गैंडासबुजुर्ग आत्मदाह मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों की बलरामपुर में इतनी चर्चा क्यों

आखिकार मिलेगा राम बुझारत की पत्नी विधवा पत्नी को न्याय, पुलिस द्वारा थाने की ज़मीन कब्जाने के मामले में एसआईटी होगी गठित

शुरू से लेकर अंत तक समझिए गैंडास बुजुर्ग में दलित युवक द्वारा आत्मदाह का मामला, जिसमें हाईकोर्ट ने उच्चस्तरीय स्पेशल जांच टीम के गठन का आदेश दिया है

विशेष संवाददाता

मृतक दलित रामबुझारत थानाध्यक्ष को प्रार्थनापत्र देकर लगाता रहा न्याय की गुहार, एसएचओ ने पीड़ित परिवार को ही थाने में कैद कर पीडित की जमीन कर लिया कब्जा

दो-दो अपर पुलिस अधीक्षकों की जांच में एसएचओ पवन कनौजिया मिला था दोषी, फिर भी नहीं हुई कार्यवाही

 

मामला तूल पकड़ते देख डीआईजी ने बहराइच पुलिस को सौंपी थी जांच, एएसपी कर रहें हैं मामले की इन्क्वायरी

उत्तर प्रदेश का बलरामपुर जिले में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के खंडपीठ लखनऊ के दो फैसले आजकल बेहद चर्चा में हैं. यह दोनों फैसले, एक ही मामले से जुड़े हुए हैं. एक रिट पेटीशन में कुसुमा देवी नाम की महिला वादिनी है तो दूसरे रिट में जिस थाने में यह घटना घटित हुई थी, उसके तत्कालीन एसओ वादी है. करीब सात महीने पहले घटित हुए इस मामले में न्याय के लिए वादिनी कुशमा, जब महीनों भटकती रही, लेकिन उन्हें न्याय की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. न्यायालय से उन्हें न्याय की उम्मीद जगी. 

वहीं, दूसरी तरफ जिले के कलेक्टर अरविंद कुमार सिंह ने महिला को न्याय दिलवाने के लिए एक कदम आगे बढ़ते हुए मामले में मजिस्ट्रेटियल जांच की अनुशंसा की और उसी जांच के आधार पर आरोपी पुलिसकर्मियों पर करवाई करने का मजिस्ट्रेटियल आदेश अपनी सांविधिक शक्तियों के तहत जारी किया. अब इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ लखनऊ ने एक नहीं, दो आदेशों को पारित किया है. एक आदेश के जरिए, निलंबित आरोपी एसओ को उसकी रुका वेतन मिलेगा तो दूसरे आदेश के जरिए इस मामले में जांच करने के लिए ैप्ज् का गठन किया जाएगा और पूरी जांच हाईकोर्ट की निगरानी होगी. इसके बाद इस मामले को लेकर जिले का माहौल गर्म दिखाई दे रहा है, तरह तरह की चर्चाएं की जा रही है.

पहले जानते हैं, क्या है पूरा मामला :- 

मामला बलरामपुर जिले के गैंडास बुजुर्ग थाना क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. यही पास के धोबहा गांव के रहने वाले, दलित समाज से आने वाले राम बुझारत और उनके परिजनों के दावे वाली निर्माणाधीन थाने के पास कुछ जमीन थी. उक्त जमीन का मामला सिविल न्यायालय में विचाराधीन था. 23/10/2023 को जब थाने के गेट से सटी जमीन पर निर्माण के लिए पिलर खुदवाया जाने लगा तो राम बुझारत ने इस अवैध निर्माण को रोकने के लिए तत्काल एक एप्लीकेशन थानाध्यक्ष दिया. उस दिन महानवमी का त्यौहार मनाया जा रहा था. उसके एक दिन बाद दशहरे के दिन यानी की 24/10/23 को जब पुलिसकर्मियों द्वारा तमाम लोगों की मिलीभगत के साथ थाने के निर्माणाधीन भवन से सटी जमीन पर जब पिलर खड़ा कर दिया गया तो राम बुझारत इतना होपलेस हो गया. उसने वहीं पर फेसबुक लाइव करते हुए आत्मदाह करके आत्महत्या की कोशिश की. 

जब इतना बड़ा मामला घटित हो गया. तब उसके बाद जिला प्रशासन और पुलिस के हाथ पांव फूलने शुरू हुए. आनन फानन में स्थानीय लोगों और उसके परिजनों द्वारा राम बुझारत को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया. जहां से उसे जिला अस्पताल, फिर उसके बाद लखनऊ के केजीएम मेडिकल यूनिवर्सिटी के लिए रेफर कर दिया गया. 6 दिनों तक राम बुझारत जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ता रहा. आखिरकार वह यह जंग हार गया. इसके बाद जांच पड़ताल और मान-मनौवल का दौर शुरू हुआ. 

खैर, प्रशासन द्वारा समझाने-बुझाने के बाद राम बुझारत के परिजनों ने उसका अंतिम संस्कार करवा दिया. लेकिन जमीन के एक टुकड़े के लिए आत्मदाह करने वाले राम बुझारत और उसकी पत्नी व बच्चों को न्याय नहीं मिल सका और धीरे-धीरे पुलिस व स्थानीय प्रशासन द्वारा न्याय की उम्मीद भी मरने लगी. 

आखिरकार, राम बुझारत की पत्नी कुसुमा देवी ने ब्त्च्ब् की धारा 156/3 के तहत न्यायालय में एक वाद दायर कर उक्त मामले में एफआईआर दर्ज करवाने की मांग की. जिला न्यायालय द्वारा मामले में राजस्वकर्मियों व अन्य के खिलाफ तो एफआईआर पंजीकृत किया गया. लेकिन पुलिस कर्मियों पर पता नहीं किस रिपोर्ट आधार पर  थ्प्त् नहीं दर्ज किया गया.

थानाध्यक्ष, लेखपाल व गांव के कुछ अन्य लोगों पर लगा था आरोप :-  

घटना की रिपोर्ट करते हुए प्रमुख अखबारों ने उसे दौरान लिखा था कि निर्माणाधीन थाना भवन के बाहर विवादित भूमि पर पुलिस संरक्षण में हुए पिलर का निर्माण देखकर राम बुझारत सहन गया था. पुलिस की दबंगई से उसे अपनी पुश्तैनी जमीन अवैध रूप से कब्जा होकर उसके हाथ से चले जाने का डर उसके मन में बैठ गया था. इसी से आहत व छुब्ध होकर राम बुझारत ने आत्मदाह का रास्ता चुना. 

उस दौरान प्रमुख अखबारों ने लिखा था कि इस मामले में डीएम अरविंद सिंह के निर्देश पर अपर जिला अधिकारी प्रदीप कुमार सिंह व अपर पुलिस अधीक्षक नम्रता श्रीवास्तव मजिस्ट्रेट जांच की अनुशंसा पर थानाध्यक्ष के साथ ही कार्यदायी संस्था से जुड़े अधिकारियों और पीड़ितों का बयान दर्ज किया. 

बताया जाता है कि अपर पुलिस अधीक्षक नमृता श्रीवास्तव ने अपनी प्रारंभिक जांच में थाने के प्रभारी पवन कुमार कन्नौजिया को दोषी माना. बताया जाता है उन्हीं की अनुशंसा पर

वहीं, दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर पुलिस के द्वारा किए गए खेल सभी के चर्चा का विषय बना हुआ था. थाना भवन का निर्माण कर रही कार्यादारी संस्था पुलिस आवास विकास निगम के अफसर की माने तो थानाध्यक्ष ने फोन कर कर पहले पिलर लगाने की बात कही थी. लेकिन थाना भवन के लेआउट से बाहर निर्माण का अधिकार न होने के कारण संस्था के लोगों ने इससे इनकार कर दिया था. इसके बावजूद विवादित जमीन पर पिलर का निर्माण कैसे हो गया, यह सवाल पुलिस व प्रशासन के उच्च अधिकारियों को परेशान कर रहा था.

न्याय की उम्मीद खो चुका था राम बुझारत :- 

कहा जाता है कि पुलिस ने कार्यदाई संस्था लोगों व अन्य लोगों के साथ मिली भगत करते हुए राम बुझारत के दावे वाली जमीन पर अवैध निर्माण का टाइमिंग को भी बहुत सटीक ढंग चुना था. जिस दिन राम बुझारत के दावे वाली जमीन पर जेसीबी मशीन के माध्यम से पिलर खोदा गया था, उस दिन शनिवार था. उसके एक दिन बाद स्थानीय स्तर पर निर्माण की बात फैलने लगी थी। 

शनिवार, रविवार को अवकाश था. राम बुझारत ने सोमवार को थाना गैंडास बुजुर्ग पर इस बाबत शिकायती पत्र दिया और उसके दूसरे दिन दशहरे का त्यौहार था. थाने पर उसे करीब 3 घंटे तक बिठाए रखा गया. उसके बाद जब तमाम लोगों हस्तक्षेप किया तो उसे छोड़ा गया. लेकिन उससे कहा गया कि उक्त ज़मीन को पाने के लिए उसे कोर्ट से सटे आर्डर लाना होगा. गौरतलब है कि 4 दिन छुट्टी होने के करण राम बुझारत को किसी तरह सटे नहीं मिल सकता था. 

सूत्र बताते हैं, निर्माणाधीन थाने की जमीन के गेट के पास हो रहे इस अवैध निर्माण का मकसद दिया था कि छुट्टी के दिनों में राम बुझारत की पड़ी हुई जमीन पर अवैध रूप से पहले कब्जा कर लिया जाएगा. फिर आने वाले समय में कमर्शियल जमीन को महंगे दामों में बेच दिया जाएगा. लेकिन राम बुझारत को जब स्थानीय थाने के स्तर से न्याय मिलता नहीं दिखाई दिया तो उसमें आत्मदाह का प्रयास कर लिया. इस घटना में वह लगभग 60ः झुलस गया था और और इस तरह से तत्कालीन थानाध्यक्ष समेत अन्य लोगों के अरमानों पर पानी फिर गया. 
       
       बताया जाता है थाना भवन का निर्माण निर्धारित डीपीआर के अनुसार हो चुकी थी. लेकिन थानाध्यक्ष व अन्य पुलिस कर्मियों द्वारा ठेकेदार व पुलिस आवास निगम के अधिकारियों तमाम जगहों पर की गई शिकायतों का निस्तारण न होने और स्थानीय स्तर व थाने पर सुनवाई न होने के कारण उसे मजबूरन यह कदम उठाना पड़ा. एसओ और ठेकेदार की देखरेख में थाना भवन का निर्माण हो रहा था. छुट्टी का दिन होने के कारण अधिकांश श्रमिक भी अवकाश पर थे और इसी दौरान सारा का सारा खेल किया गया.

      उक्त मामले में जिलाधिकारी अरविंद सिंह ने मजिस्ट्रेट जांच में थानाध्यक्ष और पुलिसकर्मियों की भूमिका को संदिग्ध पाया और उसी समय 27/10/23 थानाध्यक्ष और अन्य पुलिसकर्मियों के विरूद्ध कानूनी आदेश पुलिस अधीक्षक को दिए, परन्तु 6 महीने बीतने के बाद भी जब पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं कि गई और राम बुझरत का परिवार न्याय के लिए दर दर भटकता रहा तब मजबूरन जिला मजिस्ट्रेट अरविंद सिंह ने अपने कोर्ट से 35 पेज का आदेश 30/04/ 24 को पवन कन्नौजिया के विरूद्ध पारित किया और पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया कि अन्य संलिप्त पुलिस कर्मियों के विरूद्ध कार्रवाई की जाए. लेकिन पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की और पुलिस डीएम के विरुद्ध के ही कोर्ट चली गयी। मामले की पहली तिथि 23/05/23

थानाध्यक्ष को निलंबित करते हुए उसपर कार्रवाई की अनुशंसा की गई और नीतिगत तौर लेखपाल को भी निलंबित कर दिया गया.

राम बुझारत व उसके परिजनों का मामला था कोर्ट में :- 

निर्माणाधीन थाना गैंडास बुर्जुग के गेट पर सटा वह प्लॉट बेहद महंगा बताया जाता है क्योंकि उसकी व्यवसायिक उपयोगिता है। जिस प्लॉट के टुकड़े के लिए राम बुझारत ने आत्महत्या की, उस पर उसके परिवार के लोगों का कई सालों से सिविल कोर्ट में मुकदमा चल रहा था. उक्त मामले में कोर्ट ने ज़मीन के लिए एक कमीशन रिपोर्ट का आदेश भी कर दिया था.

कोर्ट कमीशन 02/09/23 को हो जाने के कारण स्थानीय तहसील स्तर पर यह मामला किसी तरह से भी आदेश के कैटगरी में नही आ सकता था. खैर, राम बुझारत ने जिस दिन उसके दावे वाली जमीन पर कब्ज़ा हो रहा था, उस दिन भी उसने थानाध्यक्ष से न्याय की गुहार लगाई थी. लेकिन कोई सुनवाई नहीं की गई. 

वहीं, राम बुझारत और जमुना ने 23/10/23 को दिए अपने प्रार्थना पत्र में यह बात बताई. इसके साथ ही यह स्वीकार किया कि सिविल कोर्ट से निर्णय हो जाने के बाद ज़मीन जिसके भी हक़ में आएगा, उसके लिए वह फैसला स्वीकार होगा.

राम बुझारत की पत्नी ने उठाया कदम तो आगे बढ़ा मामला :- 

जब राम बुझारत की अंत्येष्टि और तेरहवीं करीब 3 महीने बीत गए और जब कोई कार्रवाई होती नहीं दिखी तो कुसुमा देवी ने जिला न्यायालय में एक वाद दायर करते हुए एफआईआर पंजीकृत करवाने की मांग की. लेकिन किसी कारण वश केवल राजस्व कर्मी और कुछ प्राइवेट व्यक्तियों पर ही एफआईआर हुई. बताया जाता है इस मामले में जिन अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज किया है, उसमें से कई लोग पिछले एक डेढ़ साल से विदेश में हैं. परन्तु आश्चर्यजनक रूप से पुलिसकर्मियों के ऊपर एफआईआर नहीं दर्ज की गई.

अंत में, कुसुमा देवी ने लखनऊ खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया. वहां से इन्हें न्याय मिलता दिख रहा है. हाईकोर्ट ने मामले में बड़ा अहम फैसला दिया है. जबकि आने वाले 12 जून को मामले की फिर सुनवाई होनी है.


इलाहाबाद की हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने क्या दिया आदेश :- 

पहला आदेश रू- निलंबित थानाध्यक्ष पवन कुमार कनौजिया की रिट याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जिलाधिकारी के वेतन रोकने के आदेश पर 4 हफ़्तों के लिए स्टे लगाकर जिलाधिकारी अरविंद सिंह से काउंटर एफिडेविट मांगा है. जिलाधिकारी के पास अब यह अवसर है कि वह अपनी बात व तथ्यों को हाईकोर्ट के सामने सीधे रख सकते हैं.

न्यायाधीश अब्दुल मोइन की बेंच ने गैंडास बुज़ुर्ग मामले में निलंबित थानाध्यक्ष चल रहे पवन कुमार कन्नौजिया के वेतन पर रोक लगाने से संबंधित कलेक्टर अरविंद सिंह के आदेश पर रोक लगाते हुए 29/05/24 को यह आदेश दिया कि इस केस में जिलाधिकारी को आदेश पारित करने का अधिकार है तो वह उसका आधार कैसे है, उसे काउंटर एफिडेविट के माध्यम से दाखिल करें। अतः एसआई पवन कुमार कन्नौजिया को उसका वेतन प्राप्त करने का मामला अंतरिम रूप से निस्तारित हो गया.

सुनवाई के दौरान तमाम तरह की दलीलें भी दी गई. जिस पर कोर्ट ने थानाध्यक्ष के पक्ष को सही मानते हुए केवल उनके वेतन को जारी करने का आदेश दिया है. इस मामले पर अगली सुनवाई ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद होगी. तब डीएम एक एफिडेविड के माध्यम से अपना पक्ष अगले 4 हफ़्तों में कोर्ट के समक्ष रखेंगे. तब के लिए कोर्ट के आंतरिम आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा.

उल्लेखनीय है कि यह मामला सिंगल बेंच द्वारा देखा गया और यह बेंच सर्विस मैटर को देखती है.

दूसरा आदेश रू-वहीं, दूसरी तरफ राम बुझारत की पत्नी कुसुमा देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की डबल बेंच जो क्रिमिनल साइट पर पूरे मैटर को देख रही थी, प्रकरण पर एसआईटी जांच का आदेश दिया है, जिसको हाईकोर्ट खुद गठित करेगा.

मृतक राम बुझारत की पत्नी कुसुमा देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए डबल बेंच के न्यायधीश (आपराधिक पक्ष पर खंडपीठ) पुलिस द्वारा मामले में जिस तरह से जांच और कार्रवाई की गई, उससे संतुष्ट नहीं दिखे. उच्च न्यायालय ने पूरे पेटीशन और उसमें लगाए गए साक्ष्यों के आधार पर यह माना कि पुलिस की भूमिका प्रतिकूल है. इस पर डबल बेंच ने आदेश पारित करते हुए वादिनी के सीबीआई से जांच की मांग को तो नकार दिया लेकिन खंडपीठ की निगरानी में एक उच्च स्तरीय एसआईटी जांच की आदेश पारित की है.

अपने आदेश में डबल बेंच ने कहा है कि अपर मुख्य सचिव (गृह) उच्च निष्ठा वाले वरिष्ठ अधिकारियों का नाम हाईकोर्ट के पैनल को सुझाए, फिर हाईकोर्ट स्वयं जांच के लिए पैनल में दिए गए 5 अधिकारियों के नामों का चयन करेगा, पूरी जांच हाईकोर्ट की निगरानी में की जाएगी. हाईकोर्ट ने कहा है कि जांच टीम में आईजी रैंक के ऐसे पुलिस अधिकारी को शामिल किया जाए, जिसे इस तरह के जांच का अनुभव और पर्याप्त विशेषज्ञता हो.

डबल बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान यह कहा कि पुलिस ने जानबूझकर मामले की ठीक से जांच नहीं की या नहीं कर रही है. यह घटना 24/10/2023 को घटित हुई थी. लेकिन आज तक कोई प्रभावशाली जांच, इस मामले में नहीं की गई है.

हाईकोर्ट ने कहा कि आज भी दायर किए गए संक्षिप्त जवाबी हलफनामे में एकमात्र अनुलग्नक पत्र 28/5/2024 का है, जो संबंधित अस्पताल को भेजा गया है. जहां पीड़ित राम बुझारत को भर्ती करवाया गया था. मामले में यह भी संज्ञान में आया है कि पुलिस निष्पक्ष व सही जांच करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है. 

कोर्ट ने कहा कि पीड़ित लगभग छह दिनों तक जीवित रहा लेकिन पीड़ित का मृत्युपूर्व कोई भी बयान दर्ज करने का संदर्भ हमारे पटल पर नहीं रखा गया है. इसलिए इन परिस्थितियों में निष्पक्ष व उचित जांच के लिए हम एक उच्च स्तरीय टीम की गठन करेंगे. गृह विभाग की तरफ से उपस्थित सरकारी वकील ने पुलिस के बचाव के लिए तमाम दलीलें दी, लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को उचित नहीं माना.

वहीं, हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 30/05/24 (क्ड के न्यायिक आदेश के ठीक एक माह बाद) जिला  मजिस्ट्रेट बलरामपुर अरविंद सिंह के द्वारा मजिस्ट्रेट जांच के आधार पर पारित उनके आदेश 30/04/ 24 को सही माना है. उनके 35 पन्नों के आदेश को कोर्ट ने साक्ष्य के तौर पर एडमिट किया है. 

आने वाले समय में बढ़ सकती हैं मुश्किलें रू- 

उक्त मामले में स्पेशल जांच टीम का गठन जब 12/06/24 की सुनवाई में होता है तो जिले में बड़े बड़े अधिकारियों के दौरे शुरू होंगे. जांच टीम तमाम बड़े अधिकारियों को सम्मन जारी करेगा. देखना होगा, कब जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए आत्मदाह करके अपनी जान गवाने वाले राम बुझारत और उसके परिवार को न्याय मिल पाता है. फिलहाल, हाईकोर्ट द्वारा दिए गए दोनों आदेशों को आपने संक्षित रूप नें पढ़ा और इस पूरे घटनाक्रम को जाना.

अब आपको तय करना है कि इस मामले में स्थानीय लोगों व अन्य ने पीड़ित और उसके परिवार के साथ ज्यादा गलत किया या पुलिस विभाग के अधिकारियों व कर्मियों ने. फिलहाल मामले की जांच जब एसआईटी द्वारा की जाएगी तो कई तरह की बातें और तह खुलकर सामने आएंगे. हाईकोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के बाद, पुलिस विभाग कई अधिकारियों व कर्मियो पर गाज भी गिर सकती है. इस मामले में जिलाधिकारी ने जिस तरह एक कदम आगे बढ़ाते हुए पीड़ित परिवार के लिए न्याय की उम्मीद जगाई और अपने जांच में जिस तरह से कार्रवाई का आदेश दिया. उससे भी कहीं न कहीं पीड़ित परिवार को उच्च न्यायालय में मदद मिलती दिखाई दे रही है.

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