मंहगाई की मार प्रति सिलेन्डर नौ सौ पार गृहणियों को याद आ रही पुरानी चूल्हा

मंहगाई की मार प्रति सिलेन्डर नौ सौ पार गृहणियों को याद आ रही पुरानी चूल्हा

गैस से टूटने लगा नाताःउज्जवला का उजाला खत्म, गाँव हुआ धुँआ-धुँआ  


 स्वतंत्र प्रभात 

 
शिव शंभू सिंह


,कुशीनगर


गरीबो का गैस से नाता टूटता हुआ दिखाई दे रहा है इस लिए की दिनोदिन बढ़ती कीमतों से किसान मजदूर हैरान है। गैस सिलेंडर के दाम ₹976 पहुंचने से उज्जवला योजना के ज्यादातर लाभार्थियों का गैस सिलेंडर चूल्हे से निकालकर अलग रख दिए गए हैं।

फ्लॉप होते उज्जवला योजना से जहां गांव में फिर लकड़ी जलाने वाले चूल्हे जलने लगे हैं वहीं सरकार को भी करोड़ों रुपए का चूना लग रहा है।


उल्लेखनीय है कि कुशीनगर जनपद अंतर्गत 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना अंतर्गत निशुल्क गैस कनेक्शन देने की शुरुआत जनपद अंतर्गत संचालित भारत गैस, हिंदुस्तान पैट्रोलियम, इंडेन गैस एजेंसी के द्वारा 108 केंद्रों के माध्यम से की गई जिसके तहत 1.45 करोड परिवारों को निशुल्क कनेक्शन दिए गए।

सरकार ने सोचा कि गरीब तबके के लोग गैस और चूल्हा खरीदने में सक्षम नहीं है इसलिए सरकार प्रत्येक कनेक्शन पर 1600 रुपए की सब्सीडी  पेट्रोलियम कंपनी को दी और सोलह सौ रुपया कंपनी को सब्सिडी उपभोक्ताओं से रिफिल वसूली कर पूरी कर लेगी। उन दिनों गैस सिलेंडर ₹700 का था उस पर ₹250 सब्सिडी सरकार उपभोक्ताओं को देती थी। एजेंसी के माध्यम से एजेंसी वाले उज्जवला उपभोक्ताओं को सब्सिडी न देकर कंपनी को भेज देते थे।

गृहिणियां बोली चूल्हा फूंकना अच्छा नहीं लगता


खड्डा तहसील क्षेत्र के बुलहवा गांव के टोला जोकहिया निवासी सुशीला देवी को उज्जवला योजना का कनेक्शन मिला था वह चूल्हा फूंकने को मजबूर है क्योंकि उनके पास सिलेंडर भरवाने का पैसा नहीं है एक सिलेंडर भरवाने की कीमत में वह पूरे महीने घर चलाती हैं और लकड़ी खरीदकर चूल्हा जलाती हैं जो गैस से सस्ता पड़ता है। उसका कहना है कि पहले ₹400 में सिलेंडर भरा जाता था और अब ₹976 में मिल रहा है।

 इस महंगाई में गैस कैसे भरवाये। छितौनी गांव की मैना देवी कहती हैं कि पहले सिलेंडर सस्ता मिलता था जब सिलेंडर मंहगा हो गया है तो गैस भरवाना बूते की बात नहीं है। इतने पैसे कहां से लाएं जब कनेक्शन लिया था तो पता नहीं था कि सिलेंडर इतना मंहगा हो जाएगा। छितौनी गांव की ही कलावती देवी कहती हैं कि महीने एक हजार में सब्जी और दाल का काम चल जाता है कमाई है नहीं कहां से गैस भरावे। इधर गैस की उठान कम होने पर एजेंसी वाले पूरा दिन उपभोक्ताओं को फोन करके कहते हैं कि गैस ले जाओ नहीं तो कनेक्शन बंद हो जाएगा।

 लेकिन गांव के गरीब अपना गैस सिलेंडर और पासबुक पूंजीपतियों के हाथों बंधक रख दिए हैं। जिसका लाभ गरीबों को न मिलकर अमीरों को मिलने लगा है।


निःशुल्क योजना का ऋण नहीं हो रहा जमा


केंद्र सरकार ने जैसी ही सब्सिडी बंद कर दी, लोगों ने गैस सिलेंडर भरवाना बंद कर दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि सरकार ने चूल्हा और रेगुलेटर उपभोक्ताओं को निशुल्क कनेक्शन के नाम पर लोन पर दिया था जो उपभोक्ता के सब्सिडी से भरी जानी थी,उसकी कीमत भी नहीं निकल सकी है। सिलेंडर महंगा होने से ज्यादातर गृहिणी लकड़ी जलाने में ही अपनी भलाई समझ रही है। 


शहरी क्षेत्रों में तो फिर भी कुछ रिफिलिंग ली जा रही है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में शायद ही कोई घर है जो इस योजना का लाभ उठा रहा हो एक एजेंसी मालिक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केवल 20% ही रिफिल हो रही है 80% लोग गैस नहीं ले जा रहे हैं। जबकि प्रतिदिन एजेंसी से फोन किया जा रहा है उपभोक्ताओं का कहना है कि हम ₹1000/ का सिलेंडर कहां से भरावे जब पैसे ही नहीं है ऐसे में यह सरकार की योजना पूरी तरह फ्लाप होने के कगार पर खड़ी है।


 

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