बंगाल हिंसा : राज्य में कानून का शासन नहीं, शासक का कानून , हाईकोर्ट में पेश की रिपोर्ट

बंगाल हिंसा : राज्य में कानून का शासन नहीं, शासक का कानून , हाईकोर्ट में पेश की रिपोर्ट

निर्णय के लिए, एनएचआरसी ने फास्ट-ट्रैक अदालतों, विशेष लोक अभियोजकों और एक गवाह संरक्षण कार्यक्रम की स्थापना का आह्वान किया है। इसने अनुग्रह राशि भुगतान, क्षति के लिए मुआवजा, बहाली और पुनर्वास के उपाय, सीएपीएफ के


कोलकाता। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा पर अपनी रिपोर्ट कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कर दी है। इसमें पीड़ितों के प्रति ममता सरकार द्वारा उदासीनता बरतने का आरोप लगाया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में हिंसक घटनाओं में पीड़ितों की दुर्दशा के प्रति राज्य सरकार की भयावह उदासीनता है और प्रदेश में कानून का शासन नहीं चलता, बल्कि शासक का कानून चलता है।

निर्णय के लिए, एनएचआरसी ने फास्ट-ट्रैक अदालतों, विशेष लोक अभियोजकों और एक गवाह संरक्षण कार्यक्रम की स्थापना का आह्वान किया है। इसने अनुग्रह राशि भुगतान, क्षति के लिए मुआवजा, बहाली और पुनर्वास के उपाय, सीएपीएफ के स्थिर पिकेट, महिलाओं को सुरक्षा, अपराधी सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश की है। वहीं दूसरी ओर रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, मैं अदालत का सम्मान करती हूं और चूंकि यह विचाराधीन है, इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगी, लेकिन मैं एक बात का उल्लेख करना चाहूंगी। रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में कैसे आई, जब यह अभी भी अदालत द्वारा सुना जाना बाकी है? इससे पता चलता है कि क्या हो रहा है।

उन्होंने कहा, जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है वह चुनाव से पहले की है और उस समय प्रशासन राज्य सरकार द्वारा नहीं बल्कि चुनाव आयोग द्वारा नियंत्रित किया गया था। वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि अदालत राज्य सरकार को बोलने के लिए एक मौका देगी और वहां हम सब कुछ कहेंगे।

अदालत को सौंपी गई 50 पन्नों की रिपोर्ट में एनएचआरसी ने कहा कि यह मुख्य विपक्षी दल के समर्थकों के खिलाफ सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों द्वारा की गई प्रतिशोधात्मक हिंसा थी। इसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों के जीवन और आजीविका में बाधा उत्पन्न की गई और उनका आर्थिक रूप से गला घोंट दिया गया। इस रिपोर्ट में स्थानीय पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है, कई विस्थापित व्यक्ति अभी तक अपने घरों को वापस नहीं लौट पाए हैं और अपने सामान्य जीवन और आजीविका को फिर से शुरू नहीं कर पाए हैं। कई यौन अपराध हुए हैं, लेकिन पीड़ित बोलने से डरते हैं। पीड़ितों के बीच राज्य प्रशासन में विश्वास की कमी बहुत स्पष्ट दिखाई देती है।

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रिपोर्ट के अनुसार, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि पुलिस प्रभाव में और पक्षपातपूर्ण तरीके से काम कर रही है और उसमें सत्ताधारी सरकार के गुंडों के खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं है। पुलिस थानों के आई/सी (प्रभारी निरीक्षक) की ओर से एफआईआर दर्ज करने की तो बात ही छोड़िए, उन्होंने न तो कई हिंसक घटनाओं के स्थानों का दौरा किया, न ही कोई सबूत एकत्र किया या बयान दर्ज किए। 
एनएचआरसी ने सिफारिश की है कि हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों की जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए और इन मामलों की सुनवाई राज्य के बाहर की जानी चाहिए। अन्य मामलों की जांच अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल द्वारा की जानी चाहिए।

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इसे राजनीतिक-नौकरशाही-आपराधिक सांठगांठ बताते हुए, रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि इस हिंसा का एक खतरनाक पहलू सार्वजनिक डोमेन में व्यापक रूप से सामने आ रहा है कि इसने राज्य प्रशासन में किसी भी तरह से कोई सहानुभूति नहीं पैदा की। न तो वरिष्ठ अधिकारियों और न ही राजनीतिक नेताओं ने हिंसा निंदा की और न ही ऐसे स्थानों का दौरा करते हुए पीड़ितों को आश्वस्त किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि समस्याओं को सुधारने के लिए कुछ भी नहीं किया गया। डेटा शीट के रूप में तथ्यों को पेश करते हुए, एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, प्राथमिकी में उद्धृत 9,304 आरोपियों में से केवल 1,354 (14 प्रतिशत) को गिरफ्तार किया गया है और इनमें से 80 प्रतिशत पहले से ही जमानत पर हैं। इस प्रकार, कुल मिलाकर, 3 प्रतिशत से कम आरोपी जेल में हैं, जबकि 97 प्रतिशत खुले में घूम रहे हैं, जो पूरे सिस्टम का मजाक उड़ाते हैं।

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एनएचआरसी ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की धरती बंगाल में कानून का राज नहीं है, बल्कि यहां शासक का कानून चल रहा है।
 

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