आपराधिक पृष्ठभूमि वाली राजनीति

आपराधिक पृष्ठभूमि वाली राजनीति

भारत की राजनीति में सत्य परक राजनीति की दिनोंदिन होती कमी अपराधिक पृष्ठभूमि को जन्म दे चुका है। हर तरफ अपराध का बोलबाला दिखने के साथ अपराधियों का सफेद चोले में दिखना भारत के राजनीति में एक लंबी लकीर खींच रहा है। जिस पर अंकुश लगाना अति आवश्यक होता जा रहा है नहीं तो हर

 भारत की राजनीति में सत्य परक राजनीति की दिनोंदिन होती कमी अपराधिक पृष्ठभूमि को जन्म दे चुका है। हर तरफ अपराध का बोलबाला दिखने के साथ अपराधियों का सफेद चोले में दिखना भारत के राजनीति में एक लंबी लकीर खींच रहा है। जिस पर अंकुश लगाना अति आवश्यक होता जा रहा है नहीं तो हर समाज में बाहुबलियों का राज और जनता अपने विकास का रोना अब युगो तक रोती रहेगी।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए स्वच्छ समाज की उम्मीद बेकार साबित होती नजर आ रही है। जिस लोकतंत्र की पृष्ठभूमि को हमारे पूर्वजों ने हमें बना कर दिया था उस पर आज कालिख पोत दी गई है। लोकतंत्र में राजनीतिक अस्तित्व सर्वोपरि माना गया ताकि जनता तक उनका प्रतिनिधि जो राजनीतिक गलियारों से निकलकर संसद तक पहुंचा है वह जनता के विकास का कार्य कर एक विकसित भारत का निर्माण करेगा।
 आज राजनीति में दागियों का वर्चस्व हो गया है। मौजूदा वक्त में लगभग 160 सांसदों पर हत्या दुष्कर्म और अपहरण बलात्कार के गंभीर मामले दर्ज है।

अभी इस श्रेणी में विधायकों का आंकड़ा और भी आगे होगा। मतलब जिस स्वच्छ राजनीति की कल्पना देश ने की होगी उसका पृष्ठभूमि वर्तमान समय में बिल्कुल बदल चुका है। आज हम अपने जनप्रतिनिधियों से  स्वच्छ आचरण विचार व्यवहार की उम्मीद कदापि नहीं कर सकते। आज जनता के बीच से निकलकर संसद और विधानसभा में पहुंचने वाले जनप्रतिनिधि अपने अपने समाज के अपराधी छवि वाले धनाढ्य लोग हैं। ऐसे में जनता चाह कर भी उनसे किनारा अपने को नहीं कर पाती है। जिसके परिणाम स्वरूप वे जनप्रतिनिधि जीतने के बाद जनता को ही नजरअंदाज करने लगते हैं। राजनीति से जिस समाज के विकास की कल्पना लोकतंत्र में की जा रही थी उसके साख पर ही वर्तमान समय में बट्टा लग चुका है।

 मतलब साफ है आपराधिक पृष्ठभूमि वाली राजनीति का बोलबाला हमारे लोकतंत्र में हो गया है। वैसे तो नियम कानून हर दिन कुछ न कुछ संशोधन के बाद समाज में बताए जाते हैं उम्मीदवारों को टिकट मिलने के बाद उन्हें अपने ऊपर दर्ज सभी अपराधों की सूचना अपने पार्टी को देनी होगी और पार्टी कुछ घंटों के भीतर सार्वजनिक रूप से बताएगा कि उसके अपराधिक छवि के प्रत्याशी को टिकट क्यों दिया गया ? प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से पूर्व उन्हें अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों की सूचना चुनाव आयोग को देनी होती है। लेकिन लोकतंत्र में अपनी जीत दर्ज कर संसद तक पहुंचने वाले सांसद ही जब अपराधिक छवि के होंगे तो भला वे अपने ऊपर नियम कानून क्यों बनाएंगे? इसकी कल्पना करना भी व्यर्थ है। आज गरीब व्यक्ति किसी पार्टी से टिकट लेकर चुनाव नहीं लड़ सकता क्योंकि अधिकतर टिकट खरीदे और बेचे जाते हैं लोकसभा विधानसभा की कौन कहे पंचायत चुनाव में भी पैसे वालों की ही छवि नेता वाली बताई जाती है। बाद बाकी अगर आप चुनाव लड़ना चाहते हैं

और आपके पास पैसा नहीं है मतलब आपके ही समाज में कुछ लोग आपको बेवकूफ साबित करने में लग जाएंगे जिसका लाभ अपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों को मिलने लगता है। और चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को शासन सत्ता और देश में वजूद वाली पार्टियां उनके धनबल की वजह से उन्हीं को सपोर्ट भी करने लगती हैं ऐसी परिस्थिति में अपराधिक छवि वाले लोगों के द्वारा लगाया गया पूंजी जीत कर आने के बाद अगले 5 साल तक सूद समेत वापस वसूला जाता है। 


जिसको सूद समेत वापस वसूला जा रहा है वह पैसे आपके क्षेत्र के विकास के लिए सरकारी बजट होता है। लेकिन जनप्रतिनिधियों को आपने वोट डालकर संसद में भेजा है वह यह सोचने लगता है यह पैसे तो हमारे द्वारा चुनाव में खर्च किए गए हैं आखिर उसकी भरपाई कैसे होगी ? ऐसी अपराधिक पृष्ठभूमि राजनीति में तैयार हो चुकी है कि नेताओं के कहने पर बाबू अधिकारियों माफियाओं और तमाम, छोटी-बड़ी पार्टियों के नेताओं की योग्यता अपराध के गलियारे से होती हुई बहने लगती है। कुछ एक वरिष्ट को छोड़ दिया जाए तो नेताओं के लिए राजनीति एक इन्वेस्टमेंट है। जो एक साल लगाना पांच साल तक रिटर्न पाने जैसा हो गया है।

सत्ता पर काबिज होने के साथ ही व्यवस्था को निचोड़ कर सारे संगीन मामलों को अपने ऊपर से हटा धन एकत्र करना उद्देश्य रह जाता है। जनता को भी अपनी समस्याओं का समाधान अपराधिक छवि वाले जनप्रतिनिधियों में ही दिखने लगा है।अपराधिक छवि वाले जनप्रतिनिधि अपने जीत को जनता का आशीर्वाद बता कर इतना प्रचार प्रसार कर देते हैं कि सारी नेगेटिव चीजें गर्त में चली जाती हैं और न्यायपालिका भी सारी नेगेटिव तथ्यों पर अपने निर्देश देने के बावजूद असर नहीं दिखा पाती है। संसद को संविधान के अनुच्छेदों अथवा जनप्रतिनिधि अधिनियम में संशोधन कर अपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों की अयोग्यता और उनके अधिकारों को भी रोका जाए।

वैसे तो न्यायपालिका, कार्यपालिका विधायिका सभी को इस मामले पर गंभीरता के साथ विचार करते हुए अपराधिक छवि वाले राजनीतिज्ञों को बाहर का रास्ता दिखाने के साथ इनको दोबारा चुनाव ना लड़ने का कानून बनाना आवश्यक हो गया है। जो प्रत्याशी अपराधिक छवि के हैं और नए सिरे से चुनाव लड़ना चाहते हैं उन पर भी अंकुश लगाना देश के विकास के लिए अति आवश्यक है। समाज में फैली इस धारणा को भी समाप्त करना होगा कि राजनीति सिर्फ गुंडे बदमाशों और ऊंचे पहुंच वालों के लिए है। जनता को बताना होगा कि यदि अच्छे लोग राजनीति में नहीं आएंगे तो संसद में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ अपराधियों के पास ही रह जाएगा। फिर राजनीति से अपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग ही देश को चलाएंगे।

आपराधिक पृष्ठभूमि वाली राजनीति

लेखक व विचारक: प्रशांत तिवारी

Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel