सुप्रसिद्ध सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह (रह0) बांसा शरीफ़ के सालाना मेले की तैयारी अब जोरों पर

सुप्रसिद्ध सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह (रह0) बांसा शरीफ़ के सालाना मेले की तैयारी अब जोरों पर



मसौली बाराबंकी। 


कोरोना संक्रमण के चलते पिछले दो साल से निरस्त हो रहे सुप्रसिद्ध सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह (रह0) बांसा शरीफ़ के सालाना मेले की तैयारी अब जोरों पर हैं। ईद के दिन से लगने वाले 8 दिवसीय सालाना मेले में दुकानें सजने लगी है वही झूले एव सर्कस के पिंडाल सज चुके है और जायरीनों की आमद शुरू हो गई हैं।

   जिला मुख्यालय से 20 किमी की दूरी पर स्थित कस्बा बांसा शरीफ में  सुप्रसिद्ध सूफी सन्त सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह (रह0) की मजार शरीफ सभी धर्मों का संगम है। मजार शरीफ पर देश-प्रदेश ही नही गैर मुल्कों के भी लोग आकर श्रद्धा से सिर झुका कर मन्नतें मांगते है।मजार शरीफ पर वैसे तो हर दिन जायरीनों की भीड़ रहती है परन्तु प्रत्येक माह की पहले गुरुवार को नौचंदी मेले में हजारो जायरीन दूरदराज से आते है और प्रति वर्ष ईद के दिन से आठ दिन तक सालाना मेला लगता है।जिसमे हजारो जायरीनों की भीड़ होती है।

  हजरत सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह( रह0) के पुरखे खिलजी दौर में बदरखां (अफगानिस्तान) से दिल्ली आये और दिल्ली के सुल्तान ने आपके पुरखो को मुबारज खां नाम की उपाधि दी सैय्यद साहब के वालिद सैय्यद अब्दुर्रहीम शाह( रह0) रसूलपुर महम्मदाबाद( सफदरगंज) के रहने वाले थे।सैय्यद साहब की पैदाइश से पूर्व एक फकीर चाँद शाह( रह0)  ने सैय्यद साहब के वालिद से कहा था कि तुम्हारे घर पर सूरज गिरना चाहता है 

जिसकी चमक मुझसे देखी न जायेगी और उसकी रोशनी बहुत बहुत दूर तक जाएगी। 1046 हिजरी में सैय्यद साहब की पैदाइश के बाद वही फकीर चाँद शाह (रह0) ने सैय्यद अब्दुर्रहीम शाह( रह0) से दरख्वास्त की कि तुम्हारे घर आफ़ताब आया है जिसकी जियारत करा दो मजजुब ने सैय्यद साहब की जियारत के बाद कहा कि जहाँ से आफ़ताब तुलु हुआ है ग़ुरूब होने तक रोशनी से आलम मुन्नवर होता रहेगा। मुझे ताबे नजर नही कि इनके जमाल को देख सकू और वह फकीर  वही से गायब हो गये जिनका जनाजा बाराबंकी-लखनऊ के बीच गाजीपुर जंगल मे देखा गया बाद में वही पर उनको दफनाया गया।

        4 वर्ष की उम्र में सैय्यद साहब की वालिदा  इनको को लेकर अपने मायके बांसा आ गयी और यहाँ पर मौजूद एक फकीर सैय्यद शाह मीर मुराद( रह0) की नजर  सैय्यद साहब पर पड़ी तो उन्होंने सैय्यद साहब को चूमते  कदम बोस हुए और कहा कि यह बालक कोई मामूली इंसान नही है। फर्श से अर्श तक सब इस फ़रज़न्द के जेरे कदम होने वाले हैं।सैय्यद शाह मीर मुराद( रह0) का इंतकाल सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह के बचपन मे ही हो गया था। 

सैय्यद मीर शाह मुराद की मजार शरीफ  कस्बा बांसा शरीफ में ही सिकन्दरपुर रोड़ पर जुड़वा तालाब के किनारे स्थित है जिनका कुल शरीफ 6 शव्वाल को होता है। 12 वर्ष की उम्र में आप जब तालीम के लिए रूदौली गये वही से आपके चमत्कारों का सिलसिला शुरू हो गया।19 वर्ष की उम्र में जब बांसा शरीफ वापस आये तो आपके वालदैन का इंतकाल हो चुका था और आप अपने चमत्कारों के कारण विख्यात हो चुके थे। आप का यह आलम था कि यदि कही पर कोई चमत्कार हो जाता था तो वह जगह छोड़ देते थे।आपके करामतो को देखकर कई नवाबो ने अपनी जागीरे देने की पेश की परन्तु  सैय्यद साहब ने यह कहकर ठुकरा दिया कि फकीर  को इसका क्या फायदा है।

      सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह( रह0) बदायूँ, लखनऊ, सुल्तान, भोपाल, पीलीभीत, संडीला, खैराबाद, देवा,बिलग्राम, कोटवाधाम,किन्तुर में अपने कलामात से विश्व विख्यात हो चुके थे।एक रात को हज़रत सैय्यद साहब अमेठी कस्बे में रूके हुए थे रात का वक्त था बगल में कुँआ था उस कुँए में एक औरत गिर गई आप ने औरत की रोने की आवाज सुनी तो आपने उस कुँए में अपना हाथ डालकर उस औरत को कुएं से बाहर निकाल लिया और तुरन्त वहां से चल दिये। एक दिन सैय्यद साहब कल्यानी नदी के पास खुदा का जिक्र करने गये और बरगद के पेड़ के पास अपना कम्बल बिछाकर वजू करने चले गये। 

वजू करके जब वापस आये तो देखा की एक काला सांप उनके कम्बल पर फन फैलाए बैठा था आपने फरमाया कि अगर तू किसी फसाद के इरादे से आया है तो तू चला जा सांप ने फरमाया कि मैं  खुदा का जिक्र सुनने आया हूं उसने जिक्र सुना और चुप-चाप वापस चला गया। एक औरत के ऊपर जिन का साया था उसके घर वाले उसको आपके पास लाए तो आपने अपने खादिम को हुक्म दिया इस औरत को कोड़े मारे और कोड़े मारे गये तो उसका जिन भाग गया।

        किदवंतियो के मुताबिक सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह (रह0) जब भी देवा शरीफ से गुजरते तो कुछ समय रुक यह कहते कि हमारी छठी पुस्त में एक ऐसा बुजुर्ग पैदा होगा जिनका काफी नाम होगा।जो सिजरा मिलता हैं उसमें सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह( रह0) पहली पुस्त एव सैय्यद हाजी वारिस अली शाह( रह0) छठी पुस्त में है। सैय्यद हाजी वारिस अली शाह (रह0) बराबर बांसा शरीफ  आया करते थे।पुरानी चलन आज भी कायम है सैय्यद हाजी वारिस अली शाह (रह0) के वालिद सैय्यद कुर्बान अली शाह (रह0) दादा मियाँ की मजार शरीफ के सज्जादानशीन के इंतकाल के बाद नये सज्जादानशीन की पगड़ी बांसा शरीफ के ही सज्जादानशीन बांधते है।

         सैय्यद साहब ने हमेशा एकता की बात की।बाबा रज्जाक साहब,कोटवाधाम के सतनामी जगजीवन दास एव बदोसराय के मलामत शाह( रह0) गहरे दोस्त थे और आज भी इनकी दोस्ती का प्रतीक कोटवाधाम में तीन रंगों का धागा है। 90 वर्ष की आयु में आपका इंतकाल 5 शव्वाल 1136 हिजरी में हो गया वही पर आपको दफनाया गया जहॉ पर बनी आपकी भव्य मजार शरीफ समाज के सभी वर्गों के लिए संगम है।

 भूतो एव जिन्नों की लगती हैं अदालते 

 सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह( रह0) बांसा शरीफ में आने वाले जायरीनों में भूत प्रेत से त्रस्त, निःसन्तान दम्पति,अर्धविक्षिप्त से परेशान लोगो की संख्या ज्यादा होती हैं।भूत प्रेत से त्रस्त लोगो की बाबा के दरबार मे बकायदा अदालत लगती है जिसमे भूत प्रेत बाधा से परेशान लोग पहले बाबा को तरह तरह के व्यंग सुनाते हैं परन्तु बाबा के दरबार मे आने वाली कोई भी बाधा वापस नही जाती हैं और उस बाधा को बाबा के दरबार मे ही जला दिया जाता है। ठीक होने के बाद लोग बाबा के दरबार से हंसी खुशी वापस जाते है।

 5 शव्वाल  7 मई को होगा बाबा का कुल शरीफ

सैय्यद अब्दुर्रज्जाक शाह ( रह0) की मजार शरीफ के सज्जादानशीन सैय्यद मुहम्मद उमर जिलानी ने बताया कि हमारे मकान पर 5 शव्वाल को बाबा रज्जाक साहब की टोपी,तसबी,कस्कोल की जियारत जायरीनों को करायी जाएगी तथा बाद नमाज मगरिब खानकाह ए रज्जाकी में कुल शरीफ होगा तथा बाद में लंगर का आयोजन किया जायेगा।

सार्वजनिक शौचालय व रैन बसेरा न होने के कारण जायरीनों को होती हैं दिक्कते

सालाना मेले में देश के कोने कोने से हजारों जायरीनों की सैकड़ों बसे जायरीनों को लेकर आती हैं जिससे मेले में हजारों जायरीनों की लम्बी भीड़ हो जाती है।सुविख्यात बांसा शरीफ के मेला परिसर में सार्वजनिक शौचालय न होने के कारण जायरीनों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता जिसमे महिला जायरीनों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहता है।वही रैन बसेरा न होने के कारण जायरीनों को खुले आसमान के नीचे गर्मी बरसात में रहना पड़ता हैं।

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