प्रदेश-

ओबरा तहसील के अंतर्गत मीतापुर बंधवा में बना एक कुआं,जो लगभग आठ महीने पहले ही बनकर तैयार हुआ था,घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल के कारण अब ध्वस्त हो गया है। इस घटना ने सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार और गुणवत्ता नियंत्रण की कमी को खुलकर सामने ला दिया है।

स्थानीय निवासी राजकुमार और अन्य ग्रामीणों ने ठेकेदार और लघु सिंचाई विभाग के जूनियर इंजीनियर (जेई) पर सरकारी धन का बंदरबांट करने का गंभीर आरोप लगाया है। ग्रामीणों के अनुसार, कुएं के निर्माण के दौरान अत्यंत निम्न गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया गया था। आसपास के निवासियों ने बताया कि निर्माण में नाले से निकाली गई मिट्टी वाली बालू का इस्तेमाल किया गया था, जिसकी शिकायत ग्रामीणों ने उस समय भी की थी।

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हालांकि, संबंधित अधिकारियों ने इस शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया। नतीजतन, निर्माण के कुछ ही महीनों के भीतर कुआं जर्जर होने लगा और अंततः पूरी तरह से ढह गया। यह कुआं विशेष रूप से ग्रामीणों की सिंचाई और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसके ध्वस्त होने से उन्हें गहरी निराशा हुई है। इस घटना ने सरकार के 'ड्रीम प्रोजेक्ट' कहे जाने वाली योजनाओं की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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ग्रामीणों का सीधा आरोप है कि ठेकेदार ने लघु सिंचाई विभाग के जेई के साथ मिलीभगत करके घटिया सामग्री का उपयोग किया गया है और सरकारी धन का भारी दुरुपयोग किया है। उनका कहना है कि यदि निर्माण कार्य में गुणवत्ता मानकों का पालन किया गया होता, तो आज यह कुआं इस तरह से नहीं गिरता।

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स्थानीय लोगों ने इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ठेकेदार और संबंधित जेई के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इसके अतिरिक्त, ग्रामीणों ने यह भी मांग की है कि ध्वस्त हुए कुएं का पुनर्निर्माण उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग करके कराया जाए, ताकि उन्हें इसका वास्तविक लाभ मिल सके।

यह घटना सोनभद्र जिले में सरकारी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में फैले भ्रष्टाचार और लापरवाही का एक और जीता-जागता उदाहरण है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिला प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और क्या दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की जाती है, ताकि जनता के गाढ़े पसीने की कमाई का सही इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सके।

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