गुरू गोविन्द दोऊ खडे, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय।

गुरू गोविन्द दोऊ खडे, काके लागूं पाय।बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय। संतोष तिवारी (रिपोर्टर ) उपरोक्त लाइन में गुरू की परिभाषा इतनी बडी थी कि उस ‘गुरू’ के आगे ‘गोविन्द’ भी कम प्रभावशाली दिखते थे। लेकिन अब आधुनिक समय में ‘गुरू’ को केवल एक सिखाने या बताने वाला व्यक्ति या वस्तु तक सीमित कर

गुरू गोविन्द दोऊ खडे, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय।

संतोष तिवारी (रिपोर्टर )

उपरोक्त लाइन में गुरू की परिभाषा इतनी बडी थी कि उस ‘गुरू’ के आगे ‘गोविन्द’ भी कम प्रभावशाली दिखते थे। लेकिन अब आधुनिक समय में ‘गुरू’ को केवल एक सिखाने या बताने वाला व्यक्ति या वस्तु तक सीमित कर दिया गया है। इस बात का अंदाज नीचे लिखी लाइन से स्पष्ट हो जायेगा।
“A person or thing which teaches something is called Teacher…..”

क्योकि सच में आज गुरू का वह रूप काफी परिवर्तित होकर बतौर एक ‘व्यवसायी’ की तरह हो गया है। जिससे वही अधिक लाभ पाता है जो अधिक भुगतान करता है। गुरू-शिष्य की वह प्राचीन परम्परा अब केवल स्वप्न मात्र रह गई है।और इसकी वजह केवल ‘आर्थिक विकास’ की प्रबल इच्छा है। क्योकि आज के समय में अध्यापक ज्ञान बांटने के लिए नही बल्कि ज्ञान बेचने का व्यवसाय कर रहा है।

और ठीक उसी तरह शिष्य भी ज्ञान लेने के लिए नही केवल खरीदने के लिए आ रहा है। और यही गुरू-शिष्य का बाजारीकरण रिश्तो को कमजोर कर रहा है। कहने को या दिखाने को भले लोग गुरू-शिष्य परम्परा की बात करे लेकिन यह दिखावटीपन केवल एक ‘व्यापार’ से अधिक कुछ नही है। और यह सर्वविदित है कि सही व्यापारी वही होता है जो कम पूंजी में अधिक लाभ कमा सके।

जो आज के आधुनिक समय में देखा जा रहा है। पहले के समय में जो गुरू और शिष्य के रिश्तों में ‘दिल’ से लगाव था वह बाजारीकरण और व्यवसाय की वजह से ‘दिमाग’ से रिश्ता निभाया जा रहा है।
आजकल तो ऐसे ऐसे भी गुरू और शिष्य के मामले प्रकाश में आ जाते है जिनपर केवल चर्चा करना किसी ‘पाप’ से कम नही है। जो रिश्ता अपने मजबूती के लिए जाना जाता था वह रिश्ता आजकल यूं ही कलंकित हो जाता है।

जो लोगों की कल्पना से परे है। लेकिन आज भी आर्थिक युग में बहुत शिक्षक है जो सच में अपने छात्र-छात्राओं को पूर्ण मनोयोग से पढाते है और उनकी सफलता में अपनी अहम भूमिका निभाते है। लेकिन यह संख्या केवल नाम मात्र ही है। इसके जानकारी के लिए हमें कही बाहर देखने की जरूरत नही है। इसका पता तो हम अपने घर के बच्चों और उनके अध्यापकों के कार्यो से पता लगाया जा सकता है।

आज जिस तरह शिक्षा के नाम पर तथाकथित अध्यापकों द्वारा मनमानी और लापरवाही की जाती है। वह अक्षम्य है क्योकि समाज में बहुत ऐसे अध्यापक है जो ‘अध्यापक’ के नाम पर कलंक है जो देश और समाज के साथ गलत कर रहे है और स्वयं को ‘गद्दार’ बनाने में सहभागी हो रहे है। यहां बात उन अध्यापकों की हो रही है जो बच्चों से शुल्क लेने के बाद भी ‘टाइमपास’ करते है।

और इससे भी गलत कार्य तो कुछ ‘सरकारी’ अध्यापक करते है। जिन्हे न तो समाज का लाज है न सरकार का डर। आखिर इस तरह कार्य करने वालो को अध्यापक कहना ही ‘पाप’ है। क्योकि जो बच्चों को पढाने के लिए सरकार से वेतन लेता है और रोज नया बहाना बनाकर ‘कामचोरी’ करता है। जो समाज और सरकार के लिए काफी गलत है।

5 सितम्बर को हर वर्ष देश में डा सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्मदिन पर ‘अध्यापक दिवस’ मनाया जाता है। और इस मौके पर बहुत अध्यापकों को सरकार सम्मानित करती है। और सभी विद्यालय, कालेज और संस्थान में अध्यापकों को लोग सम्मानित करते है। लेकिन सम्मानित होने वालों ने कभी यह भी सोचा कि आखिर डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन किस तरह के अध्यापक रहे कि उनके जयन्ती को एक दिवस के रूप मे मनाया जाता है।

गुरू शिष्य के रिश्ते में जब तक ‘व्यापारिक’ रिश्ता समाप्त नही होगा तब तक रिश्ते में मजबूती नही हो पायेगी और सभी कुछ रामभरोसे ही रहेगा। मानते है आज कम्प्युटर और वर्चुअल टीचिंग का जमाना है लेकिन ‘गुरू’ की महत्ता तो कुछ और ही है। लोग अध्यापकों को वैल्यु इसलिए कम देते है कि आज बाजारीकरण के दौर में बहुत से ‘अध्यापक’ उपलब्ध है।

जो केवल इसलिए ‘अध्यापक’ बने है कि इस पेशा को बदनाम किया जाये और अक्सर कही न कहि इस तरह की बाते सुनने और देखने को मिलती है। यदि सच में गुरू के ज्ञान को अर्जित करना है तो सबसे पहलू दिमाग में जो ‘इगो’ है उसे समाप्त करना और बताई गई हर बात पर अमर करना प्रमुख है। लेकिन बहुत लोग है जिनके पास मोबाइल, लैपटाप इत्यादि की व्यवस्था है

वे कभी कभार ‘अतिविश्वास’ में अध्यापक की बात को नजर अंदाज कर देते है। हालांकि अध्यापक के त्याग, बुद्धिमानी, मेहनत, एकाग्रता और सक्रियता की वजह से ही कोई ‘अच्छा’ पद पाकर खुश रहता है। सभी शिष्यों को भी चाहिए कि कितना भी युग डिजीटल हो छाये लेकिन ‘गुरू’ द्वारा दी गई जानकारी और बातें नही मिल पायेगी। हालांकि अध्यापक ही है जो समाज को नई दिशा दे रहा है और उसी अध्यापक की वजह से न जाने कितने लोग सफल हो रहे है।

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