कविता/कहानी
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

लघु नाटक '" छोटी बातें, लेकिन अच्छी बातें " का मंचन कर बच्चों को किया जागरूक।

लघु नाटक ' स्वतंत्र प्रभात  प्रयागराज।     संस्था द थर्ड बेल समय समय पर विद्यालयों में जाकर विभिन्न सामाजिक विषयों को लेकर जागरूकता का प्रयास करती रही है इसी क्रम में संस्था द थर्ड बेल की पहल पर  मंगलवार को नगर क्षेत्र स्थित डी....
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संजीव-नी।।

संजीव-नी।। संजीव-नी।। आनंद तो जीवन में चलते जाना ही हैंl    मुझे फेके गए पत्थर अपार मिले, फक्तियाँ,ताने बन कर हार मिले।    शौक रखता हूं सब के साथ चलने का, कही ठोकरे,कही जम कर प्यार मिले।    जीवन बीता आपा-धापी में ही यारों,...
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संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम।

संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम। स्वतंत्र प्रभात  संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम।    मैं चाहता हूं पृथ्वी बची रहे और बची रहे मिट्टी  आग नदिया  चिड़िया झरने  पहाड़ हरे हरे पेड़ रोटी चावल  मक्का  बाजरा समंदर  पुस्तकें मनुष्य के लिए जी बची रहे पृथ्वी...
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संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो।

संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो। संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो।    मोहब्बत में दर्द छुपा लिया करो, दर्द के छालों को छुपा लिया करो।    आशिकी छुपाना होती नहीं आसां, जमाने को मेरा नाम बता दिया करो।    हर दर्द की दास्तां होती है जुदा...
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नक्श नैन राधिका के है मोहन को भाए

नक्श नैन राधिका के है मोहन को भाए कविता  नक्श नैन राधिका के है मोहन को भाए lचंचल ठहरे हमरे कान्हा जो राधिका को चाहे ll पुकार सुन्नत गोपियो की फिर भी ना पनघट पर आये lमगर एक झलक देखन को "प्यारी की" बरसाने छलिया बनकर...
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नक्श नैन राधिका के है मोहन को भाए

नक्श नैन राधिका के है मोहन को भाए कविता     नक्श नैन राधिका के है मोहन को भाए चंचल ठहरे हमरे कान्हा जो राधिका को चाहे पुकार सुन्नत गोपियो की फिर भी ना पनघट पर आये मगर एक झलक देखन को "प्यारी की" बरसाने छलिया बनकर जाये    सुनते ही...
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संजीव-नीl सच्चे मित्र की पहचान ।

संजीव-नीl सच्चे मित्र की पहचान । संजीव-नीl सच्चे मित्र की पहचान ।    सच्चे मित्र की पहचान जो शांति के दे पैगाम, वक्त में जो काम आए वह सच्चा मित्र होता है।    साथ साथ जो कंधे  से कंधा मिलाकर पसीना बहाए, वह अच्छा मित्र होता है।   मित्र...
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संजीव-नी। फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।

संजीव-नी। फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है। संजीव-नी।    फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।    आओ उजालों से कुछ सीख लेते है, ताज़ी हवाओ से उमंगें भर लेते हैं।    जमाने की तमाम बुराई रखे एक तरफ, फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।    पतझड़ में पत्तो को...
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सामना

सामना सामना रुख पहाड़ों की तरफ कियातो समझ आयाजन्नत इस धरा पर भी है। रुख बादलों की तरफ कियातो समझ आयाबदमाशी इनमें भी है। रुख बहती नदी की तरफ कियातो समझ आयाजीवन का बहाव इनमें...
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संजीव-नी। सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl

संजीव-नी। सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl स्वतंत्र प्रभात  संजीव-नी। सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl    दरख्तो से पुराने घरोंदे वो उठाने लगे  सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl    नहि अंदेशा है उन्हें अपनी उडान की दूरी का, कंधे पर रख जीन्दगी का क़र्ज़ चुकाने...
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संजीव-नी। मशवरा है कि तेरे शहर की महफिल।

संजीव-नी। मशवरा है कि तेरे शहर की महफिल। स्वतंत्र प्रभात     संजीव-नी। मशवरा है कि तेरे शहर की महफिल।    मशवरा है कि तेरे शहर की महफिल बदले, अब तक तो कभी खंजर कभी कातिल बदले।    जिंदगी किस्तों में गुजर गई तो क्या, जितने हमदर्द थे सारे शामिल बदले।।   लहरें...
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कितना अजनबी,पराया सा दिखता है वो।

कितना अजनबी,पराया सा दिखता है वो। संजीव-नी। कितना अजनबी,पराया सा दिखता है वो।    कितना अजनबी,पराया सा दिखता है वो। अपनी सांसों में छुपा रखता है वो।    रोजाना रूबरू हो न नहो फिर भी।  जेहन में बसा रखता है वो।    कितनी मासूम है माशूका शायद । जाते...
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