महिला कांस्टेबल के लिंग परिवर्तन का मामला: राज्य सरकार का ढीला रवैया, हाईकोर्ट सख्त

महिला कांस्टेबल के लिंग परिवर्तन का मामला: राज्य सरकार का ढीला रवैया, हाईकोर्ट सख्त

स्वतंत्र प्रभात
इलाहाबाद ।

हाई कोर्ट ने जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के लिए नियम बनाने में कार्रवाई नहीं करने और इसके लिए राज्य सरकार के तीन माह का समय मांगने पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने 18 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई पर यह बताने के लिए कहा है कि एसआरएस का नियम बनाने के लिए क्या किया गया है।


कोर्ट ने अगली तारीख तक सक्षम प्राधिकारी को याची के लंबित आवेदन पर उचित निर्णय लेने का भी निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अजित कुमार ने महिला कांस्टेबल नेहा सिंह की याचिका पर पिछली सुनवाई को दो निर्देश दिए गए थे।

एक याची के लिंग परिवर्तन की मांग में दाखिल अर्जी के निस्तारण का था और दूसरा केंद्र सरकार के पारित अधिनियम और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में राज्य को जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के संदर्भ में नियम बनाने के लिए था।
कोर्ट ने कहा कि याची के वकील के अनुसार उसके मामले में अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

 हाई कोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनुपालन न करने पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने अधिनियम बनाकर तुरंत कार्रवाई की थी, लेकिन राज्य अब भी मूकदर्शक है।
जिस तरह तीन माह का अतिरिक्त समय मांगा गया है, उससे पता चलता है कि राज्य फिर बेहद लापरवाही भरा रवैया अपना रहा है।. इस बात का कोई कारण भी नहीं बताया गया कि राज्य सरकार हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन महीने का समय क्यों चाहती

है।कोर्ट ने कहा कि मामले को पुनः 18 अक्टूबर को शीर्ष पर रखा जाए। उस तिथि को याची के मामले में सक्षम प्राधिकारी का निर्णय शपथपत्र पर पेश किया जाए। इसके साथ ही यह भी बताया जाए कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में राज्य सरकार ने नियम बनाने के लिए क्या किया है। जेंडर रिअसाइनमेंट क्या है जब कोई पुरुष महिला जैसा या महिला पुरुष जैसा महसूस करने लगते हैं, तो वह सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी यानी लिंग परिवर्तन की मदद लेते हैं। लिंग परिवर्तन के लिए आपरेशन के कई लेवल होते हैं। प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है।

महिला से पुरुष बनने के लिए करीब 32 तरह की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। जिन लोगों को जेंडर डायसफोरिया होता है, वो इस प्रकार का आपरेशन कराते हैं। इसमें लड़का तो लड़की और लड़की भी लड़के की तरह जीना चाहती है। कई में 12 से 16 वर्ष के बीच जेंडर डायसफोरिया के लक्षण शुरू हो जाते हैं, लेकिन समाज के डर की वजह से ये अपने माता-पिता को इन बदलावों के बारे में बता डरते हैं।पुरुष से महिला बनने में 18 चरण होते हैं। सर्जरी को करने से पहले डाक्टर देखते हैं कि लड़का और लड़की इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हैं या नहीं। इसके लिए मनोरोग विशेषज्ञ की सहायता ली जाती है। इसके बाद इलाज के लिए हार्मोन थेरेपी शुरू की जाती है। जिस लड़के को लड़की वाले हार्मोन की जरूरत है वो इंजेक्शन और दवाओं के जरिए उसके शरीर में पहुंचाया जाता है।

इंजेक्शन के तीन से चार डोज के बाद शरीर में हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं, फिर इसका प्रोसीजर शुरू किया जाता है। इसमें पुरुष या महिला के प्राइवेट पार्ट और चेहरे का आकार बदला जाता है। महिला से पुरुष बनने वाले में पहले ब्रेस्ट को हटाया जाता है और पुरुष का प्राइवेट पार्ट डेवलप किया जाता है।

पुरुष से महिला बनने वाले व्यक्ति में उसके शरीर से लिए गए मांस से ही महिला के अंग बना दिए जाते हैं। इसमें ब्रेस्ट और प्राइवेट पार्ट शामिल होता है। ब्रेस्ट के लिए तीन से चार घंटे की सर्जरी करनी पड़ती है। सर्जरी चार से पांच महीने के गैप के बाद ही की जाती है।

About The Author

Post Comment

Comment List

Online Channel

साहित्य ज्योतिष

कविता
संजीव-नी। 
संजीव-नी।
संजीव-नीl
संजीव-नी।