श्री कृष्ण राधा का प्रेम पवित्र था : पूर्णिमा मिश्रा
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शिवगढ़,रायबरेली। क्षेत्र के शिवगढ़ नगर पंचायत अन्तर्गत ढेकवा वार्ड में स्थित शीतला माता के मन्दिर परिसर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छठे दिन कथा वाचक पूर्णिमा मिश्रा ने गोवर्धन तथा श्री कृष्ण-राधा के पवित्र प्रेम की कथा सुनाई, श्रीकृष्ण-राधा के निस्वार्थ, निश्छल प्रेम की कथा सुन श्रोता भाव विभोर हो गए। कथावाचक पूर्णिमा मिश्रा ने एक प्रसंग के माध्यम से श्री कृष्ण-राधा जी के पवित्र प्रेम की कथा सुनाते हुए कहा कि श्री कृष्ण और राधा का प्रेम निस्वार्थ, आध्यात्मिक, और अमर था, उनका प्रेम शारीरिक नहीं था, भक्ति का एक शुद्ध रूप था। राधा और कृष्ण के प्रेम में धैर्य, त्याग की शक्ति थी।
उन्होंने बताया कि एक दिन रुक्मणी ने श्री कृष्ण को चम्मच से खीर खिलाई तो खीर ज्यादा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के मुंह में लगा और उनके श्रीमुख से निकला- हे राधे ! जिससे रुक्मणी दुखी हुई जिसके बाद रुक्मड़ी ने दूसरा चम्मच खीर खिलाई तो श्री कृष्णा के मुंह से फिर निकला हे राधे ! यह सुनते ही रुक्मणी बोलीं- प्रभु ! ऐसा क्या है राधा जी में, जो आपकी हर सांस पर उनका ही नाम होता है ? मैं भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूं... फिर भी, आप हमें नहीं पुकारते ! श्री कृष्ण ने कहा -देवी ! आप कभी राधा से मिली हैं? और मंद मंद मुस्काने लगे।
अगले दिन रुक्मणी श्रीकृष्ण जी के साथ राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंचीं तो राधा जी के महल के पहले द्वार पर अत्यंत खूबसूरत स्त्री बैठी थी जिसके मुख पर तेज होने कारण रुक्मिणी ने सोंचा कि यही राधी हैं रुक्मणी ने पूछा क्या आप ही राधा हो तब वो बोली- मैं तो राधा जी की दासी हूं। रुक्मणी अगले द्वार पर पहुंची जहां उससे खूबसूरत, रूपवान स्त्री बैठी थी रुक्मणी ने पूछा क्या आप ही राधा हो उसने उत्तर दिया नही मैं राधा जी की दासी हूं। इसी तरह सातों द्वारों पर रुक्मणी को एक से खूबसूरत श्रृंगार किए, रूपवान स्त्रियां बैठे मिली जिनसे रुक्मणी ने पूछा क्या आप ही राधा हो सभी ने यही उत्तर दिया मैं राधा जी की दासी हूं।
इसी तरह रुक्मणी ने सातों द्वार पार किये और, हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख रुक्मणी यही सोच रही थी कि अगर उनकी दासियां इतनी रूपवान हैं... तो, राधारानी स्वयं कितनी सुन्दर होंगी ? सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंचीं... कक्ष में राधा जी को देखा- अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था। रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ीं... पर, ये क्या राधा जी ने इशारे से रुक्मणी का अभिवादन और श्री कृष्णा को प्रणाम किया।
रुक्मणी ने श्री कृष्ण से पूछा राधा जी बोल क्यों नहीं रही तो श्री कृष्णा रुक्मणी से बोले राधा बोल नहीं सकती राधा जी के मुंह और गले में छाले पड़े हैं कल आपने हमें जो खीर खिलाई थी वह बहुत ज्यादा गर्म थी मैंने खीर तो खा ली किंतु उससे राधा का मुंह जल गया जिससे राधा जी के मुंह में गले में छाले ही छाले हैं। उन्होंने कहा कि भले ही हमारे 2 शरीर है किन्तु आत्मा एक है, राधा के बिना श्री कृष्ण आधा है।
रुक्मणी सब समझ गई और रुक्मणी पुन: राधाजी के चरणों में गिर पड़ी और बोली आपका प्रेम पवित्र है जिसकी जगह कोई नहीं ले सकता। इस मौके पर कथा के मुख्य यजमान नीरज कुमार मिश्रा, मीना मिश्रा, नंदकिशोर तिवारी, राज बहादुर सिंह, मान तिवारी, धीरज मिश्रा, संजय शुक्ला, संजय त्रिवेदी, श्रवण पाण्डेय, सुदामा त्रिवेदी, ध्यानू पाण्डेय, राजकुमार शुक्ला, सोनू पाण्डेय, पंकज मिश्रा आदि लोग उपस्थित रहे।
समाजसेवी राज दीक्षित कथावाचक पूर्णिमा मिश्रा को किया सम्मानित
समाजसेवी राज भैया उर्फ राज दीक्षित हरियाणा वाले ने श्रीमद् भागवत कथा में अपनी टीम के साथ पहुंचकर कथा वाचिका पूर्णिमा मिश्रा को सम्मानित किया, प्रसाद भेंट किया एवं भण्ड़ारे के लिए 5100 रुपए नगद धनराशि दी तथा कथा वाचिका पूर्णिमा मिश्रा का आशीर्वाद लिया। इस मौके पर राकेश त्रिवेदी, अमित मिश्रा आदि लोग उपस्थित रहे।
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