40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिये जाने की घोषणा से संभावित उम्मीदवारों में बेचैनी
विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों में हलचन तेज हो गयी है
बस्ती, । बस्ती जिले मेंअगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों में हलचन तेज हो गयी है। सत्ताधारी नेता प्रशासनिक मशीनरी और सरकारी धन से ताबड़तोड़ कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, वहीं विरोधियों में भी उन्हे इस बार शिकस्त देने की बेचैनी है। खास तौर से समाजवादी पार्टी के मुखिया और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी चुनावी मोड में दिख रहे हैं।
बस्ती सदर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवारी को लेकर अभी तक जिन कांग्रेसी नेताओं के नाम सामने आये हैं उनमे देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, प्रेमशंकर द्विवेदी, जयंत चैधरी, बबिता शुक्ला और अरूण पाण्डेय को लेकर चर्चायें हो रही हैं। ये सभी 2022 के चुनाव में दमखम दिखाना चाहते हैं। जिले में कम से कम एक महिला उम्मीदवार का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है, वह सीट कौन सी होगी, अभी कहना मुश्किल होगा। लेकिन बाकी नेताओं की आर्थिक पृष्ठभूमि, जनता में लोकप्रियता, सोशल मीडिया पर सक्रियता, पार्टी के कार्यक्रमों में योगदान और चुनाव को लेकर की गयी तैयारियों आदि को लेकर पार्टी नेतृत्व में मंथन चल रहा है
इनमे देवेन्द्र श्रीवास्तव पुराने कांग्रेसी हैं। शहर में ही रहते हैं। पिछले कई विधानसभा चुनावों से ये पार्टी से टिकट मांगते आ रहे हैं। लेकिन कई बार पार्टी नेतृत्व ने बाहरी प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया, 2017 में बस्ती सदर सीट समझौते में चली गयी थी। ये एक बार निर्दल चुनाव लड़कर भी भाग्य आजमा चुके हैं। ठेकेदारी इनका पेशा है और कांग्रेस नेतृत्व में इनकी मजबूत पकड़ बताई जाती है। पिछले एक साल से जनता में भी अपने पैठ बनाने की इन्होने भरपूर कोशिश की है। ये पार्टी के टास्क को लेकर सक्रिय रहते हैं लेकिन स्थानीय मुद्दों या ज्वलन्त समस्याओं को लेकर इन्हे कभी मुखर होते या संघर्ष करते नही देखा गया। नागरिकता कानून को लेकर इन्होने पिछले साल भारी भीड़ जुटाकर अपनी ताकत का अहसास कराया था। आर्थिक रूप से मजबूत हैं, टिकट मिला तो पूरे दमखम से चुनाव लड़ेंगे
दूसरे प्रमुख दावेदार हैं प्रेमशंकर द्विवेदी। वकालत इनका पेशा है। राजनीति में छात्र जीवन से ही सक्रिय हैं। सदर सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं को सहेजने के लिये ये पार्टी के बेहतर उम्मीदवार हो सकते हैं। पार्टी नेतृत्व के साथ साथ मजबूत सामाजिक पकड़ इनको अन्य नेताओं की भीड़ से अलग करती है। पार्टी कार्यक्रमों को छोड़कर ग्रामीण इलाकों में इनका आना जाना कम होता है। लेकिन पुराने कांग्रेसी होने के नाते इन्हे पहचान का संकट नही है। हालांकि सूत्रों की माने तो चुनाव में खर्च होने वाली भारीभरकम खर्च इन्हे दोयम दर्जे पर ले जा सकती है। शहर में ही रहते हैं इसलिये पार्टी के हर कार्यक्रम में इनकी मौजूदगी रहती है। ज्वलन्त मुद्दों को लेकर ये सोशल मीडिया में भी सक्रिय रहते हैं
तीसरा नाम जयंत चौधरी का है। ये शहर के महरीखावां में रहते हैं। मतदाताओं में अच्छी पकड़ नही है। पार्टी के कार्यक्रमों में योगदान रहता है लेकिन चुनाव लड़ने को लेकर पूर्व की कोई तैयारी नही है। पार्टी में लम्बे अरसे से सक्रिय योगदान दे रहे हैं। जनता में कोई खास पकड़ नही है। चैथा नाम रमेश सिंह का है। ये कई श्रमिक संगठनों के अगुआ हैं। सेना से सेवानिवृत्त हैं। हर काम को लगन से करते हैं। पब्लिक में इनकी पहचान है। चुनाव लड़ने के इरादे से कई महीनों से ग्रामीण इलाकों में संपर्क और नुक्कड़ सभायें कर रहे हैं। पार्टी ने अवसर दिया तो इन्हे समर्थन जुटाने में वक्त नही लगेगा। आर्थिक सतर पर भी ये तैयार हैं। पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी है। बड़े बोल्ड अंदाज में अपनी बात रखते हैं। पार्टी नेतृत्व में अच्छी पहचान है। पुराने कांग्रेसी हैं
चौथा नाम बबिता शुक्ला का है। यह शहर के चननी मोहल्ले में रहती हैं। बताया जाता है इनका एनजीओ, अस्पताल और कई शहरों में होटल का कारोबार है। उच्च शिक्षा प्राप्त हैं, विदेशों में आना जाना होता है, ज्वलन्त मुद्दों पर भी अपनी आवाज बुलंद रखती हैं और पीड़ितों के साथ खड़ी रहती हैं। इनका नाम तब चर्चा में आया है जब प्रियंका गांधी ने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की घोषणा की है। ये आरएलडी के टिकट पर नगरपालिका चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन प्राप्त वोटों की संख्या लगभग 500 थी। समाजवादी पार्टी से भी इन्होने टिकट की इच्छा जाहिर की थी। ब्राह्मण नेत्री के रूप में ये पहचान बनाने की कोशिश कर चुकी हैं लेकिन गंभीरता की कमी इनके लिये नुकसानदायक हो सकती ह
आखिरी नाम अरूण पाण्डेय का है। ये संकबीरनगर के चकदही के रहने वाले हैं। शहर में मालवीय रोड पर रहते हैं। कांग्रेस से पुराना नाता रहा है। कृष्णचन्द्र पाण्डेय के खानदान से बताये जाते हैं इन्दिरा गांधी के समय में कांग्रेस नेतृत्व से काफी करीब थे। एक समय था जब संतकबीरनगर में कांग्रेस उनके नाम से जानी जाती थी। इनका दावा है कि टिकट मिला तो पूरा दम दिखायेंगे। पार्टी के निर्देश पर होने वाले कार्यक्रमों में शिरकत करने के अलावा इन्हे भी कभी स्थानीय या ज्वलन्त मुद्दों पर संघर्ष करते नही देखा गया और न ही ग्रामीण इलाकों में मतदाताओं से संपर्क किया है। लेकिन दावा है कि अवसर मिला तो किसी से खराब प्रदर्शन नही होगा। देखना है कि कांग्रेस इन दावेदारों पर भरोसा करती है या फिर पूर्व के चुनावों की भांति कोई बाहरी प्रत्याशी इनकी उम्मीदों पर पानी फेरता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन था और बस्ती सदर सीट पर सपा के महेन्द्रनाथ यादव संयुक्त उम्मीदवार थे। भाजपा के दयाराम चौधरी को मोदी लहर का लाभ मिला और उन्होने महेन्द्रनाथ यादव को 42,594 वोटों से चुनाव हरा दिया था। बसपा के जितेन्द्र कुमार उर्फ नंदू चौधरी 49,538 वोट पाकर तीसरे नम्बर पर थे। इस बार हालात पिछले चुनाव जैसे नही हैं, जनता यूपी सरकार के कामकाज से काफी नराज है। महंगाई, बेरोजगारी और कानून व्यवस्था को लेकर जनता गुस्से में है। मोदी लहर भी नही है। ऐसे में भाजपा को 2017 जैसे परिणाम लाने के लिये लोहे का चना चबाना पड़ेगा। 2017 में जनता ने जनपद की सभी 5 विधानसभा सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को सम्मानजनक जनादेश दिया था। फिलहाल इससे ज्यादा अभी कुछ कहना उचित नही होगा। आगे के विश्लेषण के लिये तैयार रहिये।

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