बदरंग सियासत और जुमा की नमाज बनाम होली का रंग
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जुमा साल में 52 बार आता है, लेकिन होली सिर्फ एक बार. मुसलमान रंग-गुलाल को बुरा मानते हैं, तो उन्हें घर में ही रहना चाहिए. अगर बाहर निकलें, तो रंग सहन करें. यही वह बयान है जिसको लेकर यूपी ही नहीं देश भर में धमाल मचा हुआ है। न सिर्फ सियासतदान इस बयान को लेकर दो खेमों में बंट गए हैं संभव के सीओ अनुज चौधरी के बयान को उत्तर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ के दोहराने के बाद होली और रमजान को लेकर जबरदस्त बयानबाजी शुरू हुई है।
इस बयानबाजी ने सामुदायिक चेतना को आहत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है होली का रंग और रमजान के जुमे की नमाज एक साथ सम्पन्न कराना चुनौती है। इसे देखते हुए उत्तर प्रदेश में प्रशासन अलर्ट पर है।कम से कम 13 जिलों में मुस्लिम समाज ने जुमे की नमाज का वक्त बदला है। सैकड़ों मस्जिदों को रंग से बचाने के लिए तिरपाल से ढका गया है।प्रशासन ने संवेदनशील इलाकों में निगरानी बढ़ा दी ही और स्थिति पर नजर रखने के लिए ड्रोन और सीसीटीवी कैमरे तैनात किए गए हैं।
इसी बीच इस मामले पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी प्रतिक्रिया दे दी है।चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुके मायावती ने आड़े हाथों लेते हुए कहा कि संभल की तरह अधिकारियों का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बल्कि इन्हें कानून व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
मायावती ने कहा कि इसकी आड़ में किसी भी मुद्दे को लेकर कोई भी राजनीति करना ठीक नहीं है। सभी धर्मों के अनुयायियों के मान-सम्मान का बराबर ध्यान रखना बहुत जरूरी है। मायावती ने पोस्ट के जरिये कहा कि जैसा कि मालूम है कि इस समय रमज़ान चल रहे हैं और इसी बीच जल्दी होली का भी त्योहार आ रहा है। जिसे मद्देनजर रखते हुये उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में सभी राज्य सरकारों को इसे आपसी भाईचारे में तब्दील करना चाहिए तो यह सभी के हित में होगा।
उधर इस मुद्दे को लेकर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस नेता उदित राज आदि ने जिस तरह अनुज चौधरी के खिलाफ बयान देना शुरू किया जाहिर है कि उसकी प्रतिक्रिया तो होनी ही थी. उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और महाराष्ट्र तक बयान वीर बिलों से बाहर आ गए जिस तरह की जहरीली बयानबाजी हो रही है उससे सबसे ज्यादा नुकसान उन मुस्लिम धर्मगुरुओं का हुआ है जिन लोगों ने शांति का रास्ता दिखाया।
विपक्ष इसे भारत की धार्मिक स्वतंत्रता और मुसलमानों के खिलाफ इस तरह बता रहे हैं कि जो शांतिपूर्ण लोग हैं वो भी रेडिकल हो जा रहे हैं. जब हमारे देश के कुछ नेता इस बयान पर राजनीति करके इसे मुसलमानों के खिलाफ बताने में जुटे हैं, ठीक उसी समय कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा है कि वो अनुज चौधरी के बयान में कुछ भी गलत नहीं मानते और वो होली के दिन जुमे की नमाज़ का समय बदलने के लिए तैयार हैं।
इस मुद्दे को लेकर तमाम सियासतदान हाथ सेंकने के लिए बयानबाजी करने लगे। यूपी के एक विधायक ने यहां तक कह दिया कि होली के रंग से अगर दिक्कत है मुस्लिम समुदाय को तो उनके लिए अस्पतालों में अलग वॉर्ड भी बनवाना चाहिए. आखिर जिसका धर्म रंग नहीं बर्दाश्त कर पा रहा है वो हिंदुओं के साथ किस तरह अस्पतालों में इलाज करवाएंगे. इसी तरह के बयान उत्तर प्रदेश के एक मंत्री रघुराज सिंह का भी आया कि जिन लोगों को होली के रंगों से दिक्कत है वो लोग बुरके की तरह का एक तिरपाल बनवा कर ओढ़ लें।
बिहार के एक विधायक ने कहा मुस्लिम लोग उस दिन घर से बाहर ही न निकलें. बीजेपी विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल का कहना है कि अगर बाहर निकलना जरूरी हो, तो उन्हें 'कलेजा बड़ा' रखना होगा, क्योंकि होली के दौरान कोई रंग लग सकता है जिसे उन्हें सहन करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा, 'जुमा साल में 52 बार आता है, लेकिन होली सिर्फ एक बार. मुसलमान रंग-गुलाल को बुरा मानते हैं, तो उन्हें घर में ही रहना चाहिए.
अगर बाहर निकलें, तो रंग सहन करें।
इस सारे प्रकरण की शुरुआत तब हुयी जब शांति समिति की बैठक में सम्भल पुलिस के सर्किल ऑफिसर अनुज चौधरी ने केवल यही कहा था कि जुमे की नमाज़ साल में 52 बार पढ़ी जाती है और होली का त्योहार साल में एक बार मनाया जाता है. इसलिए जिन मुसलमानों को होली के रंगों से दिक्कत है, वो अपने घरों से उस दिन बाहर ना निकलें और अपने घरों पर रहकर ही जुमे की नमाज़ करें. कितनी सीधी बात थी. इस बात को तिल का ताड़ बना दिया गया. सीधी सी बात थी कि होली हर महीने और हर हफ्ते नहीं आती है।
ऐसे मौके पर मुस्लिम समुदाय को खुद आगे आकर ये पहल करनी चाहिए थी. तमाम मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने इस संबंध में सौहार्द बढ़ाने वाला बयान दिया भी. कई क्लैरिक्स ने तो जुमे की नमाज का टाइम भी बदलने की पहल की. लेकिन इस मुद्दे पर फिरकापरस्त नजरिया रखने वाले सियासतदानों को मौके की तलाश पूरी हो गयी और उन्होंने बयान के पक्ष विपक्ष में हो हल्ला मचा कर रंगों के त्योहार को बदरंग करना शुरू कर दिया।
आपको बता दें कि लखनऊ में ईदगाह मस्जिद के इमाम और इस्लामिक सेंटर आफ इंडिया के सदर ने ऐलान है कि 14 मार्च को जुमे की नमाज़ दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर नहीं बल्कि दो बजे पढ़ी जाएगी।
इसी संस्था ने देश की दूसरी मस्जिदों से भी ये अपील की है कि वो हिन्दुओं के साथ अपने भाईचारे को कायम रखते हुए जुमे की नमाज़ के समय को आगे बढ़ा सकते हैं और ऐसा करने से नमाज़ का महत्व कम नहीं होगा. ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने भी देश के सभी इमामों से जुमे की नमाज़ को देर से पढ़ाने की अपील की है. और मुसलमानों से ये भी कहा गया है कि वो होली के दिन दूर की मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने के लिए ना जाएं और स्थानीय मस्जिदों में ही जुमे की नमाज़ को अता करें और इसे ही असली धर्मनिरपेक्षता और भाईचारा कहते हैं।
उत्तर प्रदेश के संभल में होली के जुलूस मार्ग पर पड़ने वाली 10 मस्जिदों को तिरपाल से ढका गया है। इसमें शाही जामा मस्जिद भी शामिल है।अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्रीशचंद्र ने कहा कि दोनों समुदायों के बीच समझौता होने के बाद होली जुलूस के पारंपरिक मार्ग से लगे धार्मिक स्थल ढके रहेंगे।ज्ञात हो कि संभल की जामा मस्जिद में मंदिर होने को लेकर विवाद चल रहा है।
शाहजहांपुर में 67 मस्जिदों पर तिरपाल लगाई गई है और जुलूस मार्ग पर पड़ने वाली मस्जिदों में जुमे की नमाज का समय बदला गया है। जुलूस वाले मार्ग तैनाती के लिए दूसरी जगहों से 1,000 अतिरिक्त जवानों को बुलाया गया है।इसके अलावा जौनपुर, मिर्जापुर, ललितपुर, औरैया, लखनऊ, मुरादाबाद, उन्नाव, बरेली, अयोध्या समेत कई जगहों पर जुमे की नमाज का वक्त आगे बढ़ाया गया है, ताकि जुलूस खत्म होने के बाद नमाज अदा की जा सके।
पुलिस टीमें संवेदनशील इलाकों में लगातार फ्लैग मार्च कर रही हैं। बाजारों, धार्मिक स्थलों और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में गश्त की जा रही है और भीड़ को काबू करने के लिए बैरिकेड्स लगाए गए हैं। किसी भी भड़काऊ सामग्री या फर्जी खबरों पर नजर रखने के लिए सोशल मीडिया की भी निगरानी की जा रही है। पुलिस टीमें सार्वजनिक स्थानों और वाहनों के अंदर शराब पीने को रोकने के लिए औचक निरीक्षण कर रही हैं।
बहरहाल इस सारे प्रकरण के मूल में वह प्रतिकार भी कहीं न कहीं उभार ले रहा है जो एक आजादी से पहले साढ़े आठ सौ साल के विधर्मी राज के दौरान बहुसंख्यकों की भावना को लगातार आहत करने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है आजादी के बाद बनी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति वाली सरकार के राज मे एक समुदाय को कानून की अवमानना कर मनमानी करने का भरपूर अवसर दिया गया जिसके चलते एक समुदाय के लोगों द्वारा खुद को कानून से ऊपर मानकर व्यवहार किया जाता रहा।
अब दक्षिण पंथी राष्ट्रवादी विचारों की सरकारों के सत्ता में आने के बाद बहुसंख्यक समाज अपने समान लोक अधिकार आस्था और श्रद्धा के मुद्दे पर एक जुट होकर खड़ा हो रहा है यह शोषणकारी और तुष्टिकरण वाली राजनीति के लिए सहन करना कठिन है और यही एक वजह है कि कुछ सियासतदान रंगो में भीगने की नसीहत देने के स्थान पर रंगों से परहेज करने और साझी संस्कृति को बदरंग करने की जुगत कर रहे हैं लेकिन आम आदमी इस सियासत को जान चुका है और किसी उकसावे मे आने वाला नही है अतः रंग भी खेलेंगे और शांति पूर्वक जुमा की नमाज भी होगी।
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