सत्ता का मुख्य आधार दमन है जबकि साहित्य शोषण एवं दमन के खिलाफ संघर्ष के रास्ते सुझाता है

सत्ता का मुख्य आधार दमन है जबकि साहित्य शोषण एवं दमन के खिलाफ संघर्ष के रास्ते सुझाता है

 डलमऊ रायबरेली -निराला सृजन मंच एवं वी आर फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में मुंशी प्रेमचंद की जयंती की पूर्व संध्या पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन शंकर नगर मुराई बाग में किया गया।अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार राम नारायण रमण ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद विश्व के महानतम रचनाकारों में रहे हैं जिन्होंने न केवल दलित स्त्री,मज़दूर व किसानों का साहित्य में चित्रण किया बल्कि उनके संघर्षों के साथ खड़े भी हुए। कवि रमाकांत ने कहा कि सत्ता का मुख्य आधार दमन है जबकि साहित्य शोषण एवं दमन के खिलाफ संघर्ष के रास्ते सुझाता है।

कवि एवं समीक्षक वाई.वेद प्रकाश ने कहा कि प्रेमचंद को याद करने का अर्थ है सुख सुविधाओं को त्यागकर सत्ता के झूठ व दमन के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ाना। सविता यादव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जी का साहित्य कई अर्थों में विरल है। स्मृति मिश्रा ने कहा कि प्रेमचंद समय के आगे चलने वाले साहित्य कार थे। ओमप्रकाश ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का साहित्य लोक एवं जन के बीच इसलिए छा गया क्योंकि वह उनकी बोली बानी में था।

प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद  का साहित्य,सत्ता,संस्कृति एवं बौद्धिक समाज से होता हुआ आम आदमी की आवश्यकता बना। विचार गोष्ठी में सम्राट,सत्य प्रकाश, एंजेलिना प्रिया, आभास, आन्या, प्रिया, अमित कुमार, खुशबू, महक, खुशी, बसंत लाल गुप्ता, दयाराम यादव, सुंदर लाल मनमौजी, प्रशंसा आदि ने उपस्थित रहकर कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। गोष्ठी का संचालन संचिता गौरी ने किया।

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