अपने जीवनकाल में ही प्रसिद्धी के चरम पर थे महात्मा गांधी 

अपने जीवनकाल में ही प्रसिद्धी के चरम पर थे महात्मा गांधी 

एक समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कह विवाद खड़ा कर दिया कि रिचर्ड एटनबरो की फिल्म से पहले महात्मा गांधी को दुनिया नहीं जानती थी। उन्होने अपनी इंटरव्यू में कहा महात्मा गांधी दुनिया की एक महान आत्मा थे। इन 75 साल में क्या महात्मा गांधी के बारे में दुनिया को बताना हमारी जिम्मेदारी नहीं थी? कोई भी उनके बारे में नहीं जानता था। मुझे माफ करें, लेकिन दुनिया में पहली बार उनके बारे में जिज्ञासा तब पैदा हुई, जब फिल्म गांधी बनी, हमने ऐसा नहीं किया। उन्होंने आगे कहा कि अगर दुनिया मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे अन्य नेताओं के बारे में जानती है, तो गांधी उनसे कम नहीं थे।
 
गांधी के विचारों से सहमत होना या ना होना एक अलग विषय है परन्तु यह कह देना गांधी को कोई जानता ही नही था। यह बात तर्कसंगत नही है। मोदी ने महात्मा गांधी को उस तरह से प्रचारित न करने के लिए पिछली कांग्रेस नीत सरकारों की आलोचना की जिसके वे हकदार थे। बता दें कि रिचर्ड एटनबरो ने 1982 में फिल्म गांधी बनाई थी। अब सवाल यह उठता है कि क्या दुनिया 1982 से पहले गांधी को जानती नहीं थी?
महात्मा गांधी दुनिया में शांति और अहिंसा के प्रतीक के रूप में देखे जाते हैं। वे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सबसे प्रमुख व्यक्तियों में से एक रहे। प्रधानमंत्री ने अपनी इंटरव्यू में जिन दो अन्य दुनिया के प्रसिद्ध एवंम प्रभावशाली नेताओं मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला का नाम लिया वे दोनो स्वयं भी खुद को गांधी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित मानते थे।
 
गांधी ने दुनिया भर में नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए होते आंदोलनों को प्रेरित किया। मार्टिन लूथर किंग का कहना था कि ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिया और महात्मा गांधी ने रणनीति। मार्टिन लूथर किंग ने 1959 में भारत का दौरा किया और गांधी के परिवार और दोस्तों से मिले। रंगभेद के खिलाफ 67 वर्षों तक आंदोलन करने वाले और 27 वर्षों तक कारागार में उम्रकैद की सजा भुगतने वाले नेल्सन मंडेला का गांधी के बारे में कहना था कि उनकी सफलता का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है। उन्होंने कहा था कि भारत महात्मा गांधी के जन्म का देश है और दक्षिण अफ्रीका उनका गोद लिया हुआ देश है। श्रीलंका को 1948 में अंग्रेजों से आजादी मिली थी, जिसकी प्रेरणा भी गांधी के विचारों से ली गई थी।
 
श्रीलंकाई स्वतंत्रता सेनानी चार्ल्स एडगर कोरिया के निमंत्रण पर महात्मा गांधी ने 1927 में श्रीलंका जिसे पहले सीलोन के नाम से जाना जाता था का दौरा भी किया था। महात्मा गांधी ने श्रीलंका में कई भाषण दिए और वहां एक स्थायी प्रभाव छोड़ा था। महात्मा गांधी की अहिंसा नीति ने बौद्ध पुनरुत्थानवादी अनागारिका धर्मपाल सहित कई उल्लेखनीय नेताओं को आंदोलन के लिए प्रभावित किया। घाना को आजादी दिलाने वाले  क्वामे न्क्रुमा (जो घाना के पहले अफ्रीकी मूल के प्रधानमंत्री बने) गांधी के जीवन और उनकी शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे। घाना के स्वतंत्रता आंदोलन के दो बड़े चेहरे न्क्रूमा और जेबी दानक्वा ने गांधी से प्रेरित होने की बात को स्वीकार भी किया है।
 
1945 में न्क्रुमा ने मैनचेस्टर में पांचवीं पैन-अफ्रीकी कांग्रेस का आयोजन किया। इस सम्मेलन के दौरान गांधी के अहिंसक आदर्शों को सबके सामने लाया गया और विदेशी शासकों को एक निहत्थे लोगों की इच्छाओं का सम्मान करने के एकमात्र प्रभावी साधन के रूप में समर्थन दिया गया। साल 1920 के आस-पास जब महात्मा गांधी का प्रभाव भारत के कोने-कोने में फैल रहा था। चीन के लोग भी प्रेरणा के लिए उनकी ओर देख रहे थे। उन दिनों भारत में अंग्रेजी हुकूमत थी। चीन में ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस जैसी ताकतों का जोर था। महात्मा गांधी कभी चीन नहीं गए लेकिन चीन और महात्मा गांधी विषय पर काम करने वाले साउथ चाइना नॉर्मल यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर शांग छुआनयू के मुताबिक चीन में महात्मा गांधी पर करीब 800 किताबें लिखी गई हैं। चीन में गांधी की मूर्ति राजधानी बीजिंग के छाओयांग पार्क में है।
 
विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में गांधी की 8 मूर्तियां हैं जबकि जर्मनी में उनकी 11 प्रतिमाएं स्थापित हैं। स्पेन के बुर्गस शहर में महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई है, जहां वह इसे अपने प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित करता है। ब्रिटेन के लिसेस्टर में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है, वहीं अमेरिका के वॉशिंगटन के बेलेवुए में गांधी की आदमकद प्रतिमा स्थापित है। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी की 3 प्रतिमाएं स्थापित हैं। श्रीलंका के जफना क्षेत्र में गांधी की प्रतिमा स्थापित है। कनाडा में ओंटारियो सहित विभिन्न शहरों में गांधी की 3 प्रतिमाएं स्थापित हैं। जबकि इटली, अर्जेंटीना, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में महात्मा गांधी की 2-2 प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त रूस के मॉस्को और स्विट्जरलैंड के जिनेवा में गांधी आज भी सत्य, अहिंसा के प्रतीक बने हुए हैं।
 
इनके अलावा ईराक, इंडोनेशिया, फ्रांस, मिस्र, फिजी, इथोपिया, घाना, गुयाना, हंगरी, जापान, बेलारूस, बेल्जियम, कोलंबिया, कुवैत, नेपाल, मालावी, न्यूजीलैंड, पोलैंड, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, सर्बिया, मलेशिया, यूएई, युगांडा, पेरू, तुर्कमेनिस्तान, कतर, वियतनाम, सऊदी अरब, स्पेन, सूडान, तंजानिया जैसे देशों में भी गांधी की मूर्तियां स्थापित है। बाहर के लगभग 84 देशों में गांधी की 110 से अधिक मूर्तियां लगी हुई हैं। कई देशों में उनके नाम के मार्ग और स्मारक हैं। यहां तक कि भारत का कट्टर दुश्मन पाकिस्तान भी महात्मा गांधी के प्रभाव से खुद को नही बचा सका वहां भी उनकी दो मूर्तियां स्थापित हैं। उनकी प्रसिद्धी का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज इंटरनेट के जमाने में भी जिस टाइम मैग्जीन में विश्व के प्रतिष्ठित व्यक्ति अपना नाम छपवाने के लिए तरसते हैं।
 
उस अमेर‍िकी पत्र‍िका टाइम ने 1931 में पांच जनवरी के अंक में महात्‍मा गांधी को कवर पेज पर छापा था। निस्संदेह महात्मा गांधी की प्रसिद्धी अपने जीवनकाल में ही पूरे विश्व में चरम पर पहुंच चुकी थी। उनके प्रभाव और प्रसिद्धी को सिद्ध करने के लिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के महात्मा गांधी के बारे में लिखे शब्द ही काफी हैं  कि आने वाली पीढ़ियाँ मुश्किल से ही यह विश्वास कर पाएँगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।
 
 (नीरज शर्मा'भरथल)
 

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