आओ गंगा नहाएं हम और आप भी

आओ गंगा नहाएं हम और आप भी

राजनीति से हटकर आइये आज गंगा की बात  करते हैं। गंगा हमारे लिए केवल एक नदी नहीं है बल्कि संस्कृति का एक जीवंत प्रतीक है। हम गंगा का पुत्र होने में अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। गंगा की सौगंध खाते हैं,अपनी सच्चाई को प्रमाणित करने के लिए गंगाजल उठाते है।  पाप निवारण के लिए गंगा स्नान करते हैं। और जब कोई बड़ा काम सम्पन्न  करने में कामयाब हो जाते हैं तो राहत की सांस लेते हुए कहते हैं -' चलिए हमने तो गंगा नहा ली। 'गंगा के बारे में हर भारतीय जानता है। पूरब का हो ,चाहे पश्चिम का,उत्तर का हो या दक्षिण का,सबके लिए गंगा का महत्व है। ये बात अलग है कि सबकी गंगा अलग-अलग है। गंगा दरअसल प्रयाग या हरिद्वार में ही नहीं बहती,बल्कि हर व्यक्ति के मन में बहती है। समस्या ये है कि  इन तमाम गंगाओं का मिलन होना सुनिश्चित नहीं है।

 आपने राजकपूर की फिल्म ' संगम ' तो देखी ही होगी। इस फिल्म का शीर्षक गीत है ये सवाल खड़े करता है कि  ' तेरे मन की और मेरे मन की गंगा का मिलन होगा या नहीं ? गीतकार शैलेन्द्र ने जब ये गीत लिखा और शंकर   -जयकिशन ने इसे संगीतबद्ध  कर मुकेश से गवाया था तब ये सोचा भी न होगा कि गंगा एक समय में ' यक्ष -प्रश्न बन जाएगी और कोई भी इस सवाल का जबाब नहीं दे पायेगा कि  हमारे-आपके मन की गंगा का मिलन आज की सियासत होने देगी या नहीं ?

ईश्वर के वजूद को लेकर अक्सर मेरे मन में प्रश्न रहते हैं किन्तु गंगा को लेकर मेरे मन में कभी कोई दुविधा नहीं रही ।  मैंने जब से होश सम्हाला है गंगा को विभिन्न रूपों में देखा है। गंगा के प्रति अपने पूर्वजों के मन में अगाध शृद्धा  देखी है। हम भारतीयों में से बहुत से आज भी किसी क़ानून से,किसी अदालत से भले ही न डरते हों लेकिन गंगा से डरते हैं। उनका डर सम्मान की वजह से है। हर भारतीय आज भी गंगा को पाप-नाशिनी मानता है । पतित-पावन मानता है। और ये मान्यता कोई एक दिन में या 2014  के बाद नहीं बनी ।  ये सदियों,युगों और कल्पों  के बाद बनी है। हर भारतीय के घर में गंगा मौजूद  मिलेगी । शीशी  में ,कंटेनर  में।आखिरी वक्त में सभी को मोक्ष पाने के लिए गंगाजल की दरकार होती है ,भले  ही  उसने  जीवन  में कभी  गंगा स्नान  किया  हो  या   न  किया  हो।  

भगवान शिव को किसी ने नहीं देखा,भगीरथ को किसी ने नहीं देखा लेकिन गंगा को सबने देखा है। सबको गंगावतरण की पौराणिक कथा का ज्ञान है। सब मानते हैं  कि यदि रघुवंशी भगीरथ हठ न करते तो गंगा भूलोक में शायद न आती। शिव यदि गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने का साहस न दिखाते तो गंगा धरती पर या तो आती ही नहीं और यदि आ भी जाती तो समूची सृष्टि को अपने आवेग के साथ बहा ले जाती। गंगा दुनिया कि किसी दूसरे  देश में नहीं है। अमेरिका में नहीं ,चीन में नहीं ,जापान में नहीं ,रूस में नहीं। गंगा सिर्फ भारत में है और हम शान  से गर्व से कहते हैं कि  -' हम उस देश कि वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है। यानि गंगा हमारा आइडेंटिटी कार्ड है ,परिचय  पत्र  है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश हो जहाँ कि नागरिक अपने परिचय कि तौर पर अपने  देश की किसी नदी का इस्तेमाल करते हैं।

चूंकि 16  जून को गंगा दशहरा है ,इसलिए मै आपके सामने  गंगा -पुराण लेकर बैठ गया। वरना किसे  फुरसत है गंगा पर बात करने की। गंगा को लेकर हम आम भारतीय ही नहीं बल्कि हमारी सरकारें भी बहुत संवेदनशील दिखाई देतीं हैं लेकिन असल में होती नहीं हैं। वे दुनिया कि पाप धोने वाली गंगा कि शुद्धिकरण और उसके पुनर्जीवन कि लिए ' नमामि गंगे  ' प्रोजेक्ट तो बना लेते हैं किन्तु उसे भी सियासत के  रंग में रंग देते है।  भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ा देते हैं। भारत कि भाग्यविधाता चूंकि खुद को गंगा पुत्र कहते हैं इसलिए देश में नमामि गंगे प्रोजेक्ट को उनका दिव्यस्वप्न माना जाता है। भाग्यविधाता को गंगा ने तीसरा अवसर दे दिया लेकिन इस प्रोजेक्ट को आज तक पूरा नहीं किया जा सका मुमकिन है कोई मजबूरी रही हो। इस परियोजना पर हम भी बात नहीं करना चाहते ,अन्यथा कहा जाएगा की हम फिर सियासत  पर आ गए!

हम और आप साधारण इंसान हैं इसलिए हम और आप ऐसी  कोई  बात नहीं कर सकते  जो  असाधारण  हो। असाधारण बात करने का हक  असाधारण लोगों को ही है। बल्कि असाधारण बातें आजकल केवल अविनाशी लोगों का एकाधिकार माना जाता है। साधारण बात ये है कि हम गंगा को पूजते  हैं लेकिन उसकी  फ़िक्र  नहीं करते। हमें गंगा कि प्रति फिक्रमंद  होने कि लिए उन देशों से सीखना होगा जिनके पास गंगा  तो नहीं है लेकिन उनकी नदियाँ गंगा से सौ गुना  ज्यादा  स्वच्छ  हैं। विदेशी अपनी नदियों  कि लिए किसी सरकार पर निर्भर नहीं होते । वे ये कामखुद करते हैं ,लेकिन हम ये सब नहीं करते ।  हम गंगा दशहरे  पर गंगा को पूजेंगे,उसकी आरती उतारेंगे ,दान-पुण्य करेंगे  लेकिन उसकी कोख को गंदगी से भर आएंगे।

हमारी नब्बे साल की दादी फूलकुंवर अनपढ़ थीं  लेकिन जानतीं  थीं  कि   ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन गंगा जी की पूजा, गंगाजल से स्नान जरुर करना चाहिए. मान्यता है इससे व्यक्ति के कई जन्मों के पाप धुल जाते है। वे गांव के पास बहने वाली बेतवा  को ही गंगा मानकर  उसमें  डुबकी  लगा  लेतीं  थी।उनके मायके कि पास भी गंगा नहीं थी,वहां जमुना थी । वे उसे भी गंगा मानतीं थीं।  हमारे पास भी गंगा नहीं बल्कि चंबल है । हम चंबल को ही अपनी गंगा मानते हैं। गंगा को बचाने  का मतलब हर नदी को बचाने से होना  चाहिए  तब तो गंगा को पूजने  का,उसमें नहाने  का कोई अर्थ  सार्थक  हो सकता  है।


हमने संविधान , भाईचारा,मंगलसूत्र,मुजरा ,आरक्षण आदि  मुद्दों पर हाल ही में चुनाव देखा है। हमारे राजनितिक दलों और नेताओं ने तो चुनाव कराकर गंगा नहा ली ,लेकिन  गंगा का  जिक्र  एक  बार  भी  नहीं  किया।  कोई सत्ता पक्ष में पहुँच गया तो कोई प्रतिपक्ष  में। जो कहीं नहीं पहुंचा वो निर्दलीय  है,जहाँ ज्यादा चारा मिलेगा  ,वहां  पहुँच जायेगा । लेकिन आप तो अपनी सोचिये। अपनी  गंगा की सोचिये। आप  गंगा दशहरा के दिन तुलसी के पत्तों को गंगाजल से धोकर , फिर इन्हें एक लाल कपड़े में बाधकर तिजोरी में रख  कर अपनी  दरिद्रता दूर करने और घर  में लक्ष्मी रोकने कि फेर में न पड़ें। तुलसी में जल अर्पित कर श्री तुलसी स्तोत्रम्‌ का पाठ करें या न करें  ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला गंगा की सेहत पर।  

अंत  में भले ही गंगा जू  मां गंगा धरती पर सागर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष देने के लिए आई थी ,लेकिन वे देश कि करोड़ों  हिन्दू -मुसलमानों  को मोक्ष  दिला  सकतीं  है। शर्त एक ही है कि आप देश की गंगा-जमुनी  संस्कृति  के खिलाफ  खड़े लोगों को पहचानकर  उनके खिलाफ  खड़े हो जाएँ। आपका  गंगा स्नान हुआ  मान  लिया  जाएगा। आपकी  गंगा  दशहरे की पूजा  को गंगा जी स्वीकार कर लेंगी। गंगा ने आजतक  हिंदू - मुसलमान  नहीं किया । तब भी जब मुगलों  ने उसका   नाम  अल्लाहाबाद   रख  दिया था  और आज भी जब उसे दोबारा  प्रयाग  कहा जाने  लगा है। शुभकामनाओं  सहित।

राकेश  अचल  

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