बहुत अपेक्षाएं हैं कानपुर को जनप्रतिनिधियों से 

बिठूर जैसा धार्मिक स्थल अभी तक उपेक्षा का शिकार रहा है। हालांकि कुछ उद्धार हुआ है लेकिन रखाव ठीक नहीं है 

बहुत अपेक्षाएं हैं कानपुर को जनप्रतिनिधियों से 

कानपुर। कानपुर में लोकसभा की दोनों सीटों पर चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। दो लोकसभा सांसद और नौ विधायक देने वाले उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े महानगर की व्यथा किसी से छिपी नहीं है। एक समय उत्तर भारत का मेनचेस्टर कहा जाने वाला शहर आज खराब सड़कों, जाम की स्थिति से कराह रहा है। कानपुर जिले में दो लोकसभा सीट कानपुर और अकबरपुर आतीं हैं। जिसमें किदवई नगर, गोविंद नगर, कैंट, आर्यनगर, सीसामऊ, कल्याणपुर बिठूर, महाराजपुर और घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र लगते हैं।
 
लेकिन इतने जनप्रतिनिधि होते हुए भी कानपुर को वह पहचान नहीं मिली जिसका वह हकदार था। कानपुर के बड़े उद्योग शासन और प्रशासन की निरंकुशता का शिकार होकर पलायन कर गए। फिर भी आज कानपुर में बड़े और मझोले स्तर के करीब 4000 कारखाने कार्यरत हैं जो देश भर में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। कानपुर की पहचान चमड़ा उद्योग से भी होती है। यहां का चमड़ा उद्योग पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाए हुए है। लेकिन सुविधाएं न मिलने के कारण वह भी बीच बीच में बंद करा दिया जाता है। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक राजस्व देने वाला कानपुर आज बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
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कानपुर शहर से 30 किमी दूर आजादी में अपनी अहम भूमिका निभाने वाला और धार्मिक आस्था का केंद्र बिठूर जहां आज भी दूर दूर से लोग आते हैं। लेकिन अभी तक बदहाल है। रानी लक्ष्मीबाई का बचपन बिठूर में ही बीता था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां बाल्मीकि आश्रम में ही लव और कुश का जन्म हुआ था और उन्होंने ऋषि बाल्मीकि से ही विद्या ली थी। आज जब अयोध्या, चित्रकूट और ओरछा का विकास हुआ है तो बिठूर का विकास क्यों नहीं। इस पर कानपुर के जनप्रतिनिधियों ने भी कोई रुचि नहीं ली। कानपुर की सड़कें बदहाल है। जाम की स्थिति बहुत ही कठिन है। लेकिन अब यह देखना है कि लोकसभा में जीतने वाले जनप्रतिनिधि कानपुर के लिए क्या करते हैं।
 
 

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