एमसीडी की 161वीं वर्षगांठ: हालात बद से बदतर,पर कभी म्यूनिसिपल पुलिस तक एमसीडी के थी अंडर
स्वतंत्र प्रभात। एसडी सेठी।
दिल्ली। दिल्ली नगर निगम अपनी 161वीं वर्षगांठ उत्सव मनाने जा रही है। 31 मई से 2 जून तक चलने वाले स्थापना दिवस उत्सव को चुनाव आचार संहिता के चलते जून महीने के तीसरे हफ्ते तक के लिए टाल दिया गया है। एमसीडी के महाउत्सव के आयोजन कार्यक्रम लिए अडिशनल कमिश्नर इंजीनियरिंग की अध्यक्षता में बाकायदा एक कमेटी का गठन किया गया है। 4 जून को लोकसभा के परिणाम घोषित होने के बाद ही अब इस कार्यक्रम पर काम शुरू हो सकेगा। उल्लेखनीय है कि 1जून 1862 में अंग्रेजी हुकुमत में ही दिल्ली मिन्युसिपल काॅर्पोरेशन का गठन हुआ था। 1862 में नगर निगम की शुरूआत नगर पालिका के नाम से हुई थी। बता दें कि 1 जून 1863 में इसकी पहली बैठक कर्नल जी डब्ल्यू हैमिल्टन की अध्यक्षता में हुई थी।
नगर पालिका के पहले कमिश्नर हेमिल्टन से लेकर अभ एमसीडी कमिश्नर ज्ञानेश भारती और दिल्ली की पहली महिला मेयर अरूणाचल आसफ अली से लेकर वर्तमान मेयर डाॅक्टर शैली ऑबेराॅय तक आते-आते दिल्ली नगर निगम का स्वरूप काफी बदल गया है। अब दिल्ली और नई दिल्ली को दो अलग-अलग बाॅडी में तब्दील कर दिया गया है।नगर पालिका की जगह नई दिल्ली नगर पालिका वजूद में है। बता दें कि अंग्रेजी हुकुमत में बाकायदा कानून व्यवस्था यानि दिल्ली पुलिस,फायर ब्रिगेड तक की जिम्मेदारी मिन्युसिपल काॅर्पोरेशन के अंडर थी। मिन्युसिपल पुलिस के नाम से तमाम कानून व्यवस्था पुलिस थाने सब नगर निगम के आधीन थे।
वर्तमान में दिल्ली नगर का कार्य खासा विस्तार ले चुका है। इस वक्त एमसीडी को कुल 250 वार्डो में बांट दिया है। 1.50 लाख अधिकारियों और कर्मचारियों समेत लंबी चौडी फौज तैनात है। सालाना बजट की बात करें तो साल 1863-64 में नगर निगम का पहला बजट सिर्फ 98,276 रूपये था,जो वर्तमान मे कई गुना बढकर 16000 करोड रूपये हो गया है।दिल्ली पुलिस और फायर ब्रिगेड को एमसीडी से हटा दिया है। 1861 से 2010 तक नगर निगम का हेड क्वार्टर चांदनी चौंक में स्थित टा उन हाॅल में था। वर्तमान में क्नाॅट प्लेस स्थित सिविक सेंटर में मुख्यालय है।
ये तो रही इसके इतिहास की बात। लेकिन जिस मकसद से इसका गठन हुआ था ,खासतौर पर नागरिकों की सेवा के लिए था। लेकिन राजनीति कारणों से इसका समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहा है।इससे काम की जगह सिर्फ राजनीति हो रही है। अनुभवहीनता के चलते अक्षमता ज्यादा हावी हो गई है। इसके प्रशासनिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
Comment List