आज के बदलते परिवेश में बकरी पालन का बहु आयामी

आज के बदलते परिवेश में बकरी पालन का बहु आयामी

प्रशिक्षण के उद्घाटन सत्र में कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. रामजीत नें


स्वतंत्र प्रभात


मिल्कीपुर अयोध्या।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय ,कुमारगंज, अयोध्या के द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र ,पाती ,अंबेडकर नगर द्वारा स्वरोजगार हेतु व्यवसाय बकरी पालन एवं प्रबंधन विषय पर दिनांक 25 से 29 अक्टूबर 2021 तक पांच दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया । उक्त प्रशिक्षण में कुल 30 जागरूक कृषक, ग्रामीण नवयुवक एवं महिलाओं नें भाग लिया। प्रशिक्षण के उद्घाटन सत्र में कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. रामजीत नें

 कृषक प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आज के बदलते परिवेश में बकरी पालन का बहु आयामी आर्थिक महत्व हमारे सामने आया है । बकरी हमें मांस दूध खाल रेशा एवं खाद आदि उपलब्ध कराती है। बकरी का मांस बहुत लोकप्रिय है अतः इसका मूल्य अधिक मिलता है। बकरियों को गरीब की गाय भी कहा जाता है। एक बड़े दुधारू गाय भैंस की जगह में पांच बकरियों को आसानी से पाला जा सकता है। 

प्रति बकरी वर्ष में 10 से 12 हजार का लाभ देती है। केंद्र के पशुपालन वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षण के समन्वयक डॉ. विद्या सागर नें प्रशिक्षण सत्र में बकरी पालन के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि बकरी हेतु अपने क्षेत्र तथा जलवायु के अनुसार हम विभिन्न बकरियों के नशलों को पाल सकते हैं, जिसमें क्षेत्र के लिए जमुनापारी ,सिरोही, जखराना, बीटल, बरबरी नस्लें उपयुक्त हैं। बकरियों को चराई के साथ-साथ व्यवस्थित फार्म खोल कर हम बड़े पशुओं की तरह बकरी बकरी के नांद में

 चारा दाना देकर आसानी से पाल सकते हैं। बकरियों के रखने हेतु आवास व्यवस्था में अर्ध खुला बाड़ा पद्धति सबसे उपयुक्त होती है। 100 बकरियों हेतु 20 मीटर चौड़ाई एवं 60 मीटर लंबाई के बकरी शेड की आवश्यकता होती है तथा इसके साथ ही बकरियों के घूमनें फिरनें हेतु इतने ही लंबाई चौड़ाई का शेड से लगा हुआ खुला बाड़ा बनाना आवश्यक होता है, देश में बकरियां घूम फिर सके। बकरियों को चराई के साथ-साथ हरा एवं सूखे चारे के 

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साथ छोटे 6 माह तक के बच्चों को 250 से 500 ग्राम तथा गाभिन, विक्रय हेतु पाले जानें वाली बकरियों एवं दूध देनें वाली बकरियों को 1 से 1.5 किलोग्राम संतुलित दाना प्रतिदिन देनें से इनका स्वास्थ्य एवं भार ग्रहण करनें की क्षमता अच्छी होती है, तथा समय से गर्भ भी धारण करती हैं। बकरियों का गर्भकाल 5 माह का होता है तथा उचित चारे दानें की व्यवस्था होने पर पुन: एक महीने बाद गर्भित हो जाती है। 

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केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार नें बकरियों में लगनें वाले प्रमुख रोग जैसे परजीवी रोग, पल्पी किडनी रोग, पी.पी.आर. या बकरी प्लेग, खुर पका मुंह पका आदि रोगों से बचाव एवं उपचार के उपाय बताएं। केंद्र के फसल उत्पादन वैज्ञानिक डॉं. रत्नाकर पांडे नें बकरियों के लिए विभिन्न हरे चारों के उत्पादन एवं चरागाह प्रबंधन के संबंध में तकनीकी जानकारी दी। केंद्र के फार्म प्रबंधक डॉ. सतीश कुमार यादव नें

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 बकरियों हेतु दाना बनानें की विधि के बारे में विस्तृत चर्चा की। प्रशिक्षण के समापन समारोह में भाग लेनें वाले प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण से संबंधित प्रमाण पत्र एवं प्रशिक्षण सामग्री के रूप में गेहूं बीज प्रदान किया गया। केंद्र के अन्य कर्मचारी श्री गणेश गिरी, कंप्यूटर ऑपरेटर, श्रीमती शशि प्रभा आनंद, कंप्यूटर प्रोग्रामर,श्री सुरेश सिंह कार्यालय अधीक्षक, ड्राइवर श्री संदीप कुमार एवं दिनेश शर्मा भी कार्यक्रम में विशेष सहयोग प्रदान किया।
 

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