सुर लहरियां नहीं ,जहर उगलता है शहर

सुर लहरियां नहीं ,जहर उगलता है शहर

सुर लहरियां नहीं ,जहर उगलता है शहर


 

अपने-अपने शहर से प्यार ककरने वाले मेरे जैसे असंख्य लोग अब अपने शहर के लगातार जहरीले होते जाने से दुखी हैं .आपका शहर कौन सा है ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,क्योंकि अब दिल्ली से लेकर ग्वालियर तक एक ही जहरीले शहर हो चुके हैं और इस सबके लिए जिम्मेदार है हमारा सिस्टम .क्योंकि शहरों की हवा में अब जहर जनता या किसान नहीं बल्कि सिस्टम की लापरवाही की वजह से फैल रहा है .

हरियाणा और पंजाब के किसानों पर आरोप लगाया जाता है की दिल्ली और आसपास की हवा में जहर पराली जलने वाले लोग फैलाते हैं .लेकिन ग्वालियर जैसे शहर जो किसी जमाने में हवा में संगीत की सुर लहरियां घोला करते थे वहां की हवा में जहर किसान नहीं बल्कि सिस्टम घोल रहा है.ये सिस्टम शहर को स्मार्ट बनाने के नाम पर ग्वालियर की आवोहवा को जहरीला बना रहा है .इस सिस्टम में शामिल नगर निगम,विकास प्राधिकरण और स्मार्ट सिटी परियोजना .दुर्भाग्य ये है की ग्वालियर के विकास के मसीहाओं को ये सब दिखाई नहीं देता .

दिली के पर्दूषण को लेकर हाय-तौबा मचने वालों को शायद पता नहीं है की ग्वालियर की हवा में प्रदूषण का स्तर ५०० तक पहुँच चुका है .हवा में प्रदूषण की वजह आतिशबाजी या पराली का जलाना नहीं बल्कि वो धूल है जो शहर की सड़कों को बर्बाद किये जाने के कारण उड़ रही है. शहर का कोई एक हिस्सा नहीं है जहां की सड़क सही-सलामत है. किसी न किसी योजना के नाम पर सड़कों को खोद तो दिया गया है किन्तु बाद में उन्हें पूर्व की स्थिति में नहीं लाया गया. अनियोजित विकास की वजह से सड़कें खोदना एक मजबूरी हो सकती है किन्तु काम समाप्त होने के बाद सड़कों की मरम्मत   करना कोई नहीं चाहता .

स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत शहर में प्रदूषण बताने वाले संकेतक ही ये सब जानकारी दे रहे हैं की हवा किस खतरनाक सीमा तक जहरीली हो चुकी है.लेकिन खतरे की सूचनाएं पढ़कर आप कर क्या सकते हैं. प्रदूषण को रोकने के लिए जिम्मेदार लोग तो रजाई ओढ़कर बैठे हैं .अपनी पूर्व रियासत की सियासत के लिए पूरा समय देने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या किसानों के नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर,किसी को लगातार जहरीली हो रही अपने शहर की हवा की कोई फ़िक्र नहीं है .जिले के प्रभारी मंत्री,विधायक सब नीम बेहोशी में हैं .

इस जहरीली हवा वाले शहर ग्वालियर में सिंधिया का अपना दस हजार करोड़ रूपये की कीमत वाला जय विलास महल भी है ,ग्वालियर के इस व्हाइट हाउस पर भी इस जहरीली हवा का असर होता है लेकिन इसके भीतर रहने वाले लोग तीसों दिन यहां नहीं रहते इसलिए उन्हें शहर के लगातार जहरीले होने का सही -सही अंदाजा नहीं है .केंद्रीय मंत्री सिंधिया ग्वालियर को पर्यटन हब बनाने के लिए लगातार प्रयत्नशील हैं .वे ग्वालियर में रेल और म्यूजिकल सर्किट बनाना चाहते हैं किन्तु उन्हें शायद नहीं पता की कोई भी सर्किट इस जहरीले शहर को पर्यटन हब नहीं बनने देगा .शहर को पर्यटन हब बनाने से पहले प्रदूषण से मुक्त  करना   होगा .

ग्वालियर के पास जितनी ऐतिहासिक सम्पदा है उतनी देश के कम ही शहरों के पास है किन्तु दुसरे शहर ग्वालियर जितने प्रदूषित नहीं है .ग्वालियर में तो वायु प्रदूषण की वजह से सूरज कब उगता है और कब डूब जाता है ,इसका पता ही नहीं चलता .ग्वालियर के आकाश पर सुबह से शाम तक धुंध छायी रहती है .प्रदूषण के मामले में ग्वालियर चीन की राजधानी बीजिंग का मुकाबला करता दिखाई देता है .जितना वायु प्रदूषण मैंने बीजिंग में देखा है उतना ही अब ग्वालियर में देख रहा हूं .ग्वालियर उन बदनसीब शहरों में से एक है जहां एक भी सड़क ठीक-ठाक नहीं है.ग्वालियर में सड़कों का जाल है लेकिन सबकी सब सड़कें उधड़ी पड़ी हुईं हैं .ग्वालियर के मुकाबले तो उज्जैन  और देवास की सड़कें ज्यादा निरापद हैं .

अफ़सोस की बात  ये है कि ग्वालियर के बढ़ते प्रदूषण को लेकर जन प्रतिनिधि तो नीम बेहोशी में हैं ही लेकिन समाजिक संस्थाएं भी कुछ करने को तैयार नहीं हैं .प्रदूषण को ग्वालियर की जनता ने अपनी नीयति  मान लिया है. इस मुद्दे पर न कोई आंदोलन होता है न कोई बहस .इसी वजह से विकास की तथाकथित एजेंसियां स्वच्छंद हैं .पूरा प्रशासन नेताओं की आवभगत में उलझा  रहता है उसके पास हवा में प्रदूषण घोलने वाली एजेंसियों से सड़कों को दुरुस्त  करा  पाने  का समय ही नहीं है.सब अपनी नाक पर महंगे मास्क लगाकर  महंगी कारों में बैठकर निकल जाते  हैं .दम घुटता है आम जनता का ,जिसके पास कोई दूसरा विकल्प  ही नहीं है इस जहर से बचने  का  .

पिछले दो साल  से हम केवल कोरोना से होने वाली मौतों  के आंकड़ों  में ही उलझे  हैं ,किसी ने ये आंकड़े नहीं जुटाए  कि हवा में प्रदूषण बढ़ने  से शहरों में कितने बच्चे और बुजुर्ग  मौत  का शिकार  बन  रहे हैं ? प्रदूषण आदमी को कोरोना की तरह चटपट नहीं मारता,बल्कि धीरे-धीरे जान लेता है .आपको  यकीन  नहीं होगा किन्तु ये हकीकत  है कि भारत  में कोरोना से अब तक कुल 4 .62  लोग मारे गए जबकि प्रदूषण से हर साल 10  लाख से ज्यादा लोग मारे जा रहे हैं .

प्रदूषण भारत के लिए यह एक खतरे की घंटी है। हेल्‍थ इफेक्‍ट इंस्टीट्यूट के मुताबिक वर्ष 2015 में भारत में 10 लाख से ज्‍यादा असामयिक मौतों का कारण वायु प्रदुषण था। वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण के चलते 18 फीसद मृत्‍यु हुई। इतना ही नहीं अब इसका प्रभाव देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर भी पड़ रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष अर्थव्‍यवस्‍था को जीडीपी का करीब 14 फीसद नुकसान उठाना पड़ा है। वायु प्रदूषण का गंभीर नकारात्‍मक प्रभाव विभिन्‍न क्षेत्रों पर पड़ा है, इसमें श्रम उत्‍पादकता और कृषि उत्‍पाद भी शामिल हैं।बावजूद इसके हम कोरोना से तोc लड़  रहे हैं लेकिन उससे  कहीं  ज्यादा  खतरनाक प्रदूषण को हमने  खुला  छोड़  दिया है

 ग्वालियर की आवोहवा को लेकर विश्व  स्वास्थ्य  संगठन  ने पांच  साल पहले ही चेतावनी दे दी  थी .उस  समय ग्वालियर को दुनिया  के 20 प्रमुख  प्रदूषित  शहरों में शुमार  किया  गया था  तो तत्कालीन महापौर और वर्तमान संसद विवेक  शेजवलकर  समेत  तमाम  नेताओं ने विश्व  स्वास्थ्य  संगठन  की आलोचना  की थी ,किन्तु हालात  तब  से अब तक और खराब  हो चुके हैं.ग्वालियर की  तरह आपके  अपने शहर में भी आवोहवा जहरीली हो रही है.कृपा  कर जागिये  और लोगों को जगाइए .अपने शहर के जन प्रतिनिधियों और प्रशासकों को घेरिये और प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष के लिए उनके ऊपर दवाब डालिये अन्यथा अगली पीढ़ी बीमार पैदा होगी .
@ राकेश अचल

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