Swantantra prabhat kavita sangrahn hindi sahitya
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कविता-कब तक रहोगे हमेशा बेखबर से।

कविता-कब तक रहोगे हमेशा बेखबर से। संजीव-नी।     कब तक रहोगे हमेशा बेखबर से।     यहां गिरा हर कोई शाखे सिफर से मैं वाकिफ हूं गुमनामी के कहर से।     मोहब्बत का इजहार जोर से कीजै ये इशारा किया है किसी ने उधर से।     मिला जब न दीदार का...
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