शक्ति का उपासना का पर्व नवरात्र आज से प्रारम्भ ।

अभिजीत मुहूर्त में होगा कलश स्थापन । ए • के• फारूखी ( रिपोर्टर) ज्ञानपुर, भदोही । शनिवार से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हो रहा है। जो 24 अक्टूबर तक चलेगा। नवरात्र के अवसर पर माता दुर्गा की आराधना बड़े ही विधि-विधान के साथ की जाती है। धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार, शारदीय नवरात्र भगवती दुर्गाजी

अभिजीत मुहूर्त में होगा कलश स्थापन ।

ए • के• फारूखी ( रिपोर्टर)

ज्ञानपुर, भदोही ।

शनिवार से शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हो रहा है। जो 24 अक्टूबर तक चलेगा।  नवरात्र के अवसर पर माता दुर्गा की आराधना बड़े  ही विधि-विधान के साथ की जाती है। धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार, शारदीय नवरात्र भगवती दुर्गाजी की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्र के पावन दिनों में हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है।

जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं। नवरात्र का हर दिन देवी के विशिष्ट रूप को समर्पित होता है और हर देवी स्‍वरूप की कृपा से अलग-अलग तरह के मनोरथ पूर्ण होते हैं। नवरात्र का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व है। बताया जाता है कि  शास्त्रों में नवरात्र पर्व मनाए जाने की दो पौराणिक कथाएं हैं।

पहली पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक राक्षस था जो ब्रह्माजी का बड़ा भक्त था। उसने अपने तप से ब्रह्माजी को प्रसन्न करके एक वरदान प्राप्त कर लिया। वरदान में उसे कोई देव, दानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य मार ना पाए। वरदान प्राप्त करते ही वह बहुत निर्दयी हो गया और तीनों लोकों में आतंक माचने लगा।

उसके आतंक से परेशान होकर देवी देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ मिलकर मां शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

दूसरी पौराण‍िक कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले और रावण के साथ होने वाले युद्ध में जीत के लिए शक्ति की देवी मां भगवतीजी की आराधना की थी। रामेश्वरम में उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने श्रीराम को लंका में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।

दसवें दिन भगवान राम ने लंका नरेश रावण को युद्ध में हराकर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। इस दिन को विजयदशमी के रूप में जाना जाता है। नवरात्र के 9 द‍िनों में देवी भगवती के 9 अलग-अलग स्‍वरूपों की पूजा-उपासना की जाती है।

पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, पांचवें दिन मां स्कंदमाता, छठे दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां महागौरी और नौवें और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

नवरात्र के पहले दिन विधिनुसार घटस्थापना का विधान है। बतादें कि अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना होगा। कलश स्थापना का मुहूर्त दिन में 11 बजकर 38 से 12 बजकर 23 मिनट तक है। इसी समय के अंतर्गत कलश स्थापना उत्तम होगा।

अश्व पर होगा देवी का आगमन कांवल। देवी दुर्गा का वाहन तो शेर होता है। लेक‍िन नवरात्र में मां पृथ्‍वी पर द‍िनों के अनुसार आती हैं। मान्‍यता है क‍ि देवी मां क‍िस वाहन से आ रही हैं इसका व‍िशेष महत्‍व होता है। देवीभागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का आगमन आने वाले भविष्य की घटनाओं के बारे में संकेत देता है।

मान्‍यता है क‍ि नवरात्र की शुरुआत सोमवार या रविवार को हो रही है तो इसका मतलब है कि वह हाथी पर आएंगी। वहीं अगर शनिवार या फिर मंगलवार को कलश स्थापना हो रही है तो मां घोड़े पर सवार होकर आती हैं। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र का आरंभ होता है तो माता डोली पर आती हैं।

वहीं बुधवार के दिन मां नाव को अपनी सवारी बनाती हैं। तो इस बार नवरात्र 17 अक्‍टूबर से यानी क‍ि शन‍िवार से शुरू हो रहे हैं। तो देवी मां इस बार घोड़े से आ रही हैं। अश्व पर माता के आगमन को लेकर विद्वानों की यह मान्यता है कि घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना जाता है।

About The Author: Swatantra Prabhat