रामराज की परिकल्पना में दैहिक, दैविक और भौतिक संसाधनों का कोई स्थान नहीं–एडवोकेट दीपक /

रामराज की परिकल्पना में दैहिक, दैविक और भौतिक संसाधनों का कोई स्थान नहीं–एडवोकेट दीपक / ए• के • फारूखी (रिपोर्टर ) ज्ञानपुर,भदोही । जिला एवं सत्र न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक कुमार रावत ने कहा कि रामराज की परिकल्पना में दैहिक, दैविक और भौतिक संसाधनों का कोई स्थान नहीं है। जबकि संसार का कोई भी

रामराज की परिकल्पना में दैहिक, दैविक और भौतिक संसाधनों का कोई स्थान नहीं–एडवोकेट दीपक /

ए• के • फारूखी (रिपोर्टर )

ज्ञानपुर,भदोही ।

जिला एवं सत्र न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक कुमार रावत ने कहा कि रामराज की परिकल्पना में दैहिक, दैविक और भौतिक संसाधनों का कोई स्थान नहीं है। जबकि संसार का कोई भी प्राणी शायद ही इन संतापों से अछूता हो । राम राज में विषमता का कोई स्थान नहीं रहा है ।

इसका कई उदाहरण स्वंय प्रभु श्रीराम द्वारा अपने समतामूलक आचरण को समाज में प्रस्तुत किया गया। यह धर्म और अस्पृश्य कहे जाने वालों में शबरी के जूठे बेर को स्वंय खाकर, गिधराज का स्वंय भौतिक संस्कार करने , अहिल्या के ऐसे पाप को जो उसने जानबूझकर नहीं किये थे,। इससे उसका उद्धार करना।

इतना ही नहीं समाज के निरंतर पायदान पर जीवन यापन करने वाले निषादराज को अपने भ्राता के समान स्थान ही नहीं देना बल्कि उनके अंत:पुर तक हनुमान के बाद बिना किसी रोक के प्रवेश का अधिकार प्राप्त था।

जबकि वर्तमान राजनीति में राजा के प्रतीक राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने विपक्षी दल की महिलाओं के प्रति सम्मानजनक शब्द कहना उचित नहीं समझा जाता था। सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को संसद जैसे देश के सर्वोच्च सदन में अपमानजनक अपशब्द कहे जाने पर भी सत्तादल उनके प्रति नरम रुख प्रदर्शित करता है ।

राजनीतिक दल सत्ता धारी ही नहीं विपक्ष भी कहीं-कहीं मर्यादाओं का उल्लंघन कर जाता है । लेकिन सत्ता पक्ष से सदैव निष्पक्ष रूप से कानून का पालन न करने वालों को दंडित कराए जाने में भेदभाव नहीं करने का राम के उस आचरण का अनुसरण हमारे राजनेता नहीं करते

जैसे कि लक्ष्मण जैसे भाई को एकमात्र गलती के लिए मृत्युदंड जैसे प्रतीकात्मक सजा देने में धोबी के कथा कटाक्षवश सीता जैसी पवित्र धर्मपत्नी को परित्याग करके दिया था।
ऐसे उदाहरण आज के परिदृश्य में क्यों परिलक्षित नहीं होते हैं । क्योंकि राम के आचरण में त्याग, सहनशीलता, संयम,तप का समावेश है।

जबकि आज तमाम संत वेश में राजनीति करने वाले कालिनेमि जैसे लोगों को हत्या ,बलात्कार ,लूट ,डकैती जैसे अपराधों से बचाने की परंपरा का अनुपालन सत्ता धारियों की प्रवृत्ति सी हो गई है । गनीमत है कि भारतीय संविधान में न्यायपालिका जैसी संस्थाएं भी हैं। कि ऐसे लोगों पर कुछ हद तक अंकुश लगता दिखाई देता है।

अन्यथा वह दृश्य भीअसंभव नहीं रहता जब बलात्कार ,हत्या, जैसे घृणित अपराध करके संसद में बहुमत से ताल ठोककर अपने कृत्यों को विधिसम्मत होने का प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है।उन्होंने कहा कि इस लेख से किसी राजनीतिक दल विशेष को लक्ष्य करने का लेखक का विचार कत्तई नहीं है।

लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कृष्ण, महाबीर, बुद्ध,संत कबीर ,समान संत महात्माओं एवं महापुरुषों के देश में समय-समय पर ऐसे अमानवीय कृत्य देखने सुनने को मिलते हैं, जो मानवता को शर्मसार करते हुए शासन स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं किये ग्रे।

जैसा अभी आगरा में एक दलित महिला की लाश को चिता पर से इसलिए हटा दिया गया कि वह नीच जांति की थी, और चिता जहां पर लगी थी। वह उच्च जाति के लोगों हेतु शमशान के लिए आरक्षित स्थान था।

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