कांग्रेस का बसपा को आफर - मानेंगे अखिलेश ?
On
लोकसभा चुनाव में 66 से 99 पर पहुंची कांग्रेस गदगद है और विशेषकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी और कांग्रेस के गठबंधन ने जो प्रदर्शन किया है वह तो अलग ही कहानी लिख रहा है। कांग्रेस का मानना है कि यदि बहुजन समाज पार्टी साथ में होती तो शायद हम इससे कहीं और अधिक सीटें उत्तर प्रदेश में जीतते। कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है और इस चुनाव में भी यह सच ही साबित हुआ। हालांकि उत्तर प्रदेश में पिछड़ने के बाद एनडीए की सरकार तो बन गई लेकिन भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में अकेले बहुमत नहीं मिला। यह उत्तर प्रदेश की ही खासियत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने बहुजन समाज पार्टी को खुला निमंत्रण दिया है कि वह चाहें तो आगे के लिए गठबंधन में शामिल हो सकतीं हैं।
प्रमोद तिवारी का कहना है कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन ऐसी 16 सीटें हारा है जहां यदि बहुजन समाज पार्टी के वोट उसे मिल जाते तो वह 16 सीटें और जीत सकते थे। मायावती की बहुजन समाज पार्टी का अस्तित्व खतरे में है क्योंकि लोकसभा में उनकी संख्या शून्य हो गई है और विधानसभा में केवल एक विधायक है। इस लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अपना कोर वोट भी नहीं बचा सकी। इस तरह से यह निश्चित है कि मायावती भी कोई न कोई विकल्प जरुर ढूंढ रहीं होंगी कि भविष्य में उनकी पार्टी का इतना बुरा हाल न हो जो इस बार हुआ है। हालांकि यदि बात करें तो भारतीय जनता पार्टी का कोर वोट भी उत्तर प्रदेश में कम हुआ है जिसका सीधा फायदा समाजवादी पार्टी को मिला है।
इस चुनाव की बात करें तो मतदाताओं ने जातिगत बंधन को तोड़ कर मतदान किया है। समाजवादी पार्टी को 37 लोकसभा सीट ऐसे ही नहीं मिली हैं। कुछ भारतीय जनता पार्टी की कमियां और कुछ अखिलेश यादव का प्रबंधन इसके लिए अहम है। लेकिन सवाल यह है कि इतनी सफलता पाने के बाद क्या अखिलेश यादव बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन में आने देंगे। आज लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और यदि यही हाल विधानसभा चुनाव में रहा तो यह मामला अखिलेश यादव के पक्ष में आ सकता है। फिर अखिलेश यादव कैसे मायावती से समझौता कर सकते हैं। और मायावती विधानसभा चुनाव में किसी भी हालत में समाजवादी पार्टी से कम सीटों में तैयार नहीं होंगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन था और उस गठबंधन ने 15 लोकसभा सीटें जीती थीं जिसमें बहुजन समाज पार्टी को 10 और समाजवादी पार्टी को 5 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। और चुनाव बाद मायावती ने तुरंत गठबंधन यह कहकर तोड़ दिया कि सपा अपना वोट बसपा में ट्रांसफर नहीं करा सकी जिससे बसपा को काफी नुकसान हुआ है। जब कि हकीकत कुछ और थी। आज भी समाजवादी पार्टी लोकप्रियता में भारतीय जनता पार्टी के साथ बराबर में खड़ी है। यदि बसपा पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन नहीं करती तो उसको एक सीट भी मिलना मुश्किल हो जाती बल्कि उस गठबंधन में समाजवादी पार्टी का ही नुकसान हुआ था।
और समाजवादी पार्टी केवल पांच सीटें ही जीत सकी थी। उसका कारण स्पष्ट था कि उस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट समाजवादी पार्टी में ट्रांसफर नहीं हो सका था। यदि हम बात करें 2014 के लोकसभा चुनावों की तो वहां भी बहुजन समाज पार्टी शून्य पर सिमट गई थी और आज भी शून्य पर है। विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा वहां भी लगभग शून्य है मतलब 2014 से बसपा जितने चुनाव अकेले लड़ी है उसे शून्य ही मिल रहा है। ऐसे में आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में आती है तो अखिलेश यादव किसी भी हालत में बहुजन समाज पार्टी को ज्यादा सीटें देने पर सहमत नहीं होंगे। इस बार उत्तर प्रदेश में वोट प्रतिशत में बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस से भी पीछे रह गई। और जिस समाजवादी पार्टी के लिए कहा जा रहा था कि वह अपने परिवार की पांच सीटों पर सिमट कर रह जाएगी वह प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
37 सांसदों के साथ समाजवादी पार्टी लोकसभा में देश की तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में उम्मीद दिख रही है लेकिन बिना समाजवादी पार्टी के कांग्रेस किसी हालत में बढ़त नहीं बना सकती। बहुजन समाज पार्टी के लिए आज समय बहुत ही चिंतन का है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने शून्य से अपना सफर शुरू किया था और फिर से शून्य पर ही आ गई। इसमें सबसे बड़ा कारण है बहुजन समाज पार्टी में टूट। बहुजन समाज पार्टी में अब वो नेता नहीं बचे हैं जिनका अपना वजूद हो वह केवल पार्टी के वोटों की ही मदद से जीतना चाहते हैं।
बसपा के तमाम नेता सप और कांग्रेस में चले गए हैं और कई तितर-बितर हो गये हैं। पूर्वांचल में कई छोटी छोटी पार्टियां बन जाने से भी बसपा के वोट बैंक पर असर पड़ा है। इस बार समाजवादी पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, मध्य उत्तर प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सभी जगह सीटें जीती हैं। यहां तक कि बड़े बड़े भाजपा के नेता भी चुनाव हार चुके हैं। इस तरह से भविष्य समाजवादी पार्टी का ही दिख रहा है। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में लगाम कसनी शुरू कर दी है। इस बार उत्तर में भारतीय जनता पार्टी में भितरघात भी हुआ है जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा है। ऐसे में यदि कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन में आमंत्रित कर रही है तो यह समाजवादी पार्टी के लिए एक कठिन निर्णय होगा। सपा सहजता से बहुजन समाज पार्टी को स्वीकार नहीं कर पाएगी।
इस चुनाव में बसपा का जो कोर वोट खिसका है उसका फायदा समाजवादी पार्टी को काफी मिला है। जो वोट सपा को 2019 के चुनाव में बसपा के साथ मिलकर लड़ने पर नहीं मिल सका था वह 2024 के चुनाव में बिना बसपा के मिल गया। इसलिए अब अखिलेश यादव के लिए यह सहज नहीं होगा कि वह भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर सके। और बसपा का कोई भरोसा भी नहीं है कि वह कब गठबंधन से अपना हाथ खींच ले।
सही मायने में उत्तर प्रदेश में अब लड़ाई भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच ही रह गई है। दूसरे दल अब केवल वोट कटुआ साबित हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी में इस बार को लेकर काफी चिंतन मनन हो रहा है हर एक पहलू को देखा जा रहा है कि आखिरकार कमी कहां पर रहा गई है। इसे देखते हुए उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी मंत्रिमंडल में फेरबदल देखने को मिल सकते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभी से ही शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव सम्पन्न होते ही वही सभी विधायकों और पदाधिकारियों से एक करके मिल रहे हैं। उधर कैबिनेट की मीटिंग भी की जा रही हैं और अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि किसी तरह से जनता के कार्यों में रुकावट न आ सके। अखिलेश यादव ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है और इसका मतलब यह है कि वह अब केन्द्र में अपनी आवाज बुलंद करेंगे।
उत्तर प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष का कार्यभार शिवपाल सिंह यादव को मिलने की उम्मीद की जा रही है। लेकिन समाजवादी पार्टी के लिए वास्तव में यह एक सुनहरा काल है कि वह लोकसभा को देखते हुए विधानसभा में भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। भारतीय जनता पार्टी का अयोध्या सीट हार जाना एक छोटी बात नहीं है और इसका संदेश पूरे देश में गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बनारस में वोट प्रतिशत कम होना भी भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चिंता का विषय है। जनता क्या चाहती है यह सरकारों को समझना होगा केवल वोट पाकर अपनी चलाना बिल्कुल भी जनता को पसंद नहीं आ रहा है। बरहाल प्रमोद तिवारी ने बहुजन समाज पार्टी को जिस तरह से आफर दिया है यह समाजवादी पार्टी आसानी से पूरा नहीं होने देगी और यदि गठबंधन होता भी है तो वह समाजवादी पार्टी की शर्तों पर ही होगा क्योंकि अब समाजवादी पार्टी के हौसले बुलंद हैं और वह जानती है कि भारतीय जनता पार्टी से टक्कर लेने के लिए वह उत्तर प्रदेश में अकेले काफी है।
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर
इफको फूलपुर को ग्रीन टेक अवॉर्ड मिला।
20 Jan 2025 20:32:23
स्वतंत्र प्रभात। ब्यूरो प्रयागराज। इफको घियानगर फूलपुर इकाई को ग्रीनटेक फाउंडेशन की तरफ से ग्रीनटेक कॉरपोरेट कॉमु्निकेशन एंड पब्लिक रिलेशन...
अंतर्राष्ट्रीय
इस्पात नगर केमिकल फैक्ट्री में लगी भीषण आग ! कई फायर स्टेशन की गाड़ियों ने आग पर पाया काबू
20 Jan 2025 23:24:40
कानपुर। आज सुबह इस्पात नगर स्थित एक कैमीकल फैक्ट्री के गोदाम में भीषण आग लग गई। आग ने इतना विकराल...
Comment List