बड़ी सादगी से मनाई गई अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती

मंदिर पर हवन कीर्तन एवं भगवान परशुराम जयंती की तस्वीर पर किया माल्यार्पण

बड़ी सादगी से मनाई गई अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती

 रिपोर्टर/ चक्र सुदर्शन शुक्ल

सहजनवां/गोरखपुर। बड़ी सादगी में ग्राम पंचायत कटाईटीकर के टोला मिश्रवलिया में माँ समय जी के स्थान पर हर वर्ष की भाँति मंदिर कमेटी के अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में एवं संचालक एवं व्यवस्थापक धनंजय प्रताप मिश्रा की अगुवाई में आयोजित की गई  मंदिर मंडल के संचालक ने बताया की हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के अवतार परशुरामजी की जयंती मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, ऐसे में वैशाख तृतीया तिथि और प्रदोष काल में भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। अक्षय तृतीया का पर्व हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह तिथि एक अबूझ मुहूर्त है, जिसमें किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य बिना मुहूर्त का विचार कर किया जा सकता है। भगवान परशुराम के बारे में सतयुग से लेकर द्वापर युग और कलयुग में अनेक कथाएं मिलती हैं।
अक्षय तृतीया का भगवान परशुराम के अवतार से संबंध होने से यह पर्व राष्ट्रीय शासन व्यवस्था के लिए भी एक विशेष स्मरणीय एवं चिंतनीय पर्व है। दस महाविद्याओं में भगवती पीतांबरा (बगलामुखी) के अनन्य साधक परशुरामजी ने अपनी शक्ति का प्रयोग सदैव कुशासन के विरुद्ध किया। निर्बल और असहाय समाज की रक्षा के लिए उनका कुठार अत्याचारी कुशासकों के लिए काल बन चुका था।

अधर्मी कार्तवीर्य (सहस्रबाहु) जिसने परशुरामजी के पिता महर्षि जमदग्नि को मारा था, उसका वध कर उसकी राजसत्ता को परशुरामजी ने छिन्न-भिन्न कर दिया। आज लोग किसी भी जीत को प्रकट करने के लिए जिन दो उंगलियों को उठाकर विजय मुद्रा का प्रदर्शन करते हैं वह परशुरामजी की विजय मुद्रा की नकल मात्र है। भगवान परशुराम की इस विजय मुद्रा के कई भाव हैं। इसका इसका एक भाव है, जो शासक जीव और परमात्मा में अंतर समझते हैं उनका मैंने मर्दन किया है।

दूसरा यह कि मनसुख और धर्मविमुख राजाओं को यह समझ लेना चाहिए कि या तो जनक की तरह निर्गुण निराकार ब्रह्म को जानने वाले तत्वज्ञानी राजा बनो या महाराजा दशरथ आदि की तरह सगुण साकार ब्रह्म को स्वीकार करो। अवैदिक अमर्यादित राजा मेरे कुठार से बच नहीं सकते इसीलिए उन्होंने तर्जनी और मध्यमा दो उंगलियों को प्रदर्शित कर ‍तात्विक विजय मुद्रा का प्रदर्शन किया।

इसीलिए पुराणों में कहीं भी कौशल नरेश महाराजा दशरथ और मिथिला नरेश महाराज जनक के साथ परशुरामजी के मनमुटाव के उदाहरण नहीं दिखते। 
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से मनीष कुमार मिश्र, भोलू मिश्र, अमन मिश्र, अभिषेक मिश्र, सूर्यभाल मिश्र, विनोद मिश्र, सुरेन्द्र नाथ मिश्र, दुर्गेश मिश्र सहित अन्य लोग मौजूद रहें।

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