मंहगाई ने तोड़ी जनता की कमर, सरकार के मरहम का है इंतजार

मंहगाई ने तोड़ी जनता की कमर, सरकार के मरहम का है इंतजार


 

त्योहार में महंगाई की मार, कड़वा तेल हुआ दो सौ के  पार ।

सरस राजपूत(रिपोर्टर)

सुरियावां भदोही ।

आम आदमी के घर का बजट अभी 30-40 प्रतिशत तक बढ़ गया है। समाजवादी शिक्षक सभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य शिक्षक शैलेश पाण्डेय  कहते है की महंगाई पर काबू पाने में सरकार नाकामयाब रही, कुछ सालों में महंगाई में बेतहाशा इजाफा हुआ है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होने से आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें भी परिवहन लागत बढऩे से महंगी हुई हैं। रसोई का बजट अनियंत्रित और असंतुलित हुआ है। चाय, दाल और खाद्य तेल की कीमतों में भारी उछाल आया है।

आवाम की माने तो जिसका सबसे बड़ा कारण केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा जमाखोरी और कालाबाजारी पर अंकुश लगाने के कोई पुख्ता इंतजाम न करना है। जिसका दुष्परिणाम यह है कि आम आदमी को महंगाई का बोझ झेलना पड़ रहा है।  साथ ही साथ उन्होंने यह भी  कहा की एक तो पहले से  ही कोरोना संक्रमण के चलते आर्थिक संकट ने आवाम की कमर तोड़ दी। उस पर रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें महंगी होना जनता पर दोहरी मार है। लेकिन विडम्बना यह है कि केंद्र सरकार आज भी मंहगाई की मार झेल रही जनता के दुःख दर्द से पूरी तरह बेखबर बन बनी हुई है। इस बेलगाम बढ़ती मंहगाई की वहज से गैस सिलेण्डर के तेजी से बढ़ते दामो समेत दलहन सब्जी व फलों के दामों ने मध्यमवर्गीय परिवारों की रसोई में भी संकट पैदा किया है।

 बढ़ती महंगाई के कारण दीपावली के त्योहार के नजदीक होने पर भी बाजारों में भी सन्नाटा छाया हुआ है। जिससे ब्यापारी वर्ग की लागत निकलना भी मुश्किल है। मुनाफा तो दूर की कौड़ी। दस रुपये किलो बिकने वाला टमाटर आज 60 से 80 रुपये किलो, प्याज 40 से 60 रुपये, शिमला मिर्च 100 रुपये से 120 रुपये किलो। इसी प्रकार फलों में सेब 80 रुपये से 150 रुपये किलो केला 40 से 60 रुपये किलो, कीवी फल 40 से 70 रुपये पीस, इसी प्रकार दाल अरहर 95 रुपये से 120 रुपये किलो, मूंग 80 रुपये से 100 रुपये किलो, उड़द 120 से 135 रुपये, चना दाल 80 से 130 रुपये किलो वहीं कडुवा तेल के दाम भी आसमान छू रहे हैं जो कि 210 रुपये से 230 रुपये हो गए हैं। इसी प्रकार रिफाइन्ड के दाम भी कुछ कम नहीं हैं जो कि 145 रुपये से 180रुपये किलो हैं।  इस पर कुछ  अधिवक्ताओं, समाजसेवियों , शिक्षकों व छात्र ने बेलगाम बढ़ती मंहगाई को लेकर अपनी प्रतिक्रिया ब्यक्त की है।

वजन भी हो गया कम

नमक, साबुन की टिकिया, बिस्कुट के दाम स्थिर हैं, लेकिन स्कीम और डिस्काउंट को वापस ले लिया गया है। पैकेट में मिलने वाले सामान का वजन कम हो गया है। 70 ग्राम की जगह 60 ग्राम ही मिल रहा है। तेल के दाम बढ़ने से स्नैक्स की वस्तुएं 8-10 प्रतिशत महंगी हो गयी हैं। डिटर्जेंट पाउडर और लिक्विड के दाम में 5-7 परसेंट का उछाल आया है। चायपत्ती के दाम पर 15-20 की बढ़ोतरी हुई है। अक्तूबर में भी लोगों को राहत मिल पाना मुश्किल है।

समाज सेवी रमेश चतुर्वेदी  का कहना है की

बेलगाम बढ़ती महंगाई से जनता परेशान है। कोरोना महामारी के चलते व्यापारियों ने खाद्यान्नों के दाम बढ़ा दिए हैं और वे कालाबाजारी कर रहे हैं। बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण रखनें में जहां एक ओर सरकार पूरी तरह विफल रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार ने गैस की सब्सिडी हड़प ली। आए दिन पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ाकर जनता को लूटा जा रहा है। जो सरकार स्वयं जनता को लूटने में लगी हो, वह महंगाई पर नियंत्रण कैसे करेगी ? सरकार की आर्थिक नीति सदा से ही गलत रही, जिसकी वजह से महंगाई की मार जनता को झेलनी पड़ रही है ।

रिटायर्ड शिक्षक हृदय नारायण पांडेय का कहना है की

लगातार खाद्य पदार्थों, खाद्य तेल, पेट्रोल-डीजल, गैस की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि आमजन की कमर तोड़ रही है। इस महामारी में देश की उत्पादन क्षमता कमजोर हुई है, जबकि खुले बाजार में मुद्रा की तरलता से उपभोक्ता मांग लगातार बढ़ रही है। इससे मुद्रास्फीति बढ़ रही है। केंद्र सरकार महंगाई नियंत्रण करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। इसके विपरीत प्रत्येक बजट मे जीएसटी के अलावा अन्य कई प्रकार के सैस एवं उपकर लगा रही है। इसके परिणाम स्वरूप महंगाई बढ़ रही है। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब एवं मध्यम वर्ग के लोगों पर पड़ रहा है।

पत्रकार उमेश दुबे का कहना है की

कोरोना महामारी के इस दौर में जहां एक ओर स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हुई है ,वहीं दूसरी ओर देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। ऐसे समय में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। पेट्रोल, डीजल, खाद्य तेल, दाल, फल और सब्जियों के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना के कारण बहुत से लोग बेरोजगार हो गए है और महंगाई के कारण कई मिडिल क्लास परिवार गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं। लगातार महंगाई बढऩे से सरकार पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं।

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