भूमिधारी जमीन की बिना पैमाईश और वादी को सूचित किए कानूनगो ने लगाई फर्जी रिपोर्ट।

भूमिधारी जमीन की बिना पैमाईश और वादी को सूचित किए कानूनगो ने लगाई फर्जी रिपोर्ट।

अवहेलना करते हुए फर्जी तरीके से रिपोर्ट लगाकर मामले का निस्तारण होता बता रहे हैं। 


स्वतंत्र प्रभात


फूलपुर, प्रयागराज


तहसील फूलपुर कार्यालय के संबंधित अधिकारियों की बात करें तो उनके आदेश मात्र एक आम आदेश बनकर रह जा रहे हैं जबकि न्यायालय में विचाराधीन मामले में भी तहसील में कार्यरत कानूनगो धनउगाही के चक्कर में न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हुए फर्जी तरीके से रिपोर्ट लगाकर मामले का निस्तारण होता बता रहे हैं। 

फूलपुर तहसील क्षेत्र के इफ्को पुलिस चौकी कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत सराय गोपी उर्फ़ झझरी गांव निवासी मिथलेश कुमार आदि बनाम गांव सभा का एक वाद उपजिलाधिकारी फूलपुर के न्यायालय में दायर किया गया था। जो कि लगभग तीन वर्षों से लंबित पड़ा था जिसकी सुनवाई आज तक नहीं की गई। इस संबंध में जब संबंधित हल्का के कानूनगो रहे सूरज पटेल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इसकी पैमाईश करके रिपोर्ट लगा दी जाएगी।


 इस संबंध में कानूनगो सूरज पटेल से बार बार कहने पर कानूनगो द्वारा टाल मटोल किए जाने से वादी ने निराशाजनकपूर्वक उनसे इस मामले के निस्तारण के लिए कहना ही छोड़ दिया। इसी क्रम में उक्त मामले में दिनांक 30/07/2021 की तारीख दर्शाते हुए एक फर्जी रिपोर्ट बनाकर कानूनगो सूरज पटेल ने रिपोर्ट लगा दिया। रिपोर्ट में सूरज पटेल ने लिखित आख्या दिया है कि 28/07/2021 को पूर्व की सूचना के क्रम में उपस्थित होकर मौके का मुआयना करते हुए संबंधित भूमि संख्या की नाप की गई तथा भूचित्र की नाप की गई। 

लेकिन वादी मिथलेश कुमार आदि ने बताया कि इस तरह की कोई सूचना वादीगण को नहीं दी गई और ना ही किसी प्रकार की उक्त वादी के भूमि की पैमाईश ही की गई। इस संबंध में कानूनगो की फर्जी मनगढ़ंत रिपोर्ट पर उपजिलाधिकारी फूलपुर युवराज सिंह द्वारा दिनांक 18/10/2021 को कार्यवाही की गई। जिसकी जानकारी वादीगण को हुई तो उन्होंने उक्त मामले के संबंध में उपजिलाधिकारी फूलपुर की अदालत में एक शपथपत्रमय प्रार्थनापत्र देते हुए कहा कि

 राजस्व निरीक्षक सूरज पटेल द्वारा जो भी रिपोर्ट दी गई है वह पूरी तरह से गलत व फर्जी है तथा वादीगणों ने उक्त मामले में पुनर्स्थापित पैमाईश करने के लिए प्रार्थनापत्र देकर न्याय की मांग की है। तमाम जानकारों के मुताबिक बताया गया कि जब कोई मामला न्यायालय में विचाराधीन है तो उस मामले में बगैर न्यायालय के आदेश के लेखपाल व कानूनगो सहित किसी भी अधिकारी द्वारा कोई कार्यवाही करने का आधार ही नहीं बनता।


 इस मामले को देखते हुए तहसील प्रशासन की न्यायिक प्रणाली पर यह सवाल उठता है कि यदि न्यायालय में चल रहे वाद के दौरान भी बगैर न्यायालय के आदेश से कोई कार्यवाही की जा रही है तो उसके जिम्मेदार कौन हैं ? ऐसा यदि किया जाता है तो वह सीधे तौर पर न्यायालय के आदेशों की अवहेलना मानी जाएगी। सवाल यह भी बनता है कि क्या उच्च स्तर से न्यायालय के आदेशों से अधिक महत्त्व लेखपाल व कानूनगो के रिपोर्ट की है।

 न्यायालय में वाद लंबित व स्थगन आदेश पर भी कानूनगो द्वारा किसी भी प्रकार की गलत रिपोर्ट देने का मतलब वह विपक्षीगणों की मिलीभगत से धनउगाही कर रहा है। वहीं वादीगण ने बताया कि संबंधित भूमि संख्या में चल रहे वाद के दौरान न्यायालय द्वारा यह स्थगन आदेश भी जारी किया गया है कि वादीगण के काबीज व दाखील में प्रतिवादीगण द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया जाए। इसके बावजूद प्रतिवादीगण द्वारा तरह तरह से भूमिधारी भूमि कब्जा करने की नियत से भूमिका रची जा रही है। 


धनउगाही के चक्कर में वर्षों से अधिक समय तक पड़ी रही धारा 24 की फाइल  


तीन वर्षों से अधिक समय तक धारा 24 की फाइल पड़ी रही जिसकी पैमाईश नहीं की गई। वहीं जब राजस्व निरीक्षक सूरज पटेल से इतने लंबे समय तक भूमि की पैमाईश न होने का हवाला देकर बात की गई तो वह टाल मटोल करता रहा 


तथा मोटी रकम की मांग भी किया जिससे कि वादीगण लंबी रकम देने में असमर्थ रहे। वहीं कुछ दिनों बाद समय लंबा होता देख सूरज पटेल ने फर्जी तरीके से बिना किसी सूचना व बिना पैमाईश किए ही गलत तरीके से रिपोर्ट लगा दी। 


 

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