Sahitya kavita
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी।

संजीव-नी। ग़ुज़री तमाम उम्र उसी शहर में कोई जानता न था  वाक़िफ़ सभी थे,पर कोई पहचानता न था..    पास से हर कोई गुजरता मुस्कुराता न था, मेरे ही शहर में लोगों को मुझ से वास्ता न था।    मेरे टूटे घर में...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी। फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।

संजीव-नी। फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है। संजीव-नी।    फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।    आओ उजालों से कुछ सीख लेते है, ताज़ी हवाओ से उमंगें भर लेते हैं।    जमाने की तमाम बुराई रखे एक तरफ, फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।    पतझड़ में पत्तो को...
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