ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मनाई गई जयन्ती।
समर्पित राष्ट्र सेवी थे, वे कलम के सिपाही तो थे ही,साथ ही आजादी के सूरमा भी थे
स्वतंत्र प्रभात
हमीरपुर-
सुमेरपुर वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे विमर्श विविधा के अन्तर्गत जिनका देश ऋणी है के तहत भारत मां का एक बेजोड़ पुरोधा ईश्वर चन्द्र विद्या सागर की जयन्ती 26 सितंबर पर अपना उदगार व्यक्त करते हुये कहा कि ईश्वर चन्द्र विद्या असि और मसि के प्रतीक थे, देश के प्रति इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है, ईश्वर चन्द्र विद्या सागर सही अर्थों मे एक समर्पित राष्ट्र सेवी थे, वे कलम के सिपाही तो थे ही,साथ ही आजादी के सूरमा भी थे
, ईश्वर चन्द्र का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले मे ठाकुर दासके घर मां भगवती देवी के कोख से हुआ था, उनकी प्रतिभा को देखते हुये शिक्षा काल मे संस्कृत कालेज ने ईश्वर चन्द्र को विद्या सागर की उपाधि से विभूषित किया गया, जो उनके जीवन मे उपनाम बन गयी।ईश्वर चन्द्र का बहुआयामी व्यक्तित्व था वे शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक और स्वातन्त्र्य सूरमा थे,ईश्वर चन्द्र बंग गद्य के जनक थे,ईश्वर चन्द्र ने 52 पुस्तकों की रचना
की,जिनमें से 17 संस्कृत की थी,उनकी कृतियों मे वैतालपंचविन्शति,शकुन्तला तथा सीता वनवास उल्लेखनीय रही, उन्हीं के प्रयासो से अंग्रेजों ने 1956 मे विधवा पुनर्विवाह कानून बनाया, जिससे सामाजिक क्षेत्र मे नया आयाम मिला,ईश्वर चन्द्र विद्या सागर का जीवन सादगी भरा रहा, वे दिखावटी जीवन से दूर रहे।उनका जीवन वह प्रेरणा पथ था,जिस पर चल कर जीवन को एक दिशा मिल सकती है।
कालांतर मे उनका देशसेवा करते हुये 29 जुलाई 1891 को निधन हो गया।कार्यक्रम मे अवधेश कुमार एडवोकेट, अशोक अवस्थी, रमेशचंद गुप्ता, वृन्दावन गुप्ता, आयुष गुप्ता, कल्लू चौरसिया एवं लखन आदि उपस्थित रहे।
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