संजीव-नी।

पृथ्वी पर न करो इतना अत्याचार,

संजीव-नी।

पृथ्वी पर न करो इतना अत्याचार,

पृथ्वी पर न करो इतना अत्याचार,
मानव जीवन,वन करे चित्कार।
वनों का विनाश मानवीय भविष्य
के लिए खतरनाक, विनाशकारी
अब उसे संवारने की हमारी बारी।

क्यूं और कैसे हो गए हम,
प्रकृति के इतने बड़े दुश्मन
क्यूं नही दिखते हमें कटते वन
क्यूं हैं वनों के विनाश पर मौन।

आओ एक एक वृक्ष लगाएं,
ताज़ी हवा से जीवन बचाएं,
वनों का विकास है
हमारी महती जिम्मेदारी
चलों महकाये बगियां न्यारी।

हमारी सांसे तब तक चलेंगी,
जब जब हरियाली बचेगी,
पेड़ पौधे नहीं बचेगे,
हम क्या खाक बचेंगे।

न रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी,
न बचेंगे जंगल,न सांस चलेगी हमारी,
आओ ऐसी कूलर से नाता तोड़ो,
वनों की रक्षा से मानव को जोड़ो,

एक पेड़ ऐसी,कूलर से बढ़कर,
वन रक्षा में हिस्सा ले बढ़-चढ़कर,
पेड़ रहेगें तो ताज़ा सांस ले पाएंगे,
नन्हों की सुरक्षा तब ही कर पाएंगे।

गर अगली पीढ़ी को मुंह है दिखाना है,
अपने परिवार का जीवन बचाना है
तो वर्ष मे दस दस वृक्ष लगाना है
इस धारा को खुशहाल बनाना है।

संजीव ठाकुर,

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