
फसली खेती विषय पर किसान गोष्ठी का आयोजन
विटामिन से भरपूर पशुओं के लिए एक उत्तम आहार की जरूरत को पूरा करता है
स्वतन्त्र प्रभात
मलिहाबाद / लखनऊ केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा, लखनऊ के फार्मर फर्स्ट परियोजना अंतर्गत दिन गुरुवार को मलिहाबाद-माल प्रखंड के अंगीकृत गाँव मोहम्मदनगर तालुकेदारी एवं इब्राहिमपुर, भानपुर में आम के बागों में
चारे वाली फसलों की अन्तः फसली खेती पर किसान गोष्ठी एवं प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया । इस अवसर पर परियोजना के मुख्य अन्वेषक डॉ. मनीष मिश्र ने बताया की जो बागवान बागवानी के साथ पशुपालन भी करते हैं
, उनके लिए दुधारु और अन्य पालतू पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या से दो चार होना पड़ता है। चार वर्ष पहले किसानों के बागों में अन्तःफसल बहुवर्षी चारा “पैनिकम ग्रास” का प्रदर्शन किया गया जो पशुपालको के लिए वरदान साबित हुआ ।
जिसको देखते हुए आम के बागों में अन्तःफसल के रूप में इस चारे को बढ़ावा दिया जा रहा है । कृषि वैज्ञानिक डॉ भास्कर ने बताया की यह चारा छाया के प्रति काफी सहिष्णु है। यह प्रोटीन और
एक बार यह चारा लगाने पर 4 से 5 साल तक हरा चारा मिल सकता है। पहली कटाई बुवाई के 60-70 दिन बाद करने के बाद उसमे कल्ले फिर से निकलने लगते हैं और 25-40 दिन में वह दोबारा पशुओं के खिलाने लायक हो जाता है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ.एस.के.शुक्ल ने बताया की आम के बागों में पेड़ों की छांव के नीचे खाली जमीन में चारे की खेती कर अच्छा उत्पादन एवं अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है। साथ ही आम के वृक्षों में अगर सेंटर ओपेनिंग कर दी
जाये तो अंत: फसलें उगाना और आसान हो जाता है । दिसम्बर का महीना आम में काट छांट हेतु उपयुक्त है। किसान भाइयों को चाहिये की जिला उद्यान अधिकारी से अनुमति लेकर आम के बागों में सेंटर ओपेनिंग कर लें ।
इस तरह साल भर में आम के साथ दूसरी फसलें जैसे हल्दी, जिमीकंद, फर्न, गिन्नीघास (पैनिकम ग्रास) इत्यादि उगाकर किसान अपनी आय आसानी से दोगुनी कर सकते हैं। इस अवसर पर परियोजना के
मुख्य अन्वेषक डॉ. मनीष मिश्रा, सह अन्वेषक डॉ. अनिल वर्मा, डॉ. एस. के. शुक्ला एवं डॉ. एस. सी. रवि एवं भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के कृषि वज्ञानिक डॉ भास्कर सहित 40 किसानों ने किसान गोष्ठी में भाग लिया
एवं प्रगतिशील किसानों के प्रक्षेत्र पर आम के बागों में पैनिकम ग्रास एवं हल्दी, फूलों की खेती, वर्मीकम्पोस्ट, विदेशी सब्जी, प्लॉस्टिक मल्चिंग तथा टपक सिचाई द्वारा शिमला मिर्च की खेती का भी भ्रमण किया । कार्यक्रम का समन्वय डॉ. डॉ.एस.के.शुक्ला द्वारा किया गया ।
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