दिल्ली में कंक्रीट के जंगल में लाखो पौधे रोपण का दावा,करोडों का बजट स्वाह पर पर्यावरण वहीं खडा

दिल्ली में कंक्रीट के जंगल में लाखो पौधे रोपण का दावा,करोडों का बजट स्वाह पर पर्यावरण वहीं खडा

स्वतंत्र प्रभात। एसडी सेठी। राजधानी दिल्ली में कंक्रीट  के जंगलों के बीच हर साल लाखों पौधे रोपण का सरकारी हवाई दावा करने और  करोडों का बजट निगलने के बाद दिल्ली वालों को ना तो  ठंडक,.मिली और ना ही शुद्ध हवा और पर्यावरण ही मयैसर हो पाया है। वहीं रोज-बा-रोज जहरीली हवा को निगलने वाले राजधानी वासी सांस दमा ,टीबी,फेफड़े समेत अन्य बीमारियों के लपेटे में जरूर आ रहे हैं।   आंकडों के मुताबिक नई दिल्ली में पुरानी दिल्ली की तुलना में हरियाली क्षेत्र का दायरा 47.08 है। वहीं इसी वीआईपी दक्षिण दिल्ली में 34.27 फाॅरेस्ट कवर एरिया है। सेंट्रल दिल्ली की बात करें तो हरित क्षेत्र एरिया- 23.86 ,साउथ वेस्ट दिल्ली- 12.31, उत्तरी दिल्ली-7.72, उत्तर पूर्वी का जमना- पार एरिये में 6.68 वहीं  ईस्ट दिल्ली में 6.10 एरिया हरित है।

अब जनसंख्या बाहुल वेस्ट दिल्ली  में 5.27 तो  नाॅर्थ  वेस्ट दिल्ली में रोहिणी समेत अली पुर, नरेला, की सैंकडों काॅलोनी और स्लम बहु संख्यक क्षेत्र की आबादी के हिसाब से हरित क्षेत्र  में सबसे पिछड़ा यानि 3.96 एरिया  ही फाॅरेस्ट कवर एरिया है। (यह सारी जानकारी इंडिया स्टेट फाॅरेस्ट रिपोर्ट पर आधारित है)  अब जरा हरी-भरी दिल्ली , पेड कटेगे-सांस घटेगे जैसे चासनी में लपेटे नारो के बीच माॅनसून में हर साल- दर-साल पेड-पौधे लगाने का दावा  करने वाली दिल्ली सरकार के दावों को देखे तो साल 2022 में लगाए गए पौधो की संख्या-35 लाख , वहीं साल-2023 में -52 लाख पौधा रोपण करने का दावा किया गया है।

अब दिल्ली सरकार द्वारा वर्ष-2024 में -64 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। देखा जाए तो इन पौधो के आंकडो में राजधानी दिल्ली हरित जंगल में तब्दील हो जानी चाहिये थी। यहां ये बता दें कि केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय समेत निजी,और ढेरों स्वयंसेवी संस्थाए के अलावा स्कूल,काॅलेजों के द्वारा भी माॅनसून में पौधे रोपण किये जा रहे है। हर साल करोडों पेड-पौधों के लगाने के दावों के बावजूद राजधानी दिल्ली वन जंगल होने की जगह कंक्रीट के जंगल में तब्दील होती जा रही है। इन्ही वजहों से इस साल दिल्ली में 50 डिग्री से भी पार तापमान पहुंच गया है।

अगर ये ही हालात रहे तो दिल्ली के जल-जंगल-जमीन पर रहने और खाने के लाले जरूर पड जाएगे। दरअसल  पौधों के रोपण  का दिखावा कुछ ज्यादा ही दिखाई देने लगा है। इनके पीछे की सच्चाई में समाज और मीडिया में अपने चेहरे को दिखाने तक की होड है। सबसे कडवा सच ये है कि पौधा रोपण के बाद पीछे मुडकर तक नही देखते कि रोपित किए गए पौधो का क्या हाल है।उचित रखरखाव और देखभाल के अभाव में तो हजारों पेड-पौधे उम्र से पहले अपना दम तोड देते है। उनकी देखभाल का जिम्मा आखिर ले तो कौन? का अजगरी सवाल अपने फन को फैलाए डसने को बेताब है।

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