भगवान शिवजी के अवतार अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता श्री हनुमानजी

भगवान शिवजी के अवतार अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता श्री हनुमानजी

भगवान शिवजी के अवतार अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता श्री हनुमानजी


हनुमानजी जन्मोत्सव (16 अप्रैल  2022)

हनुमानजी भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान हैं ।

 हनुमानजीका जन्म त्रेतायुगमें चैत्र पूर्णिमाकी पावन तिथिपर हुआ । तबसे हनुमान जयंतीका उत्सव मनाया जाता है । इस दिन हनुमानजीका तारक एवं मारक तत्त्व अत्यधिक मात्रामें अर्थात अन्य दिनोंकी तुलनामें 1 सहस्र गुना अधिक कार्यरत होता है । इससे वातावरणकी सात्त्विकता बढती है एवं रज-तम कणोंका विघटन होता है । विघटनका अर्थ है, रज-तमकी मात्रा अल्प होना । इस दिन हनुमानजीकी उपासना करनेवाले भक्तोंको हनुमानजीके तत्त्वका अधिक लाभ होता है ।

ज्योतिषियों की गणना अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था ।

हनुमानजी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी तथा माता अंजना हैं । हनुमान जी को पवनपुत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पवन देवता ने हनुमानजी को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

हनुमानजी को बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि हनुमानजी का शरीर वज्र की तरह है।

पृथ्वी पर सात मनीषियों को अमरत्व (चिरंजीवी) का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं । हनुमानजी आज भी #पृथ्वी पर विचरण करते हैं।

हनुमानजी को एक दिन अंजनी माता फल लाने के लिये आश्रम में छोड़कर चली गई। जब शिशु हनुमानजी को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे । उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया । जिस समय हनुमान जी सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु #सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था । हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया । उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे । आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है ।"

राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े । राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे । राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्र से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई ।

हनुमान की यह दशा देखकर  वायुदेव को क्रोध आया । उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दी । जिससे संसार का कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे । तब सारे  सुर,  असुर, यक्ष,  किन्नर आदि #ब्रह्मा जी की शरण में गये । ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये । वे मूर्छित हनुमान जी को गोद में लिये उदास बैठे थे । जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की । फिर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान दिया कि कोई भी #शस्त्र इनके अंग को हानि नहीं कर सकता । इन्द्र ने भी वरदान दिया कि इनका  शरीर वज्र से भी कठोर होगा । सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा कि मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा । यमदेव ने अवध्य और  निरोग रहने का आशीर्वाद दिया । #यक्षराज कुबेर,  #विश्वकर्मा  आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये ।

इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत मे हनु) टूट गई थी । इसलिये उनको "हनुमान"नाम दिया गया । इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, #संकटमोचन, #केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, बालाजी महाराज आदि । इस प्रकार हनुमान जी के 108 नाम हैं और हर नाम का मतलब उनके जीवन के अध्यायों का सार बताता है ।

एक बार माता सीता ने प्रेम वश हनुमान जी को एक बहुत ही कीमती सोने का हार भेंट में देने की सोची लेकिन हनुमान जी ने इसे लेने से मना कर दिया । इस बात से माता सीता गुस्सा हो गई तब हनुमानजी ने अपनी छाती चीर का उन्हें उसे बसी उनकी प्रभु राम की छव‍ि दिखाई और कहा क‍ि उनके लिए इससे ज्यादा कुछ अनमोल नहीं ।

हनुमानजी के पराक्रम अवर्णनीय है । हमुमान जी शिवजी का अवतार हैं। भगवान श्री राम के कार्य में साथ देने (राक्षसों का नाश और धर्म की स्थापना करने )के लिए भगवान शिवजी ने हनुमानजी का अवतार धारण किया था ।

मनोजवं मारुततुल्य वेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्य, श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ।

‘मन और वायु के समान जिनकी गति है, जो जितेन्द्रिय है, बुद्धिमानों में जो अग्रगण्य हैं, पवनपुत्र हैं, वानरों के नायक हैं, ऐसे श्रीराम भक्त हनुमान की शरण में मैं हूँ ।

जिसको घर में कलह, क्लेश मिटाना हो, रोग या शारीरिक दुर्बलता मिटानी हो, वह नीचे की चौपाई की पुनरावृत्ति किया करे..
 बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन - कुमार |
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ||

चौपाई - अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।।

यह हनुमान चालीसा की एक चौपाई  जिसमें तुलसीदास जी लिखते है कि हनुमानजी अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ऐसा सीता माता ने उन्हें वरदान दिया ।  यह अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती है जिसकी बदौलत हनुमान जी ने असंभव से लगने वाले काम आसानी से सम्पन किये थे। आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों, नौ निधियों और भगवत पुराण में वर्णित दस गौण सिद्धियों के बारे में विस्तार से बताते है।


हनुमानजी को  जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-

1.अणिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं। इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।

2. महिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था। इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।

3. गरिमा:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।
गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया। पवनपुत्र हनुमान के भाई थे भीम क्योंक‍ि वह भी पवनपुत्र के बेटे थे ।

4. लघिमा:  इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं। जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।

5. प्राप्ति:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं। रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।

6. प्राकाम्य:  इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को प्राप्त कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं। इस सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल तक प्राप्त कर लिया है।

7. ईशित्व:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।

8. वशित्व:  इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं। वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।

हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो नव निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार है।
1. पद्म निधि : पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।
2. महापद्म निधि : महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।
3. नील निधि : नील निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेज से संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढ़ी तक रहती है।
4. मुकुंद निधि : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।
5. नन्द निधि : नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है ।
6. मकर निधि : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।
7. कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है ।
8. शंख निधि : शंख निधि एक पीढ़ी के लिए होती है।
9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं ।


संतोष कुमार तिवारी
भदोही, उत्तर प्रदेश 

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