jeevan ki aalochna
संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

साहित्य जीवन की आलोचना, साहित्य से परिष्कृत जीवन आचरण

साहित्य जीवन की आलोचना, साहित्य से परिष्कृत जीवन आचरण मुंशी प्रेमचंद जी ने साहित्य को "जीवन की आलोचना" भी कहा है। साहित्य एक स्वायत्त आत्मा है, और उसका रचयिता भी ठीक से नहीं घोषित कर सकता कि उसके द्वारा सृजित साहित्य की अनुगूंज कब और कहां और कितनी दूर...
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