कन्नौज में डिंपल का बदला लेंगे पाएंगे अखिलेश 

कन्नौज में डिंपल का बदला लेंगे पाएंगे अखिलेश 

कन्नौज लोकसभा क्षेत्र हमेशा से हाट सीट रही है यहां से बड़े बड़े नेता चुनकर संसद पहुंचे हैं। उसमें भी कन्नौज ने समाजवादी पार्टी को हमेशा अत्यधिक प्यार दिया है यदि पिछले 2019 के चुनाव को छोड़ दें। कन्नौज में पिछले चुनाव में एक बड़ा उलटफेर हुआ था जब अखिलेश यादव की पत्नी और मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव को सुब्रत पाठक ने मात्र 12315 मतों से पराजित किया था। सुब्रत पाठक की यह जीत बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन जीत तो जीत ही होती है। यहां से अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव और डिंपल यादव बहुत बड़े मार्जिन से चुनाव जीतते रहे हैं। लेकिन इस बार अखिलेश यादव ने इस सीट को हल्के में नहीं लिया। समाजवादी पार्टी ने पहले इस सीट से तेज प्रताप यादव को उतारा था परंतु बाद में यहां से अखिलेश यादव स्वयं प्रत्याशी बन गये। क्या अखिलेश यादव पिछले चुनाव में डिंपल को मिली हार का बदला लेने के लिए यहां से खड़े हुए हैं। और क्या अखिलेश डिंपल की हार का बदला ले सकेंगे यह एक प्रश्नचिन्ह है। जो कि चुनाव बाद ही पता चलेगा।
 
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यह तीन जनपदों की विधानसभा सीटों से मिलकर बना है जिनमें छिबरामऊ, तिर्वा, कन्नौज ये जनपद कन्नौज में आती हैं जब कि विधूना विधानसभा सीट औरैया जनपद में आती है और रसूलाबाद विधानसभा सीट कानपुर देहात जनपद में आती है। छिबरामऊ से भारतीय जनता पार्टी की अर्चना पांडेय विधायक हैं, तिर्वा से कैलश सिंह राजपूत भारतीय जनता पार्टी से विधायक हैं, कन्नौज से पूर्व पुलिस आयुक्त कानपुर असीम अरुण भारतीय जनता पार्टी से विधायक हैं रसूलाबाद कानपुर देहात से भारतीय जनता पार्टी की ही पूनम शंखबार विधायक हैं जब कि विधूना से समाजवादी पार्टी की रेखा वर्मा विधायक हैं। 1967 में यहां से पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से डा. राम मनोहर लोहिया चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे। मतलब अपने शुरुआती समय से ही यह गढ़ समाजवादी रहा है। यहां से दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शीला दीक्षित भी 1984 में चुनाव जीत चुकी हैं।
 
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र यादव बैल्ट में आता है और यह समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। यहां से 1999 में मुलायम सिंह यादव, सन् 2000,2004,2009 में अखिलेश यादव चुनकर संसद पहुंचे थे। जब कि 2012 और 2014 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव यहां से जीतकर संसद पहुंच चुकी हैं। और पिछले चुनाव में सुब्रत पाठक को 563087 वोट मिले थे जब कि डिंपल यादव को 550734 मत मिले थे और डिंपल यादव 12315 के मामूली अंतर से चुनाव हार गईं थीं। सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी का हार जाना एक बहुत बड़ी बात थी। लेकिन उस समय शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी से अलग हो गए थे जिससे समाजवादी पार्टी को कई सीटों पर भारी नुक़सान उठाना पड़ा था। वर्तमान चुनाव में शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी के साथ हैं। और पूरी तरह से एक्टिव दिखाई दे रहे हैं।
 
अखिलेश यादव के कन्नौज लोकसभा क्षेत्र से खड़े हो जाने से सुब्रत पाठक पर हार का संकट गहरा गया है। यह बात सुब्रत पाठक को स्वयं महसूस हो रही है। जिस तरह उन्होंने इलेक्शन कमीशन को पत्र लिखा है कि समाजवादी पार्टी ने कन्नौज में बाहरी लोगों का जमावड़ा लगा दिया है और वह गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। सोचने वाली बात यह है कि प्रदेश और देश में सरकार भारतीय जनता पार्टी की है पुलिस और सारे प्रशासनिक अधिकारी भारतीय जनता पार्टी के अंडर में हैं तो कोई दूसरी पार्टी का नेता कैसे उन्माद मचा सकता है। क्या उत्तर प्रदेश की पुलिस और प्रशासन इतना कमजोर है कि वह चुनाव में गड़बड़ी करने देगा। खैर राजनीति में यह आरोप प्रत्यारोप चलते रहते हैं। कन्नौज में अखिलेश यादव के मंदिर में पूजा करने पर भी भाजपा कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से उस मंदिर को गंगाजल से धोया था। यह एक अच्छी मानसिकता नहीं है। राजनैतिक विरोध अपनी जगह है और आस्था अपनी जगह। दरअसल यह चुनाव ही अब पूरी तरह से धर्म और जाति की राजनीति पर उतर आया है।
 
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण कुछ इस तरह से हैं यदि मुकाबला सीधे हो जाए तो समाजवादी पार्टी को हराना बहुत मुश्किल है लेकिन यदि बहुजन समाज पार्टी वोट काटने में कामयाब होती है तो नतीजा कुछ भी हो सकता है। लेकिन वहां से जो जमीनी रिपोर्ट आ रही है उसमें समाजवादी पार्टी को ही दावेदार माना जा रहा है। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव की हार को समाजवादी पार्टी भूल नहीं पाई है और इसीलिए अंत समय में प्रत्याशी बदलकर अखिलेश यादव को स्वयं चुनाव मैदान में उतरना पड़ा। अब सवाल यह उठता है कि क्या अखिलेश यादव 2019 की डिंपल यादव की हार का बदला ले सकेंगे। अभी तो केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं असली परिणाम तो 4 जून को ही पता चल सकेंगे। लेकिन यह निश्चित है कि कन्नौज लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा की सीट है और इस सीट के परिणाम की आवाज दूर दूर तक जाएगी। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्षी दल है और कन्नौज से समाजवादी पार्टी का मुखिया चुनाव मैदान में है तो पूरे देश की नजर भी इस लोकसभा सीट के परिणाम पर रहेगी। यदि इस बार भी यह सीट समाजवादी पार्टी के हाथ से जाती है तो यह समाजवादी पार्टी के लिए विचारणीय प्रश्न रहेगा।
 
 जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि कुल पड़े वोटों की जानकारी 48 घंटे के भीतर वेबसाइट पर क्यों नहीं डाली जा सकती? सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि कुल पड़े वोटों की जानकारी 48 घंटे के भीतर वेबसाइट पर क्यों नहीं डाली जा सकती?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चुनाव आयोग को उस याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिये एक सप्ताह का समय...

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel

साहित्य ज्योतिष