छठ पूजा हिंदुओ का प्रमुख त्योहार, महापर्व की तैयारियां तेज ।

छठ पूजा हिंदुओ का प्रमुख त्योहार, महापर्व की तैयारियां तेज । छठ पूजा से सूर्यदेव होते हैं प्रसन्न परिवार में सुख समृद्धि की होती है वृद्धि उमेश सिंह (ब्यूरो चीफ ) भदोही । दीपावली पर्व के ठीक बाद परिवार की सुख समृद्धि एवं सन्तानों के उज्वल भविष्य के लिये मनाए जाने वाले छठ पूजा की

छठ पूजा हिंदुओ का प्रमुख त्योहार, महापर्व की तैयारियां तेज ।

  • छठ पूजा से सूर्यदेव होते हैं प्रसन्न
  • परिवार में सुख समृद्धि की होती है वृद्धि

उमेश सिंह (ब्यूरो चीफ )

भदोही ।

दीपावली पर्व के ठीक बाद परिवार की सुख समृद्धि एवं सन्तानों के उज्वल भविष्य के लिये मनाए जाने वाले छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। घरेलू महिलाओं के अलावा पुरुष भी इस महापर्व की तैयारियों मे तल्लीनता के साथ लगे हुए हैं। वैसे तो ये त्योहार विशेषकर हिन्दू सम्प्रदाय के मध्य प्रदेश पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, एवं पूर्वांचल के निवासियों का प्रमुख त्योहार है।

लेकिन धीरे – धीरे ये अन्य प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में भी मनाया जाने लगा है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को छठ पूजा, छठी माई पूजा, डाला छठ, सूर्य षष्ठी पूजा के नामों से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व सूर्य देव की उपासना के लिए मनाया जाता है। ताकि परिवारजनों को उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

इसके अलावा संतान के सुखद भविष्य के लिए भी इस व्रत को रखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार  छठ पर्व का व्रत रखने से नि:संतानों को संतान की प्राप्ति भी होती है। इसके अतिरिक्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी छठ माई का व्रत रखा जाता है।
      

यह महापर्व चार दिनों का होता है। जिसे नहाय खाय, लोहंडा या खरना, संध्या अर्ध्य और उषा अर्ध्य के रूप में मनाया जाता है।  जिसकी शुरुआत नहाय-खाय के दिन से होती है। पर्व के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है। इस दिन घर की साफ़ सफाई करके छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से शाकाहारी भोजन ग्रहण कर छठ व्रत की शुरुवात करते हैं।

इस दिन को कद्दू-भात भी कहा जाता है। व्रत के दौरान चावल, चने की दाल और कद्दू (घिया, लौकी) की सब्जी को बड़े नियम-धर्म से बनाकर प्रसाद रूप में खाया जाता है। इसके ठीक दूसरे दिन को खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। छठ व्रती दिन भर उपवास करने के बाद शाम को भोजन करते हैं। जिसे खरना कहते हैं।

खरना का प्रसाद चावल को गन्ने के रस में बनाकर या चावल को दूध में बनाकर और चावल का पिठ्ठा और चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। शाम के समय पूजा पाठ करने के बाद पहले छठ व्रती यह प्रसाद खाते हैं।  उसके बाद घर के अन्य सदस्यों को प्रसाद के रूप में वही भोजन मिलता है।

तीसरे दिन दिनभर घर में चहल पहल का माहौल रहता है। व्रत रखने वाले दिन भर डलिया और सूप में नानाप्रकार के फल, ठेकुआ, लडुआ (चावल का लड्डू), चीनी का सांचा इत्यादि को लेकर शाम को बहते हुए पानी (तालाब, नहर, नदी, इत्यादि) पर जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते हुए परिवार के सभी सदस्य अर्घ्य देते हैं।

और फिर शाम को वापस घर आते हैं। रात में छठ माता के गीत आदि गाए जाते हैं। चौथे और अंतिम दिन छठ व्रती सूर्योदय के पहले ही फिर से उसी तालाब, नहर, नदी पर एकत्र होते हैं। जहां वे तीसरे दिन गए थे। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान् सूर्य से प्रार्थना की जाती है।

परिवार के अन्य सदस्य भी व्रती के साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और फिर वापस अपने घर को आते हैं। व्रती चार दिनों का कठिन व्रत करके चौथे दिन पारण करते हैं। और प्रसाद का आदान-प्रदान कर व्रत संपन्न करते हैं। यह व्रत 36 घंटे से भी अधिक समय के बाद समाप्त होता है। व्रत की समाप्ति के बाद व्रती परिवार समेत हवन पूजन के द्वारा सूर्य देवता से परिवार की सुख सम्रद्धि की कामना करते हैं।
   

इस वर्ष छठ पूजा का यह महापर्व 20 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है। इस वर्ष षष्ठी तिथि 19 नवंबर रात 9 बजकर 59 मिनट से आरम्भ हो रही है जबकि षष्ठी तिथि का समापन 20 नवंबर रात 9 बजकर 29 मिनट पर हो रहा है।

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