कांग्रेस सरकार की मुखिया इंदिरा गांधी के खिलाफ गिरीश नारायण पांडेय ने दी थी गवाही
आपातकाल लागू होते ही कांग्रेस के इशारे पर देशद्रोह लगाकर भेज दिये गए जेल
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11 माह रहे जेल में सब कुछ हो गया चौपाट, मुलायम सरकार ने आपातकाल में जेल गए लोगों को लोकतंत्र सेनानी की दी थी उपाधि
रिपोर्ट:संदीप कुमार-फिज
लालगंज रायबरेली।
रविवार 25 जून ,आज ही के दिन 25 जून 1975 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मुखिया श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया था। आपातकाल के भय से लोग घरों में दुबक गए थे। लेकिन फिर भी हजारों लोगों ने जेल जाकर आपातकाल का विरोध किया था। जिसके कारण जल्द ही आपातकाल हटाकर कांग्रेस सरकार को हिंदुस्तान में चुनाव कराना पड़ा था। चुनाव में कांग्रेस की भारी शिकस्त हुई थी और विपक्ष की सरकार मोरारजी देसाई की अगुवाई में बनी थी। जेल गए लोगों को बाद में मुलायम सिंह यादव की सरकार में लोकतंत्र सेनानी की पदवी दी थी और आजीवन पेंशन का अधिकार भी दिया था।
लालगंज से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दायित्व धारी कार्यकर्ता गिरीश नारायण पांडे को आपातकाल लागू होते ही पुलिस ने पकड़ कर जेल में बंद कर दिया था। पुलिस के द्वारा पकड़े जाने की दास्तां बयां करते हुए पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडे ने बताया कि बरसात की वह रात याद करके आज भी हम और हमारा परिवार सिहर उठते हैं। उनकी आंखो में चमक आ जाती है।
आपातकाल के समय को याद करते हुए वह बताते हैं कि 3 जुलाई 1975 की रात लगभग डेढ़ बजे अचानक घर के दरवाजे को खटखटाया गया। वह छत पर लेटे थे।दरवाजा खोलने पर बूंदाबांदी के बीच लालगंज थाने के दरोगा रामदेव पांडेय अकेले खड़े नजर आए। लेकिन आनन-फानन आसपास छिपी पुलिस ने उन्हें घेर लिया।दरोगा ने कहा कि एसडीएम साहब थाने पर बैठे हैं, मिलना चाहते हैं।
इस पर श्रीपांडेय ने कहा कि इतनी रात क्या काम हो सकता है,सुबह मुलाकात करूंगा। पुलिस ने उन्हें जीप में बैठाने का प्रयास किया लेकिन दरोगा जी के काफी मानमनौव्वल के बाद वह उनके साथ पैदल ही मेन रोड होते हुए कोतवाली पहुंचे। तब लालगंज थाना कोतवाली वर्तमान में कमल गेस्ट हाउस पुराने बस स्टेशन के सामने था।वहां सलोन के एसडीएम बैठे थे।कारण पूंछने पर उन्होंने बताया कि डीएम व एसपी के निर्देश पर उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है, क्यों किया जा रहा है यह तो उन्हें भी नही पता।रात वहीं बिताने के बाद दूसरे दिन सुबह प्राइवेट बस से उन्हें रायबरेली कोतवाली ले जाया गया जहां तिलोई के रामगोपाल त्रिपाठी, अधिवक्ता रामवरदान सिंह, राजकुमार अवस्थी,रामशंकर अवस्थी (शिवगढ़) को भी लाया गया था।वहां इस बात पर पुलिस वाले मंथन करते रहे कि आखिर उन सब के खिलाफ एफआईआर क्या लिखी जाए। तीन बजे दोपहर में दिल्ली से निर्देश मिलने पर मुकदमा लिखा गया कि वह सब गिरीश नारायण पांडेय के दरवाजे पर दरी बिछा कर इंदिरा सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर तख्ता पलटने की बात कह रहे थे।
देशद्रोह का मुकदमा लिखकर सभी सातों लोगों को जेल के बैरक नंबर नौ में भेज दिया गया।वहां चाय मांगने पर जेलर ने मना कर दिया।शाम को सब्जी व रोटी खाने के लिए आई तो खराब खाना देख राजकुमार ने थाली फेक दी। बी क्लास बैरक देने की मांग को लेकर सभी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। 24 घंटे बाद तत्कालीन डीएम श्यामसुंदर सूरी को उनकी बात माननी पड़ी और तब जाकर सुविधाएं मिलनी शुरू हुई। श्रीपांडेय बताते हैं कि वार्डन से कुछ भी पूंछने पर वह जवाब नही देता था। काफी जोर देने के बाद उसने बताया कि उन सभी से बात करने को उच्चाधिकारियों ने मना किया है। जिले से उनकी बेल खारिज हो गई।
एक माह की मिली पैरोल
उस समय गिरीश नारायण पांडेय के पास लालगंज से डलमऊ के मध्य पांच किलोमीटर रेललाईन बिछाने व स्टेशन आदि के निर्माण का ठेका था। जेल जाने के चलते लगभग तीन सौ मजदूर सीमेंट आदि सामग्री लेकर भाग गए। रेललाईन का लोकार्पण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को करना था। काम ठप्प देख डिप्टी चीफ इंजीनियर रेलवे अग्रवाल जी ने डीएम श्याम सुंदर सूरी से मामला बताया। जिस पर रेललाइन पूरा करने के लिए पांच माह जेल में रहने के बाद एक माह का पैरोल मिला। जिसमें उन्होंने रेललाइन का काम पूरा किया।इसके बाद फिर जेल चले गए।
11 माह बाद हाईकोर्ट से मिली जमानत
श्रीपांडेय बताते हैं कि उनके वकील ने सलाह दी कि यदि वह तत्कालीन इंदिरा सरकार के बीस सूत्रीय कार्यक्रम को समर्थन करें और डीएम स्वयं जज से कहे तभी जमानत संभव है। लेकिन उन्होंने यह स्वीकार नही किया।
इसी बीच लालगंज पुलिस के द्वारा बनाए गए मुकदमें के गवाहों ने यह लिखकर शपथ पत्र दिया कि दर्ज किया गया मुकदमा झूठा है। जिस पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस कुंवर बहादुर अस्थाना ने उन्हें जमानत दी। लगभग 11 माह बाद वह जेल से छूटे।
15 दिन तक उन्हें परिवारी जनों से छुपा कर रखा गया
पूर्व मंत्री श्री पांडेय ने बताया कि 15 दिन तक घर वालों को पता नही चल सका कि उन्हें कहां रखा गया है। प्रशासन का आतंक इतना था कि लोग उनके घर के सामने से गुजरने में भी डरते थे कि कहीं जेल में बंद न कर दिए जाएं।
जेल में लगाते थे शाखा
पूर्व मंत्री गिरीश नारायण पांडे उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तहसील कार्यवाह थे। उन्हों ने बताया कि वह जेल मे शाखा लगाते थे। सभी लोग सुबह से ही योग आदि करते थे। जेल प्रशासन ने कभी यह करने से उन सबको नही रोंका। हालांकि कांग्रेसी नेता मामले की शिकायत लेकर डीएम से मिले थे। लेकिन डीएम ने इस मामले में कोई कार्रवाई नही की थी।
इंदिरा गांधी के खिलाफ गवाही देना पड़ा महंगा
1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेश नीति सरकार भ्रष्ट तरीके से चुनाव जीती थी। धनबल और बाहुबल के जरिए श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थी। रायबरेली लोकसभा का चुनाव इंदिरा गांधी जीती थी। खिलाफ चुनाव लड़े राजनारायण ने कोर्ट में इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनौती दी थी जिसकी सुनवाई तत्कालीन जज जगमोहन लाल सिन्हा कर रहे ।
लालगंज के संघ कार्यकर्ता गिरीश नारायण पांडे उस मुकदमे में अहम गवाह थे। कांग्रेश के दिग्गज नेता यशपाल कपूर आदि ने गिरीश नारायण पांडे को हर तरीके का प्रलोभन दिया लेकिन श्री पांडे नहीं टिके और उन्होंने श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ गवाही दी। ईमानदार जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया।
कांग्रेस ने जज को भी खरीदने का प्रयास किया था और यह दबाव भी डाला गया था कि निर्णय की तारीख बढ़ा दी जाए लेकिन ईमानदार जज टस से मस नहीं हुए और निर्भीक होकर फैसला सुनाया।चुनाव रद्द होने और सांसदी जाते ही इंदिरा गांधी आपे से बाहर हो गई थी और उन्होंने देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी।
बाद में भाजपा से विधायक और मंत्री बने, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के चहेते और उनकी नजर में ईमानदार नेता रहे गिरीश नारायण पांडे को1991 मे विधायकी का टिकट मिला ।वे दो बार विधायक बने और कल्याण सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने। उन्हें मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विधि एवं न्याय मंत्री का दायित्व देखकर प्रदेश की सेवा करने का अवसर दिया था जिसमें वे खरे उतरे लेकिन राम मंदिर आंदोलन के कारण सरकार चली गई और वह बहुत समय तक मंत्री नहीं रहे। लेकिन फिर भी उन्होंने ईमानदारी पूर्वक कैबिनेट मंत्री के कार्यकाल का निर्वहन किया।
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