कानपुर में दिन भर होती रही राष्ट्रीय राजनीति की चर्चा 

कानपुर में दिन भर होती रही राष्ट्रीय राजनीति की चर्चा 

कानपुर। इस बार लोकसभा के परिणाम कुल ऐसे मिल रहे हैं कि स्थानीय प्रत्याशी पर चर्चा न करके हर व्यक्ति राष्ट्रीय राजनीति की चर्चा करते नजर आया। काउंटिंग जारी थी लेकिन भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार अकेले बहुमत से दूर रही। लेकिन एनडीए को बहुमत मिला। 
 
पिछले लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में भले ही सरकार एनडीए की थी लेकिन भारतीय जनता पार्टी अकेले बहुमत से अधिक थी ये भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात रही। उत्तर प्रदेश में उससे भी चिंतनीय प्रश्न यह यहा कि इंडिया गठबंधन एनडीए से आगे जा रहा था और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से आगे जा रही थी। अचानक ऐसा कैसे हो गया। शायद ऐसा किसी ने नहीं सोचा था।
 
भारतीय जनता पार्टी अब पूरी तरह से अपने सहयोगी दलों पर निर्भर है जिससे सहयोगी दलों की अहमियत बढ़ चुकी है। लेकिन इसमें से चन्द्र बाबू नायडू की टीडीपी और नितीश कुमार की जेडीयू की अहमियत बढ़ गई है। लेकिन क्या नितीश कुमार और चन्द्र बाबू नायडू पक्का एनडीए के साथ बने रहेंगे। अब सारा दारोमदार घटक दलों पर ही निर्भर है कि कहीं वह पलट न जाएं। मामला मात्र 30 सीटों पर फंस रहा है। और राजनीतिक दलों का इतिहास बताता है कि यहां कुछ भी संभव है और कुछ भी असंभव नहीं है।
 
 हालांकि कानपुर में दोनों सीटों पर भाजपा प्रत्याशी आगे चल रहे थे लेकिन चर्चा यही चल रही थी कि अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गठबंधन की सरकार चलानी होगी। लेकिन अब जितने भी घटक दल हैं इनको बहुत ही सम्मान देना होगा नहीं तो कभी भी मामला इधर से उधर हो सकता है। एक चर्चा और चलती दिखी कि यदि एनडीए की सरकार बनी भी तो क्या वह अपना कार्यकाल पूरा कर पायेगी। इस चुनाव ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा सभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ा ही चिंता लगा दी है। क्यों कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी है और भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर पर आई है। 
 
एक और चर्चा थी कि अब बहुजन समाज पार्टी का क्या होगा क्या बसपा का खत्मा हो चुका है। चन्द्रशेखर आजाद की नगीना से जीत यह बताती है कि चन्द्रशेखर बहुजन समाज के अगले नेता बनने जा रहे हैं। क्यों कि बसपा का स्कोर शून्य जा रहा है।
 
 

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