मशरूम उत्पादन तकनीक विषय पर प्रशिक्षण हुआ संपन्न

मशरूम उत्पादन तकनीक विषय पर प्रशिक्षण हुआ संपन्न

स्वतंत्र प्रभात
 
मनकापुर गोण्डा: आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर गोंडा द्वारा गुरुवार को ग्राम पंचायत महेवानानकार विकासखंड मनकापुर में मशरूम उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण आयोजित किया गया । प्रशिक्षण समन्वयक डॉ मनीष कुमार मौर्य ने मशरूम उत्पादन तकनीक की पूरी जानकारी देते हुऐ कहा कि मशरूम की खेती हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है । इसे प्रतिदिन अगर भोजन में शामिल करने से प्रोटीन एवं खनिज लवणों की आवश्यकता पूरी होती है ।
 
मशरूम उत्पादन के लिए भूसा, मशरूम स्पान, फॉर्मलीन दवा एवं पॉलिथीन बैग की आवश्यकता होती है । मशरूम के बीज को मशरूम स्पान कहा जाता है । उन्होंने बताया कि मशरूम उत्पादन हेतु 25  किलोग्राम सूखे भूसे को 90 लीटर पानी में दस  से बारह घंटे भिगो कर रख दिया जाता है । प्रति 10 लीटर पानी के साथ एक सौ मिलीलीटर फॉर्मलीन तथा पांच ग्राम कार्बेंडाजिम दवा को मिला देते हैं । भूसे को पानी से निकालकर अलग कर लेते हैं । जब भूसे से पानी टपकना बंद हो जाए तब इसमें मशरूम स्पान मिलाकर थैलियों में भर दिया जाता है । प्रति साढ़े तीन किलोग्राम गीले भूसा में 100 ग्राम  मशरूम स्पान  मिलाया जाता है ।
 
पॉलिथीन की थैलियों में भूसा के साथ अलग-अलग पर्तों में मशरूम का स्पान मिला दिया जाता है, फिर इसे बांधकर पॉलिथीन में जगह-जगह छेद कर दिए जाते हैं । मशरूम में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए पालीथीन को ऊपर से खोलकर पानी का छिड़काव कर देते हैं । मशरूम की थैलियों को किसी छायादार एवं नम जगह पर रखा जाता है । लगभग 15 दिन  बाद थैलियों से मशरूम निकलना शुरू हो जाता है । पहली बार में लगभग आधी उपज प्राप्त हो जाती है । इसके बाद दो से तीन बार मशरूम की उपज मिल जाती है ।
 
इस प्रकार मशरूम का उत्पादन घर में छायादार एवं नम जगह पर आसानी से कर सकते हैं । मशरूम निदेशालय शिमला हिमाचल प्रदेश में स्थित है । मशरूम उत्पादन की जानकारी मशरूम निदेशालय, उद्यान विभाग, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों आदि से प्राप्त कर सकते हैं ।
 
 
 
 
 

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