लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है समुदायिक किचन

लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है समुदायिक किचन खाना खाकर जिलाधिकारी ने खुद परखा खाने की गुणवत्ता फतेहपुर ,कोरोना का भय है और पूरा जिला लॉक है ,गांव हो या कस्बा हर जगह सन्नाटा ही सन्नाटा है । शहर वीरान हो चुके हैं ।लोगों के सामने बेरोजगारी दो वक्त की रोटी मुंह बाए

लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है समुदायिक किचन


खाना खाकर जिलाधिकारी ने खुद परखा खाने की गुणवत्ता 


फतेहपुर ,कोरोना का भय है और पूरा जिला लॉक है ,गांव हो या कस्बा हर जगह सन्नाटा ही सन्नाटा है । शहर वीरान हो चुके हैं  ।लोगों के सामने बेरोजगारी दो वक्त की रोटी मुंह बाए खड़ी है। ऐसे में जिला अधिकारी द्वारा संचालित सामुदायिक किचन लोगों के बीच एक उम्मीद बंद कर काम कर रही है। यहां ऐसे लोगों का पेट भरता है जो लॉक डाउन के समय अपना व अपने परिवार का पेट नहीं भर पा रहे है। इतना ही नहीं  एक फोन कॉल भी  लोगों का पेट भर सकता है  ।

किचन चलाने वाले  आए फोन कॉल के लोकेशन पर  समय से  खाना पहुंचाना सुनिश्चित करते हैं ।सामुदायिक किचन का लजीज खाना यहां के लोगों का मन मोह लिया है। दोपहर और शाम जरूरतमंद लोगों की कतार देखी जा सकती है भरपेट भोजन ऐसे सामुदायिक किचन केंद्रों का मुख्य उद्देश है । तभी तो यहां प्रतिदिन एक सामुदायिक किचन केंद्र में लगभग 400 लोगों को खाना खिलाया जाता है ।  जनपद में तीन सामुदायिक किचन संचालित है ।फतेहपुर शहर खागा बिन्दकी है । प्रतिदिन खाना खिलाने की व्यवस्था यहां सुनिश्चित की गई है । जिला अधिकारी भी इन संचालित सामुदायिक किचन का समय-समय पर निरीक्षण भी कर रहे हैं ।और खुद खाना खाकर यहां की गुणवत्ता को देख रहे हैं।

वैसे यहां रोटी घर भी जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाने का जिम्मा ले रखा है । यह संस्था मोबाइल के जरिए उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास करतीहै जिन्हें वास्तव में पेट भरने की जरूरत है lock  down के बाद ही यह संस्था काम करना शुरू कर दिया था और अभी भी प्रतिदिन लोगों के बीच पहुंच रही है ।

यह सब देख कर एक सवाल मन में उठता है कि जब जिला प्रशासन और कुछ स्वयंसेवी संस्था बेरोजगारों और उन लोगों के बीच देखे जा रहे हैं जिनके के यहां चूल्हा जलना मुमकिन नहीं हो रहा ।ऐसे में वे लोग कहां हैं जो बड़े-बड़े वादे करके आम लोगों का वोट हथियार कर विभिन्न कुर्सियों में विराजमान है और कई भारी-भरकम संस्था भी जरूरतमंद लोगों के बीच नजर नहीं आती ।

About The Author: Swatantra Prabhat