टीवी एंकर का बहिष्कार कितना सही कितना गलत

बर्चस्व  की  जंग लड़ता  दिख रहा  मीडिया जगत

टीवी एंकर का बहिष्कार कितना सही कितना गलत

 जितेन्द्र सिंह पत्रकार

विपक्षी गठबंधन इंडिया ने टीवी जगत के 14 एंकर के उन कार्यक्रमों का बहिष्कार करने की घोषणा कि है जिनमें वो प्राइम टाइम में अपने - अपने चैनल पर विपक्ष और सत्ता पक्ष के प्रवक्ताओं को आमंत्रित कर बहस कराते थे। और कभी कभी तो ये बहस इतनी कटु हो जाती थी की प्रवक्ताओं के बीच मारपीट भी होने लगी थी।इंडिया गठबंधन का आरोप है कि ये 14 एंकर अपने अपने कार्यक्रमों में विपक्षी दलों के के विरोध में और सत्ता पक्ष में एजेंडा सेट करके सवाल कर जबरन ऐसे प्रश्न करते थे कि जिससे सत्ताधारी दल को लाभ पहुंचे। विपक्ष का आरोप है कि ये एंकर विपक्ष के प्रवक्ता के रुप में कार्य करते हैं और ऐसे एंकरों का सम्पूर्ण विपक्ष ने बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। अब चर्चा का विषय यह है कि विपक्ष का यह आरोप कितना सकारात्मक है। 

क्या वास्तव में ऐसा है या विपक्ष अपने आप को बचाने के लिए इस तरह का आरोप लगा रहा है। इसपर सबके अपने अपने मत हैं। यह सत्य है कि एक पत्रकार को किसी से भी सवाल पूछने अधिकार प्राप्त है। फिर वो चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। पत्रकार जनता की आवाज बनकर शासन और प्रशासन से सवाल करता है और उसका जो जवाब मिलता है उसको समाचार पत्र या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा जनता के सामने जाहिर करता है। ऐसे में सवाल विपक्ष से भी हो सकता है इसमें पत्रकार भेदभाव नहीं कर सकता। यदि भेदभाव कर रहा है तो वह कहीं न कहीं गलत संदेश दे रहा है। सत्ता पक्ष द्वारा विपक्ष इस बहिष्कार को कांग्रेस या विपक्ष द्वारा मीडिया के प्रति तानाशाही रवैया अपनाने की बात कही गई है।

 सत्ता पक्ष का कहना है कि कांग्रेस का यह रवैया नया नहीं है और इमरजेंसी के दौरान भी इंदिरा सरकार ने मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया था और खिलाफ लिखने वाले सैकड़ों पत्रकारों को जेल में डाल दिया था। वैसे भी सवाल पूछने पर हर कोई दोषारोपण दूसरे दलों पर ही करता है। पत्रकारों के सवालों पर न तो बचना चाहिए और न दूरी बनाना चाहिए खुल कर बात करनी चाहिए तभी सही सूचना जनता तक पहुंच सकती है। यह बात विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों पर लागू होती है। हालांकि यहां खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एंकर को भी एक पक्षीय रवैया नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि यदि खबर एक पक्षीय है तो वह सही नहीं है। हम शाम के समय पर सभी न्यूज़ चैनलों पर एक बहस का कार्यक्रम देखते आ रहे हैं ये कार्यक्रम इतने उग्र हो जाते हैं कि कभी कभी मारपीट की नौबत आ जाती है लेकिन कुछ एंकर ऐसे भी हैं जिनके कार्यक्रम बड़ी ही शालीनता से होते हैं। और सभी को अपनी बात रखने का अवसर प्राप्त होता है। विपक्ष काफी समय से कुछ टीवी एंकरों पर आरोप लगाता चला आ रहा है कि ये एंकर विपक्षी नेताओं को मौका नहीं देते और और जानबूझ कर ऐसे सवाल रखते हैं जिससे सरकार को लाभ पहुंचे।

           पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है हमारे देश में पत्रकारिता जितनी मजबूत होगी उतना ही हमारे देश में लोकतंत्र मजबूत होगा। ऐसा नहीं है कि इसी समय पत्रकारिता पर यह सवाल उठ रहा है पहले की सरकारों में भी पत्रकार पर इसी तरह के आरोप और हमले होते आए हैं। लेकिन पत्रकारिता कभी कमजोर नहीं हुई। लेकिन पत्रकारों को भी अपने दायित्वों से पीछे नहीं हटना चाहिए। ग़लत को ग़लत और सही को सही कहने का साहस रखना चाहिए। नहीं तो पत्रकारिता राजनीति में दब कर रह जायेगी।

एक समय था कि जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं था तब समाचार लिखने से पहले और अखबार छापने से पहले समाचार, लेख की समीक्षा होती थी। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आने के बाद से सब कुछ आमने सामने हो गया। हमारे मुख मंडल से जो बात निकल गई उसे मिटाया नहीं जा सकता। क्यों कि ये सभी कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण होता है। और इसका सीधा असर जनता पर पड़ता है। इसीलिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर इतना महत्व दिया जाने लगा है जिससे जल्दी से जल्दी हमारी बात जनता तक पहुंच सके। हालांकि मीडिया से कोई पंगा नहीं लेना चाहता लेकिन समय समय पर लोग दूसरे तरीकों से प्रतिबंध लगाते रहे। विपक्षी दलों ने भी टीबी चैनलों का बहिष्कार नहीं किया है कुछ चुनिंदा एंकर पर ही पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाकर बहिष्कार किया है। 

इधर इस प्रतिबंध को लेकर अलग अलग राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं । राजनीतिक दल चुनावों में लाभ हानि की दृष्टि से इसका आंकलन करने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि विपक्षी दलों को मीडिया या किसी अन्य संस्थान से दूर रहने का कोई फायदा नहीं मिलेगा। पात्रा ने कहा कि भारत में ऐसी कोई संस्था नहीं है कि जिस पर इस गठबंधन ने हमला न किया हो। चाहे वह निर्वाचन आयोग हो या अदालतें। वहीं कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने इस मामले में कहा कि मीडिया लोकतंत्र की रक्षक है। मीडिया की भूमिका सरकार की गलतियों को सुधारना है। लेकिन दुर्भाग्यवश मीडिया के कुछ लोग सिर्फ सरकार का समर्थन और विपक्ष का चेहरा खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।

                  किसी भी देश में मीडिया जनता की आवाज होती है लेकिन वहीं जब कुछ लोगों पर इस तरह के आक्षेप लगने लगते हैं तो सवाल भी उत्पन्न होने लगते हैं। क्या क्या वास्तव में ऐसा है जैसा कि विपक्ष आरोप लगा रहा है। मीडिया का कार्य सरकार से सवाल करना है लेकिन उतना ही अधिकार विपक्ष से सवाल करने का है। हां यह अवश्य है कि सवालों का उत्तरदायित्व सरकार से ज्यादा बनता है कि वर्तमान व्यवस्था को उन्हें ही सम्हालना है। लेकिन विपक्ष भी यहां पर बच नहीं सकता क्योंकि कि पिछली सरकारों में उनकी भी भागेदारी रही है। 

मीडिया स्वतंत्र है और उसको दबाने का अधिकार का मतलब देश की जनता की आवाज को दबाना है। देश में लोकसभा चुनावों की आहट है इस तरह के आरोप प्रत्यारोप लगते रहेंगे। मगर मीडिया को भी अपना कार्य बड़ी ही संजीदगी से करना होगा। देश की जनता को मीडिया पर बहुत भरोसा रहता है उस भरोसे को हमें टूटने नहीं देना होगा। यह तो माना जा सकता है कि कोई पत्रकार किसी विशेष से ज्यादा प्रभावित हो लेकिन जनता के सामने पत्रकारिता को भी निष्पक्षता से पेश आना होगा। 
                     वैसे भी विभिन्न टीवी चैनलों पर होने वाली राजनीतिक बहसबाजी के इन कार्यक्रमों से जनता में क्रेडिबिलिटी घट रही है। क्यों कि ये कार्यक्रम इतने उग्र रूप धारण कर लेते हैं कि एंकरों के दबाने पर भी नहीं दबते। इनमें प्रवक्ताओं को बेकाबू होते देखा जाता है। यह भी नहीं देखा जाता कि उनके लाईव प्रसारण को देखकर जनता में क्या संदेश पहुंच रहा है। और यह चैनल केवल टीआरपी के चक्कर में बहसबाजी को और उग्र कर रहे होते हैं। हमको इस पर सोचना होगा। प्रिंट मीडिया का क्रेज आज भी उतना ही है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने से पहले था। क्यों कि प्रिंट मीडिया में खबरों की सत्यता पर कार्य किया है। वहां हर पत्रकार की एक अपनी जिम्मेदारी है।

 क्यों कि खबरें ही आपके प्रसार को बढ़ाती हैं। और अगर हम गलत खबरों को जनता में परोसेंगे तो हमारा प्रसार तत्कालीन तो बढ़ेगा लेकिन लंबे समय में घटने की संभावना शुरू हो जाती है। एक समय था कि केवल समाजसेवी ही मीडिया की तरफ रुख करता था क्योंकि मीडिया से सबकी रोटी नहीं चल सकती थी। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आने के बाद मीडिया जगत में बहुत परिवर्तन आया बड़े बड़ें पैकेज पर एंकर को चैनलों में लाया गया। और बस यही से मीडिया का व्यवसायीकरण शुरू हो गया। अब पत्रकारिता का स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है।

 लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि हम क्या सही और क्या ग़लत कर रहे हैं। हर पत्रकार का मत अलग अलग विषय पर अलग अलग हो सकता है लेकिन हम पत्रकारिता के आयामों को नहीं भूल सकते। हर पत्रकार पूरी तरह से स्वतंत्र है वो जो भी लिखता है या बोलता है वो उसके अपने विचार हो सकते हैं लेकिन हमें यह भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि देश की करोड़ों जनता हमें देख रही है या पढ़ रही है और वह हम पर यकीन कर रही है। क्यों कि देश विदेश में घटित घटनाओं को हम पास से देखते हैं और वही जनता को दिखाने का कार्य करते हैं। हम जनता और सरकार के बीच की कड़ी है। हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहना है।

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