उपभोगता बन रहे शिक्षा दिलाने को लेकर कंगाल विद्यालय तंत्र मालामाल
जब शिक्षा बना व्यापार फिर कैसे गरीब परिवार का हो नैया पार
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किताब कॉपी और ड्रेस के नाम पर प्राइवेट विद्यालयो में हो रहा व्यापक भ्र्ष्टाचार, चिन्हित दुकानों व विद्यालय के इलावा कहीं पर नहीं मिलता विद्यालय की सामग्री
बलरामपुर जहां एक तरफ सरकार शिक्षा अभियान को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा नीति के अंतर्गत साक्षरता अभियान चला शिक्षा को लेकर व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चला विद्यालय चलो अभियान व साक्षर प्रदेश का स्वप्न साकार की बात कर रही है और सभी वर्ग के लोगो को प्ररेरित करते हुए अपने नन्हे मुन्ने बच्चो नवनिहालो को विद्यालय में भेजने व शिक्षा दिलाने के बात करती है। और शिक्षत भारत बनाने को लेकर सर्व शिक्षा अभियान चला कर सबको शिक्षा देने के दावे कर रही है ताकि देश में शिक्षा का ग्राफ ऊपर उठने के साथ शिक्षित प्रदेश व जनपद के साथ इसकी ज्योति छोटे गाव तक भी पहुचे जिससे अशिक्षा का अंधकार दूर किया जा सके जिसके लिए शिक्षा की ज्योति जलाना बहुत ही आवश्यक है।
लेकिन देखा यह जा रहा है कि किसी जमाने मे गुरु जी व विद्या आश्रम गुरुकुल की समाज के प्रति बड़ा आदर ब सम्मान था वही जिम्मेदारी की शिक्षक अपने जिम्मेदारी के निर्वहन बिना किसी लालच व द्वेष के करते थे लेकिन आज विद्यालय की तस्वीर बदल चुकी आज वह शिक्षा का मंदिर नही मात्र व्यापारी की दूकान बन चुका है जिसकी बानगी क्षेत्र में उपज रहे प्राइवेट स्कूलों से कर सकते है जंहा शिक्षा मिलती है लेकिन उसके बदले कितना कुछ आम उपभोगता को झेलना पड़ता है ।
कही एडमिशन ,तो कही किताबें कापियां कही ड्रेस के बाद मंहगी फीस देकर अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने को विवश है कारण यह है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर ठीक नही की बात होती है तो वही प्राइवेट विद्यालय शिक्षा को व्यापार बना चुके है जिसकी नगर से लेकर गाव तक भरमार है और शिक्षा के नाम पर सफेदपोशों की दूकान चल रही है । वही गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार का परिवारिक बजट डगमग हो रहा है ।
आपको बता दे कि क्षेत्र में अधिकांश ऐसे प्राइवेट विद्यालय है जिनका न तो मानक पूरा होता है और न ही वह सरकारी मांनक के ऊपर खरे उतरते हैं लेकिन स्थानीय प्रशासन के मेहरबानी से विद्यालय का संचालन किया जाता है और शिक्षा के नाम पर कई तरह के फीस की वसूली के साथ किताब कापी व ड्रेस के साथ एडमिशन के नाम पर भी भारी भरकम रकम अभिभावकों से वसूल की जाती है। ऐसे विद्यालय भी क्षेत्र में मौजूद है जिनके द्वारा किताब कापियां व ड्रेस के साथ सभी सामग्री अपने विद्यालय में ही बेचते है इसके साथ कुछ चिन्हित विशेष दूकानों पर बिकवाने का काम किया जाता है।
जंहा विद्यालय व किताब विक्रेताओं के सेटिंग का बात होती है कि कौन कितना फायदा देगा उस हिसाब से कमीशन सेट रहता का बोलबाला है जहां एलजी और यूकेजी की किताबें लेने पर उनका बिल औसत 5000 से 6000 के बीच आता है जिससे एक मध्यमवर्गीय परिवार काफी परेशान होता है जिसकी जानकारी कई पीड़ित उपभोगताओ से मिल रही है । वही विद्यालयों के बल्ले बल्ले हैं। और हर वर्ष उनका फायदा लगातार बढ़ता देखा जा रहा है। जिससे ऐसा लगता है कि अब शिक्षा समाज सेवा नहीं एक व्यापार बन चुका है और तमाम प्रिंसीपल और प्रबंधक व्यापारी जिसके चलते अक्सर गरीब और मध्यम परिवार के लोग अपने बच्चों को शिक्षा देने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ सरकार का सर्वशिक्षा अभियान का दावा भी धराशाई साबित हो रहा है जिसमे यह नारा की एक रोटी खायेंगे बच्चो को पढ़ाएंगे।
सर्व शिक्षा अभियान के चलते सबको शिक्षा प्रदान की जा रही है के सरकारी दावे मंहगाई के कारण फेल साबित हो रहा है। जबकि इस संबंध में बेसिक शिक्षा अधिकारी ने बताया कि सरकार के द्वारा ऐसा कोई नियम नहीं है कि प्राइवेट विद्यालय अपनी एडिशन चला किताब कापियां व शिक्षा सामग्री बेचने का व्यापार करे और अगर ऐसा मिलता है तो उन पर कार्यवाही की जाएगी
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