लाल टोपी वाले ,बाबू भोले-भाले
इस टोपी को लेकर हमारे फकीरचंद बहुत सचेत रहते हैं, उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कभी टोपी न पहनी हो ऐसी बात नहीं है ,लेकिन उन्होंने जितनी टोपियां पहनीं हैं उससे कहीं ज्यादा उछाली हैं
टोपियों को लेकर भारत में एक से बढ़कर एक किस्से हैं। किस्से ही नहीं कहावतें और मुहावरे भी हैं ,और ऐसे हैं की इनके इस्तेमाल से आप लाख टके की बात इशारों-इशारों में कह जाते है। टोपी कपडे का एक नौकाकार वस्त्र है । सिर पर धारण किया जाता है ,इसलिए व्यक्ति के मान-सम्मान का प्रतीक बन चुका है। ऐसे में आपको जब किसी का मान-सम्मान करना हो या मान मर्दन करना हो आप टोपी का इस्तेमाल कर सकते है।
फकीरचंद को एक जालीदार टोपी को छोड़ सभी तरह की टोपियां पसंद थीं। उनकी पसंद में सभी रंगों की टोपियां शामिल थी । वे देशाटन पर या चुनावी पर्यटन पर जब भी कहीं जाते वहां की स्थानीय टोपी को सहर्ष धारण कर लेते थे । बल्कि टोपी पहनाने वाले को इनाम-इकराम भी देते और फिर हर नई टोपी पहनने के बाद फोटो सेशन भी कराते थे। काली टोपी फकीरचंद की सबसे ज्यादा पसंदीदा टोपी मानी जाती है। वे काली टोपी दीवाली,दशहरे पर धारण करते हैं। हाल ही में उनका स्वाद बदल गया है। फकीरचंद आजकल लाल रंग की टोपी से बिदकने लगे है। ठीक उसी तरह जैसे लाल रंग देखकर सांड बिदक जाता है।
फकीरचंद कहते हैं कि-' लाल टोपी खतरे का निशान है । रेड लाइट की तरह। इससे सावधान रहिये । रेड टोपी को सत्ता की रेडलाइट चाहिए लाल टोपी को रेड अलर्ट समझिये। गनीमत है कि उन्होंने ये नहीं कहा कि लाल टोपी रेडलाइट इलाके वालों की पहचान है। सियासत में लाल टोपी अक्सर धुर समाजवादी लगाते है। हमारे इलाके में एक थे छोटे सिंह गोठ थे, मरते दम तक लाल टोपी धारण किये रहे । उत्तर प्रदेश में तो सबसे ज्यादा उत्तरदायी समाजवादी लाल टोपी का पेटेंट कराये बैठे हैं।
टोपियों को लेकर फकीरचंद भले ही अपना दृष्टिकोण बदलते रहते हैं लेकिन अपने राम तो इस मामले में अटल जी कि अनुयायी है। [भाजपा के नहीं ] अपने राम को फकीरचंद की तरह किसी भी रंग की टोपी से कोई ऐतराज नहीं है। अटल जी को भी टोपी पहने और पहनाने में मजा आता था लेकिन उन्होंने कभी किसी की टोपी उछाली नहीं,लेकिन फकीरचंद ठीक इसके उलट है। उन्हें टोपियां पहनने से ज्यादा टोपियां उछालने में बड़ा मजा आता है ,जबकि ईमानदारी से कहूँ तो फकीरचंद कि ऊपर हरेक टोपी फब्ती है। चाहे वो असैनिक टोपी हो या सैनिक टोपी
भारत में एक जमाना था जब गांधी और जिन्ना टोपियों की बहार थी। जिन्ना तो मरते दम तो कायदे से टोपी पहनते रहे इसलिए बाद में क़ायदेआजम कहलाये किन्तु महात्मा गांधी ने कभी गांधी टोपी पहनी हो ऐसा मुझे याद नहीं आता। बाद में काली टोपी का जन्म हुआ काली टोपी नागपुर वालों की आन,वान,शान का प्रतीक बन गई। मुसलमानों ने हरी टोपी को अपना बना लिया तो हिन्दुओं ने भगवा रंग की टोपी को अपना मान लिया। जो लोग भारी-भरकम साफा नहीं बाँध सकते वे टोपी बड़ी ही आसानी से पहन लेते हैं। कश्मीर की कराकुली टोपी मुझे भी बहुत पसंद है । हिमाचल की टोपी का अपना रंग है।
फकीरचंद की ही तरह मेरे पास भी टोपियों का देशी-विदेशी संग्रह है। लेकिन मै केवल टोपियां पहनता हों,उछालता नहीं हूँ । मुझे किसी टोपी कि रंग से भी कोई परहेज नहीं है ,लेकिन फकीरचंद को है तो है। मै रामपुरा जागीर का रहने वाला हूँ इसलिए मुझे रामपुरी टोपी बेहद पसंद है । मरहूम शहरकाजी मेरे लिए ईद पर हमेशा रामपुरी टोपी लेकर आते थे। मैंने कभी किसी की टोपी का अनादर नहीं किय। मेरे अब्बाहुजूर फरमाते थे टोपी की हमेशा इज्जत करो ,सो मै करता हूँ। अब लोग टोपियां पहनते कम उछालते ज्यादा हैं। इसीलिए अब टोपी पहनने वालों कि मुकाबले टोपी उछालने वालीं की तादाद बढ़ गयी है । अब कारीगर भी केवल उछलने वाली टोपियां बनाने लगे हैं। उछलने वाली टोपियां हल्की होती हैं।
टोपियां हमारे भारतीय सिनेमाई गीतों का अहम हिस्सा है। 'सर पर टोपी लाल ,हाथ में रेशम का रूमाल से लेकर ' तिरछी टोपी वाले,बाबू भोले-भाले ' तक न जाने कितने टोपी गीत बन चुके हैं। राज कुमार तो टोपी कि दीवाने थे। उन्हें ' सर पर लाल टोपी रूसी लेकिन दिल है हिन्दुस्तानी ' बेहद पसंद है। मुझे तो डर है कि कहीं हमारी सरकार संसद में ध्वनिमत से लाल टोपियों पर प्रतिबंध लगाने कि लिए संसद कि चालू सत्र में कोई क़ानून ही पास न करा ले । सरकार तो सरकार है । सर्वशक्तिमान होती है । कुछ भी करा सकती है। फिर फकीरचंद की इच्छा का सम्मान करना होतो फिर क्या बात है ? फकीरचंद को ध्वनिमत भी टोपियों की तरह बहुत पसंद है । हाल ही में उन्होंने ध्वनिमत से पारित किसानों कि तीन क़ानून ध्वनिमत से ही वापस ले लिए।
मेरे पास कोई सबूत तो नहीं है लेकिन श्रुत बताती है कि 1931 में जब बापू मोहम्मद अली जौहर से मिलने रामपुर पहुंचे थे। उस वक्त बी अम्मा ने हाथों से बनी सूती कपड़े की टोपी महात्मा गांधी को भेंट की। यही टोपी बाद में गांधी टोपी के रूप में मशहूर हुई। आजादी के सेनानी इस गांधी टोपी को सिर पर लगाए अंग्रेजों के खिलाफ जंग में शामिल हुए। उसके बाद रामपुरी टोपियों का जलवा पूरे देश में छा गया। रामपुर में बनने वाली गांधी टोपी के साथ जिन्ना टोपी, रजा टोपी, हामिद टोपी, फर टोपी की मांग देश के कोने-कोने में बढ़ गई। टोपी कारीगर फलने-फूलने लगे। अब रामपुरी टोपी इंडोनेशिया की आंधी में उड़ रही है। लोगों में जाली वाली क्रोशिया की टोपी पहनने का अधिक चलन शुरू हो गया है।
' तुम मुझे खून दो,मै तुम्हें आजादी दूंगा ' का नारा लगाने वाले नेताजी सुभाष चाँद बोस को फ़ौजी टोपी पसंद थी। यानि टोपियों को लेकर पसंद अपनी-अपनी और ख्याल अपना-अपना हो सकता है। आप यकीन कीजिये की मुझे फकीरचंद की तरह किसी भी रंग की टोपी में कोई ऐब नहीं दिखाई देता। टोपी तो टोपी है । इससे अंग्रेज तक डरते थे ,हालांकि अंग्रेज टोपी की जगह टोप लगाते हैं। टोपी आपकी विचारधारा ,धर्म कि साथ-साथ आपके गंजे सर की भी रक्षा करती है । हमारे गुलाम नबी आजाद हों या शेख अब्दुल्ला केवल अपनी गंजियत छिपाने कि लिए कराकुली काली टोपी पहनते हैं।कालांतर में राजनीतिक दल टोपियों पर अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह भी चस्पा करने लगे हैं। अब आपको झाड़ू वाली,लालटेन वाली टोपी भी देखने को मिल सकती है।
टोपियों का इतिहास भी सनातन है। दुनिया में कबसे टोपी पहनी जाती है ये कहना कठिन है लेकिन शोधार्थी बताते हैं की ते तो ईशा से भी हजारों साल पहले से इनसान कि पास है। कहीं ये कपडे से बनती है तो कहीं खाल से। कहीं धातु से। मिस्र में मालिक की टोपी अलग तरह की होती है तो नौकर की टोपी अलग तरह की। घुड़सवार की अलग टोपी और चरवाहे की अलग । महिलाओं की अलग टोपी और पुरुषों की अलग। ' हरि अनत,हरि कथा अनंता ' की तरह टोपी कथा भी अनंत है ,इसलिए मै इसमें उलझना नहीं चाहता । मै तो रही मासूम रजा कि टोपी शुक्ला की तरह हूँ। मेरा तो एक ही ख्वाब है की पूरा देश टोपीमय हो। अपनी-अपनी पसंद की टोपियां पहने। टोपियों को लेकर देश में सियासत न हो। सियासत कि लिए बहुत से मुद्दे है। इसलिए हे फकीरचंद मेरी टोपी को बख्श दीजिये।

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