“अभी हम परिपक्व हुए हैं, बाकी है हमारी उड़ान”

“अभी हम परिपक्व हुए हैं, बाकी है हमारी उड़ान”

स्वतंत्र प्रभात 

वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी से जिनेवा में स्थित कण भौतिकी की विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला
‘सर्न’ तक का सफर तय करने वाली भारतीय वैज्ञानिक डॉ अर्चना शर्मा का सफर उपलब्धियों से भरा हुआ है। वह
यूरोपियन ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) में बतौर वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल रही हैं। हाल में प्रवासी
भारतीय दिवस के अवसर भारत की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उन्हें ‘प्रवासी भारतीय सम्मान’ प्राप्त हुआ है।
भोपाल में आयोजित इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (आईआईएसएफ)-2022 के दौरान डॉ अर्चना शर्मा के साथ
सुप्रिया पांडेय की बातचीत के प्रमुख अंश यहाँ प्रस्तुत हैं।

प्रश्न: वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की नगरी झाँसी से पार्टिकल फीजिक्स के मक्का कहे जाने वाले जिनेवा में स्थित
कण भौतिकी की विश्व की प्रमुख वैज्ञानिक प्रयोगशाला तक आपका सफर कैसा रहा है?

उत्तर: एक छोटे शहर के आम बच्चे की तरह मेरी पढ़ाई हुई। माता-पिता ने प्रोत्साहित किया। टीचर्स बहुत अच्छे
मिले। उनके प्रोत्साहन से पीएचडी की। मुझे सर्न में जाने के लिए इंटर्नशिप मिली और इस तरह सर्न के साथ मेरी
यात्रा शुरु हुई।

प्रश्न: विज्ञान जगत मे महिलाओं की सहभागिता कैसी स्थिति देखने को मिलती है?

उत्तर: महिलाओं के लिए संघर्ष तो है। मेरी पढ़ाई के वक्त मज़ाक तक उड़ाया जाता था। हमारे वक्त में हम दो
लड़कियां थीं और पच्चीस लड़के थे। अधिक अंक लाने का दबाव उस समय भी रहता था। खिल्ली उड़ने का डर
रहता था। पर अब बदलाव आ रहा है। महिलाओं को समाज में प्रोत्साहन मिलेगा तो वो जरूर आगे आएंगी, बढ़
आगे पाएंगी। यदि आपने सोच लिया कि आगे बढ़ना ही है तो संघर्ष आपके जीवन का एक हिस्सा बन जाता है।

प्रश्न: आपके अनुसार युवा वैज्ञानिकों को कैसे आगे बढ़ना चाहिए?

जवाब: मैं सोचती हूँ कि उनमें महत्वकांक्षा होनी चाहिए कि कहीं न कहीं हम कुछ अच्छा कर पायें। अपनी छाप
छोड़ जाएं। अपनी ज़िन्दगी या किसी अन्य की ज़िन्दगी में बदलाव ला पायें। यह बदलाव चाहे तकनीक के क्षेत्र में
हो या विज्ञान पर आधारित हो। युवाओं को जागरुक होने की जरुरत है कि विज्ञान के बारे में वो जानें और अपनी
स्किल में निरंतर सुधार करते रहें, उसे विकसित करते रहें। भारत के युवाओं में भरपूर क्षमता है। उन्हें दिशा मिलने
की देर है। मैंने सिर्फ मेहनत की है। मैं आज भी अपने आप को एक मध्यवर्गीय व्यक्ति मानती हूँ। अपनी मेहनत
करते हुए इस मुकाम पर पहुँच गई। युवा भी अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहें तो सफलता मिलनी तय है।

प्रश्न: आप कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर रही है। उस परिप्रेक्ष्य में भारत मे किन तकनीकों, साधनों
एवं संसाधनों की आवश्यकता दिखाई देती है?

उत्तर: अनुसंधान के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत बहुत आगे बढ़ा है हर क्षेत्र में। हमारी युवा
पीढ़ी में जुनून है। हमारे उद्यमी यूनीकॉर्न्स बना रहे हैं। इसी तरह, जब विज्ञान में इनपुट आएगा, तब बड़ा बदलाव
देखने मिलेगा। अभी हम परिपक्व हुए हैं। अभी हमारी उड़ान बाकी है।

प्रश्न: विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर खोजें होती रहती हैं। कोविड-19 के वक्त का रिसर्च पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: कोविड के वक्त पूरी दुनिया ही रुक गई थी। ऐसे में सवाल उठा कि अब क्या करेंगे। विधि का विधान है कि
आपदा आती है तो उसका समाधान भी आता है। हमारे देश में जिस तरह से वैक्सीन पर काम हुआ, जिस तरह से
कोविड मैनेजमेंट हुआ, सारे कोविड सर्टिफिकेट्स बने, ये सब दुनिया के लिए उदाहरण है। हमने सीमित समय में
बहुत कुछ कर दिखाया। जो काम दुनिया में सालों में होता है, वो हमने महीनों में कर दिखाया। हमको किसी नई
आपदा का इंतजार नहीं करना चाहिए, बस हमें आगे बढ़ते जाना चाहिए।

प्रश्न: विज्ञान में महारत हासिल करने के बाद आपने लेखन के क्षेत्र में भी प्रवेश किया है। अपनी नई पुस्तक के
बारे में कुछ बताइए।

उत्तर: बच्चा जो बचपन में सीखता है, उसे कितना आगे बढ़ना है, यह तय हो जाता है। जो मैंने सर्न में सीखा, वो मैं
अपने देश में आकर बच्चों को सरल भाषा में बताती हूँ। भारतीय युवा अपने देश में बहुत काम कर रहे हैं। मैं भले
सर्न में अकेली थी, पर देश में कई संस्थाओं से सम्बद्ध होकर काम कर रहीं हूँ। मैंने 'नोबेल ड्रीम्स ऑफ इंडिया'
नाम से किताब लिखी है। इसमें विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में बीते बीस साल में नोबल पुरस्कार के बारे में लिखा
गया है।

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