भारतीय संस्कार बनाम पश्चिमी जीवन शैली l
भौतिकवाद की बहुलता।
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अंग्रेजों के आने के पूर्व भारतीय संस्कृति धार्मिक, आध्यात्मिक, परंपरा वादी, भाग्यवादी रही है। अंग्रेजों के भारत आने के बाद और उनके संपर्क में रहने से भारतीय जीवन का स्वरूप काफी हद तक परिवर्तित एवं बदले हुए स्वरूप में आया था । धार्मिकता आध्यात्मिकता तथा त्याग व ममता को व्यापक भौतिकवादी दृष्टिकोण से काफी नुकसान पहुंचा है। पश्चात विचारधारा के संपर्क में आने से परंपराओं के प्रति मोह धीरे-धीरे कम होने लगा एवं नई वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली सोच के कारण भाग्य वाद के प्रति आस्था उत्पन्न होने लगी। इसके अतिरिक्त भारतीय दर्शन के आंतरिक गुणों आदर्श नैतिकता,बुद्धि आदि में भी आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं।
और इन घटकों पर नवीन शिक्षा पद्धति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। अंग्रेज भारत को ऐसा वर्ग विशेष बनाना चाहते थे, जो जन्म और रंग से तो पूर्वी हों, पर अन्य सभी दृष्टिकोण से सब अंग्रेज बने रहें। भारत का उच्च वर्ग या अमीर तबका, राजा, महाराजा,नवाब धीरे-धीरे अंग्रेजी शिक्षा के गुलाम होते चले गए,और पाश्चात्य संस्कृति की ओर झुकते गए। भारतीय संस्कृति को विस्मृत करने में यही उच्च वर्ग या अमीर लोग काफी हद तक जिम्मेदार है। यह लोग अंग्रेजियत की नकल करने लगे,तथा भारतीय समाज धर्म दर्शन में इनकी कोई रूचि अविश्वास नहीं रहने लगा था। और इनकी नकल में इनके मातहत, सिपहसालार भी उसी रंग में डूबने लगे थे। धीरे धीरे पश्चिमी सभ्यता ने भारतीय संस्कृति पर अपना व्यापक प्रभाव डालना शुरू कर दिया था।
पश्चिमी संस्कृति का वृहद अध्ययन करने वाले भारतीय विद्वानों ने पश्चिम की ओर इस अंधे आकर्षण का खुलकर विरोध भी किया था। इन्हीं विद्वानों ने भारतीय जनमानस को अपनी शक्ति और धर्म में विश्वास करने की प्रेरणा देकर उनका मार्गदर्शन किया था। तत्पश्चात भारतीय शोधकर्ताओं ने पश्चिम सभ्यता तथा उसकी शिक्षा का व्यापक परीक्षण शुरू कर दिया था। और इन्हीं शोधकर्ताओं और विद्वानों की अथक मेहनत से प्राचीन परंपराओं में सर्वश्रेष्ठ का चयन कर एवं पाश्चात्य दर्शन की श्रेष्ठ धारणाओं को मिलाकर एक नए दर्शन को समाज के सामने प्रस्तुत किया था।
भारतीय विद्वानों, शोधकर्ताओं एवं विचारकों ने प्राचीन भारतीय कुप्रथा जैसे छुआछूत, पर्दा प्रथा,बहु विवाह, बाल विवाह, देवदासी प्रथा एवं महिला शिक्षा, तथा निरक्षरता के विरोध में अभियान चलाकर सामाजिक चेतना का आह्वान किया था। पर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर भारतीय समाज में नैतिक विचारों में परिवर्तन की शुरुआत हुई। इस परिवर्तन के साथ भारतीय जनमानस के रहन-सहन खानपान, वेशभूषा,विवाह समारोह, आचार विचार, शिष्टाचार तथा व्यवहार में पाश्चात्य शिक्षा की झलक दिखाई देने लगी। जाति प्रथा के कठोर नियम ढीले पड़ने लगे।
बाल विवाह प्रथा में बेहद कमी आने लगी। पश्चात दर्शन ने भारतीय संस्कृति में जीवंत एवं चरित्र को एक नया बदलाव दिया था। पाश्चात्य संस्कृति में धीरे-धीरे भारतीय रहन-सहन रीति-रिवाज प्रथाओं को प्रभावित किया। ड्रेसिंग सेंस, खान पान,बोलने चालने तथा अभिवादन के तरीकों में बड़े परिवर्तन हुए। वेस्टर्न पद्धति से संस्कृति शिक्षा विचारधाराओं ने भारत को दुनिया के राष्ट्रीय जीवन के संपर्क में ला खड़ा किया था। देश के अंदर विभिन्न अलग-अलग विचारधाराओं के समूहों को एक सांस्कृतिक समानता के मंच पर लाकर खड़ा किया।
और इसी सांस्कृतिक समानता ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एकता और राष्ट्रीयता की नई मिसाल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रदान की थी। विहंगम दृष्टिकोण से देखा जाए तो पाश्चात्य दर्शन ने भारतीय परंपरा रीति रिवाज में महत्वपूर्ण सुधार लाने की एक नई पहल की थी। प्राचीन परंपराओं के फल स्वरुप भारतीय जनमानस को रीति-रिवाजों एवं पाखंडी पन ने जीवन में जंजीर बनकर जकड़ रखा था। संस्कृति तथा कुप्रथाओं ने स्वतंत्र विचारों को मस्तिष्क में ही कैद कर लिया था ।एवं आमजन का जीना मुश्किल हो गया था। प्रभाव तथा कुरीतियों से सबसे ज्यादा सजा महिलाएं बालिकाएं तथा बच्चों को ही मिल रही थी।
पाश्चात्य शिक्षा तथा दर्शन ने शिक्षा धर्म तथा आदर्शों के मूल्यों में सुधार लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। पाश्चात्य शिक्षा से अंधविश्वास के बदले बुद्धि विवेक और तर्क ने वैज्ञानिक विचारधारा के हिसाब से जीवन यापन करने की पद्धति से अवगत कराया था। पाश्चात्य शिक्षा तथा दर्शन के कारण ही भारत में ईसाई धर्म समाज की स्थापना हो पाई थी। ईसाइयत का भारत में जन्म अंग्रेजों के आने के बाद ही हुआ था।
पाश्चात्य सभ्यता एवं शिक्षा से भारतीय महिलाओं पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। उनकी शिक्षा-दीक्षा रहन सहन तथा व्यवहार में काफी परिवर्तन आया तथा भारतीय महिलाओं ने खुली हवा में सांस लेने के अवसर भी तलाशना शुरू कर दिया था। और आज भारत में महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। भारतीय जनमानस में पाश्चात्य सभ्यता का बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा ।जीवन में विकास भी हुआ, और नागरिकों को नए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी साक्षात्कार हुआ।
पर इसके साथ पाचल सभ्यता ने भारत को बहुत सारी विकृतियां भी प्रदान की है। जैसे स्त्रियों का खुलापन, नशे की खुली लत एवं महिलाओं तथा पुरुषों का वासनायुक्त खुला व्यवहार, अशोभनीय स्तर पर आ गया है। नशे की अधिकता,महिलाओं के खुले व्यवहार को देखकर आने वाली पीढ़ी की नैतिक शिक्षा में बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ने वाला है। इसमें भारतीय शिक्षा पद्धति में भारतीय संस्कृति के दर्शन के अध्यापन की भी महती आवश्यकता है।
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